आंदोलन

बाटला हाउस की दसवीं बरसी पर रिहाई मंच ने किया सम्मेलन, रिपोर्ट जारी

Prema Negi
20 Sep 2018 3:07 AM GMT
बाटला हाउस की दसवीं बरसी पर रिहाई मंच ने किया सम्मेलन, रिपोर्ट जारी
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माॅब लिंचिंग करने वालों को केंद्रीय मंत्री माला पहनाते हैं और दूसरी तरफ दलित, पिछड़ों और मुसलमानों की मुठभेड़ के नाम पर हत्या की जा रही है और पीड़ितों पर ही रासुका लगाकर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित किया जा रहा है...

लखनऊ। बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर की दसवीं बरसी पर मानवाधिकार, लोकतांत्रिक अधिकार, सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करने वालों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में रिहाई मंच द्वारा आयोजित सम्मेलन में 'सदमा, साजिश और सियासत : बाटला हाउस के दस साल' शीर्षक रिपोर्ट जारी की गई।

रिपोर्ट में बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद विभिन्न राज्यों और जनपदों से गिरफ्तार नौजवानों के मुकदमों की ताज़ा स्थिति, घरेलू हालात, उन्हें अदालती दांवपेंच में उलझा कर कैदी बनाए रखने की साज़िशों पर विस्तार से चर्चा की गई। गिरफ्तार और लापता नौजवानों से सम्बंधित व्यक्तिगत जानकारी भी रिपोर्ट का हिस्सा है।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार भारत भूषण ने कहा कि सरकार हर आवाज़ को खामोश करना चाहती है, ऐसा नहीं है बल्कि वह कुछ आवाज़ों की गूंज को और बढ़ाना चाहती है। मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करने वालों, हथियारबंद गौरक्षकों, हिंदू-मुस्लिम षादियों को लव जिहाद कहने और अंतरजातीय विवाह को रोकने वालों, सड़क पर नमाज़ पढ़ने से रोकने और जागरण एवं कांवड़ियों द्वारा हाईवे जाम कर देने वालों, पाकिस्तान भेजने वालों और लड़कियों को जींस पहनने और मोबाइल इस्तेमाल करने से रोकने वालों की आवाज़ बंद नहीं करना चाहते और यह सभी को मालूम है कि वह कौन लोग हैं।

भारत भूषण ने आगे कहा, सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने वालों, हाशिए पर खड़े दलित, आदिवासी समाज के हक-हकूक की बात करने वाले सामाजिक संगठनों, वकीलों और सरकार के गलत कारनामों और नीतियों के खिलाफ लिखने और बोलने वाले पत्रकारों की ज़बान पर वे ताला लगाना चाहते हैं। भीमा कोरेगांव हिंसा के बाद जून और अगस्त के महीने में सिविल सोसाइटी के पांच कार्यकर्ताओं की हिरासत के बाद यह और प्रासंगिक हो जाता है।

भारत भूषण ने कहा कि इंदिरा गांधी सरकार में आपातकाल लगाने से पहले इसी सिविल सोसाइटी के पीछे विदेशी हाथ होने की बात कही थी। मनमोहन सिंह काल में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के पीछे भी विदेशी खिलाड़ियों के होने की बात कही गई थी। विदेशी सहायता पाने वाले गैर सरकारी संगठनों की सूक्ष्म जांच और एफसीआरए के कानून को और कठोर बनाया गया। पी चिदम्बरम के गृहमंत्री रहते हुए यूएपीए को और कठोर बनाया और मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात करने वाले प्रावधान जोड़े गए। जन अधिकारों की बात करने वालों को जेल में ठूंसा गया।

भारत भूषण के मुताबिक, आज स्थिति अलग है, नरेंद्र मोदी जैसा असामान्य व्यक्ति प्रधानमंत्री है। इस सरकार को अपनी विफलताओं के लिए किसी पर आरोप लगाने की ज़रूरत पहले से कहीं अधिक है। साम्प्रदायिकता और आर्थिक गैर बराबरी बढ़ी है, दलितों, आदिवासियों पर जातीय हमलों में इज़ाफा हुआ है। छुपी हुई साम्प्रदायिकता को हिंदुत्व के नाम पर अब वैधानिकता मिल गई है। मीडिया ने असहमति की आवाज़ दबाने में भूमिका निभाई है। रहन-सहन, खान-पान, पहनावे के आधार पर घृणा के अपराध के बढ़ने, धर्म और जाति की बुनियाद पर दूसरों को नीच समझने जैसे विघटनकारी विचारों के प्रसार के लिए मीडिया का वह हिस्सा भी ज़िम्मेदार है जिसे गोदी मीडिया के नाम से जाना जाने लगा है। साम्प्रदायिक और जातीय हिंसा, माॅब लिंचिंग और यहां तक कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के मामले में भी मीडिया के एक वर्ग की भूमिका निम्न स्तरीय और पक्षपातपूर्ण रही है।

दस्तक पत्रिका की संपादक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आज़ाद ने कहा कि यूं तो देश काॅरपोरेटी फासीवाद की ओर बढ़ ही रहा था, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के सत्ता में आने के बाद इसने मनुवादी फासीवाद को भी शामिल कर लिया है।

भीमा कोरेगांव में हिन्दुन्वादी संगठनों द्वारा कारित कराई गई हिंसा के सूत्राधारों सांभा जी भिड़े और एकबोटे को सत्ता का संरक्षण और आशीर्वाद प्राप्त है और वंचित समाज के अधिकारों की बात करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों की गिरफ्तारी उसी फासीवादी-मनुवादी एजेंडे को थोपने का प्रयास है। पिछले साल सहारनपुर जातीय हिंसा के नाम पर दलित समाज पर सत्ता पोषित तत्वों द्वारा सुनियोजित हमला और उसके बाद चंद्रशेखर समेत दलितों की गिरफ्तारी व रासुका लगाना सत्ता के उसी फासीवाद को दर्शाता है।

सीमा ने जोर देकर कहा कि यह समूह समाज के सभी वर्गों को समानता का अधिकार देने को वर्ण व्यवस्था पर हमला मानता है और उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता। पिछली सरकारों में भी अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को जेलों में डालना और फर्जी मुठभेड़ों में उनकी हत्या करना होता रहा है। कई बार नीतिगत स्तर पर भी हुआ है जिसे इस मनुवादी-फासीवादी सरकार ने और तेज़ किया है। बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ उसका उदाहरण है।

रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि दस साल पहले जो संघर्ष बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद सड़कों पर खड़ा हुआ, वह आज इस मनुवादी फासिस्ट व्यवस्था के खिलाफ सहारनपुर से लेकर भीमा कोरेगांव तक आवाज़ बुलंद कर रहा है। इस संघर्ष में सबसे अहम है कि युवा नेतृत्व तय कर रहा है कि उसका भारत मोदी का नहीं, डॉ. भीमराव अम्बेडकर के संविधान वाला भारत होगा। रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या और नजीब का अब तक पता न चलना साफ करता है कि ये नहीं चाहते कि वंचित समाज उच्च षिक्षा लेकर उनकी सड़ी—गली व्यवस्था के खिलाफ मुखर हो। एक तरफ माॅब लिंचिंग करने वालों को केंद्रीय मंत्री माला पहनाते हैं और दूसरी तरफ दलित, पिछड़ों और मुसलमानों की मुठभेड़ के नाम पर हत्या की जा रही है और पीड़ितों पर ही रासुका लगाकर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित किया जा रहा है।

मुहम्मद शुऐब ने कहा मार्च 2007 में लखनऊ में सैफुल्लाह फर्जी मुठभेड़ के बाद आईएस के नाम पर कानपुर समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ्तारियां की गईं। हाल में कानपुर से आतंकवाद के नाम पर हुई गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक तरफ रोहंगिया मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है तो वहीं बांग्लादेशी के नाम पर पिछले साल से गिरफ्तारियां जारी हैं। इसी तरह 2007 में भी बांग्लादेशी के नाम पर गिरफ्तारियां की गई थी जिसके खिलाफ लड़कर उस झूठ को बेनकाब किया गया।

नागरिक परिषद के संयोजक रामकृष्ण ने कहा , कलबुर्गी, पंसारे, दाभोलकर, गौरी लंकेश की हत्या के बाद जिस तरीके से वंचितों की आवाज उठाने वाले गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, पी वरवर राव, वर्रनन गोंसाल्विस को गिरफ्तार किया गया उससे इंसाफ की आवाज नहीं दबने वाली। लोकतंत्र, संविधान और साझी विरासत-साझी शहादत को बचाने की निर्णायक लड़ाई नए इतिहास का निर्माण करेगी।

रिहाई मंच नेता मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि बाटला हाउस के बाद सूत्रों के जरिए आने वाली अपुष्ट सूचनाओं और अपने बच्चों के बारे में सोच-सोचकर अधिकतर परिजन गहरे सदमे में पहुंच गए और दिल की बीमारी के शिकार हो गए। साजिद छोटा के पिता डॉ अंसारुल हस्सान बेटे की मौत की खबर के बाद बुत बन गए तो वहीं मां ने बिस्तर पकड़ लिया। आखिरकार डॉक्टर साहब दुनिया का अलविदा कह गए। आरिफ बदर के पिता बदरुद्दीन चल बसे तो वहीं उसकी मां का दिमागी संतुलन बिगड़ गया। आरिज खान के पिता जफर आलम, सलमान के दादा शमीम, अबू राशिद के पिता एखलाक अहमद अपने बेटों के गम में चल बसे।

इसे त्रासदी बताते हुए कहते हैं कि अबू राशिद के भाई अबू तालिब को पिछले दिनों दिल का दौरा पड़ा। साजिद बड़ा के बारे में अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में तीन बार मारे जाने की ख़बरें सूत्रों के हवाले से आती रही हैं। जुलाई 2015 में सीरिया में उसके मारे जाने की खबर काफी चर्चा में रही। लेकिन 26 जनवरी 2018 को दिल्ली स्पेशल सेल ने जिन सम्भावित आतंकियों के खिलाफ एलर्ट जारी किया था उस सूची में आश्चर्यजनक रूप से साजिद बड़ा का नाम भी शामिल था। आतिफ अमीन और साजिद छोटा की बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी।

बाटला हाउस के बाद अब तक आज़मगढ़ के 15 नौजवानों को इंडियन मुजाहिदीन का आतंकी कह कर गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनके नाम मोहम्मद सैफ, जीशान अहमद, साकिब निसार, मोहम्मद आरिफ, मोहम्मद हाकिम, मोहम्मद सरवर, सैफुर्रहमान अंसारी, शहज़ाद अहमद, सादिक शेख, ज़ाकिर शेख, आरिफ बदर, सलमान अहमद, हबीब फलाही, असदुल्लाह अखतर और मोहम्मद आरिज़ खान हैं।

सितम्बर 2008 से गिरफ्तारियों का यह सिलसिला शुरू हुआ और इसमें अंतिम गिरफ्तारी 14 फरवरी 2018 को आरिज़ खान की हुई। आईएस से जुड़े होने के आरोप में अबू जैद को भी गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा डॉक्टर शाहनवाज़, साजिद बड़ा, मोहम्मद खालिद, अबू राशिद, वासिक बिल्लाह, मिर्जा शादाब बेग, मोहम्मद राशिद, शर्फुद्दीन और शादाब अहमद लापता हैं। इनमें अंतिम तीन के खिलाफ एनआईए ने 2012 में एफआईआर दर्ज की है, जिसमें गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक अधिनियम की धाराएं लगाई गई थीं लेकिन किसी घटना का उल्लेख नहीं था।

'सदमा, साजिश और सियासत : बाटला हाउस के दस साल' रिपोर्ट बताती है कि जहां तक मुकदमों की स्थिति का सवाल है तो दिल्ली में अभी लगभग आधे ही गवाह गुज़रे हैं। जयपुर में तेज़ी से मुकदमे की कार्रवाई आगे बढ़ी है और एक साल में फैसला आने की उम्मीद की जा सकती है। अहमदाबाद में, जहां सबसे अधिक 3500 के करीब गवाह हैं।

7 अगस्त को एक आरोपी अतीकुर्रहमान की ज़मानत अर्जी पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की खण्डपीठ से अर्जीगुज़ार ने कहा था कि उस पर लगाए गए आरोप मनगढ़ंत हैं और मुकदमों की सुनवाई में करीब 1100-1200 गवाह ही गुज़रे हैं। इस हिसाब से मुकदमा वर्षों तक चलता रहेगा इस तरह उसे कैद में रखना अन्यायपूर्ण होगा इसलिए उसे ज़मानत दी जाए। सरकार की तरफ से पेश असिस्टेंट साॅलिसिस्टर जनरल ने जवाब में माननीय न्यायालय को बताया कि अहमदाबाद धमाका केस का फैसला चार महीने में आ सकता है। उसके बाद अभियोजन ने गैरज़रूरी गवाहों को पेश न करने का फैसला किया।

बाटला हाउस की दसवीं बरसी पर आजमगढ़ से तारिक शमीम, शाह आलम शेरवानी, विनोद यादव, सालिम दाउदी, तारीक शफीक, गुलाम अंबिया, अवधेश यादव भी मौजूद रहे। शकील सिद्दीकी, सृजनयोगी आदियोग, अरुण खोटे, मोहम्मद मसूद, ओपी सिन्हा, शकील कुरैशी, रफीक सुल्तान, अवसाफ, शाहरुख, रविश आलम, वीरेन्द्र गुप्ता, राबिन वर्मा, अजय सिंह, शोभा सिंह, कमर सीतापुरी, एसके पंजम, प्रबुद्ध गौतम, मंजूर अली, शाइरा नईम, अरुंधती ध्रुव, शिवाजी राय, सचेन्द्र यादव, शैलेन्द्र नाथ, पीसी कुरील, एसडी शुक्ला, मंदाकिनी राय, रचना राय, सुमन गुप्ता, इम्तियाज अहमद, रफीक सुल्तान, वजीह, कल्पना पाण्डेय, शिल्पी चौधरी, ममता सिंह, अंजना, रितिका, प्रणाली, सतपाल, शिवनारायण कुशवाहा, एहशानुल हक मलिक, केके शुक्ला, सुदीप गौतम आदि मौजूद रहे।

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