फेंकूलॉजी : देश चाह रहा नीरव मोदी पर चर्चा लेकिन मोदी कर रहे परीक्षा पर परिचर्चा
जो सवाल हो उसको टाल दो, जो टालने लायक हो उसे देश का मूड बता दो और जब देश में लूट मची हो, देश हाहाकार के दौर से गुजर रहा हो तो गांधी के बंदर बन जाओ — भारतवर्ष में इन दिनों इस लक्षण को फेंकूलॉजी कहा जाता है मेरे दोस्त!
राग दरबारी
फेंकूलॉजी के सबसे बड़े सूत्रधार खुद इस देश के प्रधानमंत्री हैं, जिनके शासन काल में देश को लूटने वाले कुछ इस तरह से देश से विदा किए जाते हैं जैसे वे चोर नहीं बल्कि भाजपा के राष्ट्रवादी दामाद और मोदी जी के अपने रिश्तेदार हों
खैर! कौन कहे ये बात क्योंकि नीरव मोदी कोई कांग्रेस के दामाद तो हैं नहीं, दामाद अगर हैं भी तो अंबानी के परिवार के, जिसे मोदी अपने परिवार से अलग नहीं मानते!
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और जब दामाद के घर की ही सरकार हो फिर कौन पूछे सवाल? कहावत भी है — सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का!
दूसरी तरफ जिस सरकारी लूट को लेकर देश संशय में आ गया है, पूरा देश अब सरकारी बैंको पर भी अविश्वास की नजर से देखने लगा है और लोग कहने लगे हैं कि पहले नोटबंदी के नाम पर मोदी ने हमारे पैसे जमा कराए और अब नीरव मोदी जैसे नजदीकी लोगों के जरिए वह देश को लुटवाने में लगे हैं, फिर भी प्रधानमंत्री क्यों चुप हैं? आखिर क्यों वो परीक्षा पर चर्चा में मशगूल हैं?
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देश ने उन्हें कोई शिक्षाशास्त्री तो बनाया नहीं है? यह काम करने के लिए देश में लाखों काबिल लोग हैं जो शिक्षा, बाल मनोविज्ञान और परीक्षा प्रणाली के विशेषज्ञ हैं, जबकि मोदी ने बचपन से आजतक ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके कारण उन्हें परीक्षा पर चर्चा करने का इकलौता राष्ट्रीय विशेषज्ञ माना जाए।
क्यों प्रधानमंत्री देश पर चर्चा करने की बजाए आम जनता का उल्लू समझने की समझदारी पर अपने शासने के चार साल बीत जाने के बावजूद कायम हैं? आखिर क्यों वे जब नीरव मोदी पर चर्चा की जरूरत है तब वे परीक्षा पर चर्चा कर रहे हैं?
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क्या यही फेंकूलॉजी नहीं है कि जब जो सवाल हो, उसको अनसुना कर दूसरा मुद्दा सामने ला दो और उस पर मीडिया क्रंदन कराओ!