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ISIS ने 4 साल पहले मार दिया था 39 भारतीयों को, भारत सरकार अब उनके कंकाल लाएगी

Janjwar Team
21 March 2018 11:55 AM GMT
ISIS ने 4 साल  पहले मार दिया था 39 भारतीयों को, भारत सरकार अब उनके कंकाल लाएगी
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इराक में 2014 में मारे गए मजदूरों का सच अगर केंद्र सरकार उसी समय बता देती तो मोदी की वैश्विक नेता बनाने की भाजपाई कोशिश को बट्टा लग जाता और लोग मान लेते की उनका नेता बेहद कमजोर है

एक बार नहीं 7 बार संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार ने दावा किया था कि 39 फंसे भारतीय जिंदा हैं, पर कल बताया कि 4 साल पहले ही कर दिए गए थे दफन

जनज्वार। जून 2014 यानी चार साल पहले इराक के मोसुल में अगवा हुए 39 भारतीयों को आईएसआईएस ने मौत के घाट उतार दिया था। यह खबर सामने आने के बाद भी मोदी सरकार दावा करती रही कि सभी भारतीय सुरक्षित हैं उन्हें जल्द ही देश में वापस लाया जाएगा। आईएसआईएस के कब्जे में फंसे भारतीयों के मारे जाने की खबर कोरी अफवाह है।

और संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार ने यह फर्जी दावा एक बार नहीं 7 बार किया। पहला बयान 23 जून 2014 को, दूसरा 16, 17 और 24 जुलाई 2014 को, फिर 22 अगस्त 2014, उसके बाद 22 जुलाई 2015 और 16 जुलाई 2017 को दिया। भारत सरकार द्वारा दिए गए ये सभी बयान इस बात के दावेदारी के थे कि सभी 39 श्रमिक जिंदा हैं।

मगर कल अचानक इस दावे से पलटी मारते हुए हमारी माननीय विदेश मंत्री महोदया सुषमा स्वराज ने खुलासा किया कि इराक के बादोश गांव में चार साल से 39 भारतीयों के शव दफन हैं। आईएसआईएस द्वारा अगवा किए गए सभी भारतीय मार डाले गए हैं। अब मोदी सरकार उनका सिर्फ कंकाल लाएगी, वह भी अगर ले आ पाई तो।

कांग्रेस नेता शशि थरूर के मुताबिक, 'हम सभी भारतीयों के लिए दुख की बात है। लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि सरकार ने इस बात की जानकारी देने में इतनी देरी की। क्या सरकार ने इसे किसी राजनीतिक लाभ के लिए छुपाए रखा?'

शशि थरूर के सवालों का सिरा पकड़ कर बात की जाए तो यह सवाल इस मौके पर बेजा नहीं लगता? खासकर तब जबकि सरकार अपने ही देश के नागरिकों की जिंदगियों को लेकर न सिर्फ संवेदनशीलता के स्तर पर गफलत में रखने का गुनाह किया, बल्कि अपनी जनता के साथ एक सरकार द्वारा किया गया फरेब भी है। क्या एक जनता के लिए बनी सरकार जनता के साथ ही 420 की तरह पेश आ सकती है।

इसमें गौर करने वाली बात यह भी है कि आईएसआईएस के चंगुल से बचकर निकले हरजीत मसीह ने सभी भारतीय मजदूरों के मारे जाने की पुष्टि पहले ही खबर कर दी थी, मगर सरकार ने उसको झूठा करार दे दिया था। न सिर्फ झूठा करार दिया बल्कि 6 महीने जेल में रखा। वह पिछले 4 सालों से कह रहा है कि उसके साथ के सभी 39 लोगों को मार दिया गया।

पर सरकार हरजीत मसीह के दावे को इसलिए कान नहीं देती रही क्योंकि इससे मोदी की माहन बनती वैश्विक छवि में बट्टा लग जाता। देश समझ जाता कि मोदी के खोखले दावे हैं जो वह
और उनकी पार्टी एक मजबूत वैश्विक नेता पर उन्हें पेश कर रहे हैं। पाठकों को याद होगा कि मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद करीब 2 साल तक मोदी विदेश दौरों के द्वारा एक वैश्विक नेता बनने के प्रायोजित प्रचार में लगे थे। यह बात इसलिए भी रेखांकित की जानी चाहिए क्योंकि इसी साल मोदी अपने को पूरी दुनिया के मजबूत नेताओं में शामिल कराने की जुगत में लगे थे और दूसरी तरफ उनके ही लोगों को आईएसआईएस ने मार डाला था।

हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने तो यहां तक कहा था कि हरजीत मसीह सरासर झूठ बोल रहा है। अब जब खुद सुषमा ने इस खबर की पुष्टि की कि सभी 39 भारतीय मारे जा चुके हैं, उसके बाद मसीह एक बार फिर मीडिया के सामने आए हैं।

सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि आखिर क्यों इतने सालों तक सरकार मृतकों के परिजनों और देश को गुमराह करती रही। विपक्षी दलों ने आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं कि अपने राजनीतिक फायदे के लिए सरकार ने अब तक इन मौतों का खुलासा नहीं किया था। वह अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती रही और मृतकों के बीच में से लौटे मसीह की बात पर भी यकीन नहीं किया, बल्कि उसे झूठा करार दे दिया।

सुषमा स्वराज ने 26 जुलाई 2017 को लोकसभा में दिए एक बयान में कहा था, 'न हमें लाशें मिलीं, न हमें खून के धब्बे मिले। एक व्यक्ति कह रहा है कि वो मार दिए गए। हमारा सोर्स कह रहा है कि वो जिंदा हैं। तो मुझे क्या करना चाहिए। उन्हें मृत मानकर तलाश छोड़ देनी चाहिए या उनकी तलाश जारी रखनी चाहिए? मैं उन लोगों से सीधे संपर्क में नहीं हूं। मेरे पास उनके जिंदा होने के सबूत नहीं हैं लेकिन मेरे पास उनके मारे जाने के सबूत भी नहीं हैं।'

पर अब नाटकीय बयान विदेश मंत्री का ये आया है...

'चूंकि अब तक इस बात के प्रमाण नहीं थे कि मारे गए लोग भारतीय ही हैं, इसलिए हमने इस बात की पुष्टि नहीं की थी। मोसुल में दफन भारतीयों के डीएनए के सैंपल रेतीली मिट्टी से लेकर उनके परिजनों के साथ मैच किए गए, जो मैच हो चुके हैं।'

गौरतलब है कि इराक में मारे गए इन भारतीयों के शवों की एक सामूहिक कब्र मिली है। इस बात की पुष्टि इराकी प्रशासन ने भी कर दी है। जून 2017 में मोसुल को आईएसआईएस से मुक्त कराया था।

इराक़ प्रशासन के मुताबिक पिछले साल जो शव एक सामूहिक कब्र में मिले थे, वो उन्हीं भारतीय मज़दूरों के थे, जिन्हें 2014 में आईएसआईएस ने मोसुल में बंधक बनाकर मौत की नींद सुला दिया गया था। जहां पर 39 लोगों की सामूहिक कब्र बरामद हुई वह उत्तर-पश्चिम में बादोश गांव है जिसे पिछले साल ही इराकी बलों ने अपने कब्जे में लिया है। इराक़ के शहीद संस्थान के प्रमुख ने भी इस बात की पुष्टि कर दी थी कि 39 शवों में 38 की पहचान की जा चुकी है।

मोसुल पर कब्‍जा करने के बाद आईएसआईएस ने भारत के 40 मजदूरों को भी बंधक बना लिया था। इनमें से एक मजदूर हरजीत मसीह अपनी जान बचाने में सफल हुआ था।

आईएसआईएस के चंगुल से बचकर निकले हरजीत मसीह के मुताबिक, आतंकी हम 40 लोगों को बंधक बनाने के कुछ दिनों बाद बाहर ले गये, जहां पर हमें गोलियों से भून दिया गया। मैं किसी तरह बांग्लादेशी नागरिक की पहचान बताकर वहां से निकलने में कामयाब हो पाया।

बादोश गांव में भारतीय मजदूरों की कब्र के पास ही अन्य दो कब्रें मिलीं।

विदेश मंत्री के इस स्वीकारनामे के बाद कि जिन भारतीयों को वो वापस लाने का दावा कर रही थीं, वो सब मौत के घाट उतार दिया गया है, मृतकों के परिजन खासे आक्रोशित हैं। मृतकों के परिजन चीख—चीखकर सरकार से सवाल कर रहे हैं कि आखिर मोदी सरकार ने उन्हें क्यों अंधेरे में रखा। बजाय सरकार के उन्हें अपनों के मरने की खबर मीडिया से मिली।

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