Begin typing your search above and press return to search.
समाज

प्रोफेसर की लाश सड़ने लगी तो हाल चाल के लिए पड़ोसियों ने खटखटाया दरवाजा

Janjwar Team
9 Sep 2017 9:22 AM GMT
प्रोफेसर की लाश सड़ने लगी तो हाल चाल के लिए पड़ोसियों ने खटखटाया दरवाजा
x

ऐसी समृद्धि और साधन संपन्न समाज किस काम का जिसमें अलगाव और अवसादों के सिवा कुछ बचे ही ना। दिल्ली का यह कैसा पड़ोस है कि जहां पड़ोस वाले महीनों से बीमार परिवार का हाल चाल लेने के लिए 4 दिन तक उसके लाश सड़ने का इंतज़ार करते हैं....

जनज्वार। दिल्ली के सर्वाधिक ख्यात और चर्चित शोध संस्थानों में शामिल इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएआरआई) में 'दिल्ली की पड़ोसी' संस्कृति को नंगा कर देने वाली घटना सामने आई है। इसी इस्टीट्यूट का एक रिटायर्ड प्रिंसिपल साइंटिस्ट 4 दिन से अपने घर में मरा पड़ा था, लेकिन पड़ोसी उसकी कुशलक्षेम पूछने तब गए जब बदबू से उन्हें रहा नहीं गया।

आईएआरआई से दो साल पहले 2015 में रिटायर्ड हुए वैज्ञानिक 64 वर्षीय यशवीर सूद अपने छोटे भाई—बहन कमला सूद और हरीश सूद के साथ कैम्पस में ही रहते थे। पड़ोसियों को पता था यशवीर के दोनों भाई—बहन मानसिक रूप से कमजोर और बीमार हैं। वैज्ञानिक और उनके दोनों भाई बहन बहुत ही अलगाव में कैम्पस में रहते थे।

7 सितंबर की शाम पड़ोसियों को उनके फ्लैट से बदबू आनी शुरू हुई। आईएआरआई के प्रशासन से कैम्पस के दूसरे परिवारों ने संपर्क किया। कैम्पस के गॉर्ड ने उनका दरवाजा खुलवाया तो पता चला कि मर चुके वैज्ञानिक की लाश के साथ दोनों भाई बहन रह रहे हैं। वैज्ञानिक कब मरे और ये लोग कितने दिन से सड़ती लाश के साथ हैं, यह किसी को नहीं पता। पर सड़ रही लाश को देख अनुमान लगाया जा रहा है कि 5 दिन पहले मौत हो चुकी होगी। मौके पर पहुंची पुलिस के मुताबिक लाश ने हड्डियां छोड़ दी थीं और सड़ने लगी थी।

पुलिस की उपस्थिति में जब लाश निकालने की कोशिश हुई तो बहन कमला सूद झगड़ा करने लगीं और कहने लगीं की उनका भाई जिंदा है। उन्हीने भरसक कोशिश की की पुलिस लाश न ले जा पाए।

फिलहाल वैज्ञानिक के भाई—बहन का मानसिक इलाज हो रहा है। दोनों के बारे में इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि वे मानसिक रूप से बीमार हैं। बहन सिजोफ्रेनिया की शिकार हैं। वहीं आईएआरआई प्रबंधन ने बताया कि वॉज्ञानिक यशवीर सूद ने अपनी पेंशन तक नहीं ली।

वैज्ञानिक रिटायर होने के बाद अपने पेंशन कागजों पर दस्तखत को तैयार नहीं थे। रिटायर होने के बाद जब प्रबंधन ने उनका आधिकारिक आवास खाली करा दिया, तो वह अपने बहन—भाई के साथ कैम्पस में ही बेकार पड़ी एक मकान में रहने लगे।

इंस्टीट्यूट आॅफ हयूमैन बिहेवियर एंड एलाएड साइंस( इहबास), दिल्ली में मृत वैज्ञानिक के भाई—बहनों का इलाज कर रहे निदेशक डॉक्टर निमेष देसाई के मुताबिक, 'न्यूक्लियर परिवारों में बुजुर्गों की असुरक्षा बड़े कारण के रूप में आ रही है। ऐसे बुजुर्ग सालोंसाल अकेले रहने की वजह से मानसिक रोगों का शिकार हो रहे हैं। इसको रोकने के लिए जरूरी है कि समाज सामूहिक रूप से पहल ले और पड़ोस जीवंत और संवेदनशील बने।

पूरा घटनाक्रम सिलसिलेवार देखें तो साफ हो जाता है कि प्रबंधन से लेकर पड़ोसी तक वैज्ञानिक और उनके भाई—बहन की हालत से भली भांति परिचित थे।

समाज में अलग—थलग पड़ रहे बुजुर्गों और असंवेदनशीलता के बारे में प्रख्यात समाजशास्त्री आशीष नंदी कहते हैं, 'हम दुख नहीं देखना चाहते, हम दूसरों की कहा नहीं सुनना चाहते और न ही हम दुखों में भागीदार होना चाहते हैं। हमें यह आगे बढ़ने में रुकावट लगती है, बाधा जिस लगती है। यही वजह है कि विकास और तेजी से आगे बढ़ने के दौर में समाज में अलगाव और असंवेदनशीलता बढ़ रही है।

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध