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विमर्श

नोटबंदी जैसा ही बेमतलब का साबित होगा जीएसटी

Janjwar Team
30 Jun 2017 8:43 PM GMT
नोटबंदी जैसा ही बेमतलब का साबित होगा जीएसटी
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जीएसटी लागू करने के पीछे आम उपभोक्ता को राहत पहुँचाने की मंशा उतनी नहीं है जितना बड़े कारोबारियों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट घरानों का दबाव.....

पीयूष पंत, वरिष्ठ पत्रकार

आज रात बारह बजते ही प्रधानमंत्री मोदी संसद भवन के सेन्ट्रल हाल में घंटा बजवाएंगे और एक ऐप के माध्यम से देश के अब तक के सबसे बड़े कर सम्बन्धी सुधार का आगाज़ करेंगे। पूरे देश में समान कर व्यवस्था को लागू करने वाले जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर को भारतीय अर्थव्यवस्था और धंधा करने के तरीके में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले कदम के रूप में पेश किया जा रहा है।

ये कितना क्रांतिकारी होगा यह तो आगामी वर्षों (दिनों में नहीं) में ही पता चलेगा, लेकिन जितने गाजे-बाजे के साथ इसकी शुरुआत की जा रही है उसके पीछे छिपा राजनीतिक मन्तव्य साफ़ नज़र आ रहा है। नोटबंदी की ही तरह जीएसटी को भी प्रधानमंत्री मोदी का एक ऐतिहासिक और साहसी निर्णय बताया जा रहा है।

कोशिश एक बार फिर मोदी की छवि को चमकाने की ही हो रही है। नोटबंदी के समय उत्तर प्रदेश का चुनाव सामने था और अब गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश के चुनाव और 2019 का आम चुनाव सामने हैं। सच्चाई तो ये है कि जीएसटी का निर्णय अकेले मोदी का निर्णय नहीं है। जीएसटी लाने की कवायद तो 2003 से ही चालू है और विभिन्न सरकारों के कार्यकाल के दौरान इसे लाये जाने के प्रयास और घोषणाएं होती रही हैं, फिर चाहे वो वाजपेयी की एनडीए सरकार हो या मनमोहन सिंह की दोनों यूपीए सरकारें।

यह भी आम जानकारी है कि इस नई कर व्यवस्था को लागू करने के पीछे आम उपभोक्ता को राहत पहुँचाने की मंशा उतनी नहीं है जितना कि बड़े कारोबारियों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेट घरानों का दबाव।

चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाये गए हर एक महत्वपूर्ण कदम को अपने प्रशस्ति गान में तब्दील करवा लेने में महारथ रखते हैं, इसीलिये मूलतः विज्ञान भवन में संपन्न होने वाले इस कार्यक्रम के स्थल को बदलवा कर उन्होंने इसे संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में स्थानांतरित करवा दिया, ताकि कार्यक्रम के साथ-साथ मोदी को भी अतिरिक्त महत्व मिल सके।

गौरतलब है कि संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में अभी तक केवल तीन कार्यक्रम हुए हैं. जब देश आजाद हुआ तब उस आजादी का उत्सव मनाया गया था। फिर 1972 में जब आजादी की सिल्वर जुबली मनाई गई थी। इसके बाद 1997 में आजादी की गोल्डन जुबली पर आधी रात को कार्यक्रम हुआ था। निसंदेह उन तीनों महान आयोजनों की तुलना कर व्यवस्था में सुधार की योजना से नहीं की जा सकती है। कांग्रेस पार्टी की भी यही आपत्ति है।

कुछ लोग इसे मोदी की नासमझी कह सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह सब सप्रयास किया जा रहा है। दरअसल मोदी खुद को भारत का सबसे सफ़ल और लोकप्रिय प्रधानमंत्री साबित करने पर तुले हैं। यही कारण है कि वे अक्सर भारत के प्रथम व लोकप्रिय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समकक्ष खड़ा होने की जद्दोजहद में दिखाई देते हैं, बल्कि उनकी नक़ल करने की असफल कोशिश करते हुए भी दिखते हैं।

कोई ताज्जुब नहीं होगा कि आज आधी रात प्रधानमंत्री मोदी संसद से सम्बोधन करते हुए पंडित नेहरू के आज़ादी के बाद दिए गए 'ट्रिस्ट विथ डेस्टनी' वाले भाषण की नक़ल उतारते नज़र आएं। आपको शायद याद हो कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जी ने नेहरू स्टाइल में एक-दो बार अपने कोट की जेब में गुलाब का फूल लगाने का प्रयास किया था, लेकिन बाद में उन्हें कोट की जेब में कमल का फूल कढ़वा कर ही काम चलाना पड़ा।

इसी तरह अक्सर मोदी देश विदेश में बच्चों को दुलारने का विशेष ध्यान रखते हैं ताकि केवल पंडित नेहरू को ही बच्चों के चाचा के रूप में न याद किया जाय। वैसे प्रधानमंत्री मोदी की ये खूबी तो है कि वे सफल लोगों की खूबियों को आत्मसात करने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं।

आपको याद होगा कि 2014 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के जुमले 'येस वी कैन' का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते दिखाई दिए थे। याद रहे कि किसी भी प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और सफलता इतिहास खुद दर्ज़ करता है, न कि प्यादे और चाटुकार।

जहां तक जीएसटी से होने वाले फायदे की बात है तो वो तो कई वर्षों बाद ही पता चल पायेगा। फिलहाल तो स्तिथि लखनऊ की भूलभुलैय्या जैसी है। हर कोई इसके नफे- नुक़सान को समझने की कोशिश कर रहा है। खुद सरकार के वित्त मंत्री जेटली और शहरी विकास मंत्री वेंकैय्या नायडू यह कह चुके हैं कि जीएसटी के फायदे दीर्घ काल में ही पता चलेंगे, अल्पकाल में तो इससे महंगाई बढ़ने और जीडीपी कम होने की ही संभावना है।

यानी मोदी जी जब तक अति प्रचारित आपके इस कदम से अर्थव्यवस्था को फायदे मिलने शुरू होंगे तब तक छोटे और मझोले व्यापारी कुछ उसी तरह दम तोड़ चुके होंगे जैसे नोटबंदी के बाद छोटे और मझोले किसान।

खबर है कि कल मोदी जी जीएसटी को लेकर दिल्ली में एक रैली निकालेंगे। उम्मीद है अब आपको मेरी बात समझ में आ रही होगी।

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