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सिक्योरिटी

यौन उत्पीड़न पर बोलने से पहले जाति और विचारधारा देखती सोशल मीडिया

Janjwar Team
1 Nov 2017 9:31 AM GMT
यौन उत्पीड़न पर बोलने से पहले जाति और विचारधारा देखती सोशल मीडिया
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आज के दौर में यौन उत्पीड़न पर सामाजिक प्रतिक्रिया के नजरिये से देखें तो 'राह बचाकर निकल जाने' की प्रवृत्ति हमारे समाज में आम हो गई है और यह कोई आपवादिक घटना न होकर हमारे समाज की सहज प्रवृत्ति बनती जा रही है...

कश्यप किशोर मिश्र

एक ऐसे दौर में, जब इस मुल्क के एक महानगर में फुटपाथ पर एक कमजोर औरत के साथ दिन के उजाले में खुलेआम शराब के नशे में धुत एक आदमी बलात्कार कर रहा हो, अपनी बीमारी और कमजोर दशा से लाचार बेहद क्षीण प्रतिरोध कर पा रही बलत्कृत औरत की निरीह आँखे खुलेआम हो रहे अपने बलात्कार पर किसी सामाजिक प्रतिरोध की आस में मदद के लिए दूर दूर तक जाती हों और जब यह देखे की बजाय कि प्रतिरोध करने के, लोग रास्ता ही बदल ले रहें हों, तो इस पर आदमी क्या बात करे?

पर क्या यह प्रवृत्ति एक आपवादिक घटना मात्र थी? आज के दौर में यौन उत्पीड़न पर सामाजिक प्रतिक्रिया के नजरिये से देखें तो 'राह बचाकर निकल जाने' की प्रवृत्ति हमारे समाज में आम हो गई है और यह कोई आपवादिक घटना न होकर हमारे समाज की सहज प्रवृत्ति बनती जा रही है।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने से पहले सोशल मीडिया जिसे आज अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है, वह भी जाति और विचारधारा टटोलती है।

इसकी परख, हाल के ही एक अनुभव से होती है। हाल ही में राया सरकार नाम की एक लड़की ने, सोशल साइट पर एक लिस्ट जारी की जिनमें उन लोगों के नाम हैं जिन पर शिक्षा संस्थानों में, लड़कियों ने प्रकट या अप्रकट तरीके से यौन शोषण के आरोप लगाए।

राया की लिस्ट में से एक नाम मेरी मित्र सूची में शामिल एक महानुभाव का भी था, लिहाजा सोशल साइट पर उक्त महानुभाव को टैग करते हुए मैंने इस पर उनका पक्ष पूछा।

उक्त महानुभाव पर पूर्व में भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं, पर पहले ये आरोप व्यक्तिगत तौर पर लड़कों द्वारा और ज्यादातर उनके वैचारिक विरोधी पंथ द्वारा लगाए जाते रहे थे, पर राया द्वारा जारी की गई सूची व्यक्तिगत न होकर लड़कियों के साझा अनुभव के आधार पर बनाई गयी थी, जो व्यक्ति विशेष को निशाना बनाते हुए नहीं बनाई गयी थी। लिहाजा इसे तवज्जो देना मुझे जरूरी लगा।

मेरे उक्त परिचित एक प्रभावी नाम हैं, जो दिसंबर 2012 से सोशल साइट पर मेरे मित्र थे, उनको टैग कर सवाल उठाने के पूर्व, मेरे और उनके दो सौ बाइस साझे मित्र थे। उक्त मित्र से उनका पक्ष पूछने के साथ—साथ मैंने राया सरकार की सूची भी साझा की और अपने उक्त मित्र के पक्ष में लिखे सीपीआई की एक महिला नेत्री की टीप भी साझा की।

यह जानना दिलचस्प था कि उक्त पोस्ट करने के चौबीस घंटे बाद तक, हमारे बीच के दो सौ बाइस साझा मित्रों में से एक की भी किसी भी तरह की प्रतिक्रिया उस पोस्ट पर नहीं थी, जबकि ग्यारह लोगों ने मुझे ख़ामोशी से अमित्र कर दिया। हमारे साझे दो सौ बारह मित्रों में से ज्यादातर सामाजिक मुद्दों पर वाचाल और मायाजाल पर अक्सर मौजूद रहने वाले लोग हैं और समसामयिक मामलों पर लगातार प्रतिक्रिया देते हैं। बमुश्किल पंद्रह-बीस लोगों की प्रतिक्रिया उस पोस्ट पर नजर आई। यहाँ तक कि दिन—रात औरतों के पक्ष की बातें करती महिलाओं ने भी उक्त पोस्ट से दूरी बनाये रखी।

उक्त महानुभाव ने पोस्ट देखी, उस पर अपने पक्ष वाली टीप, जो मैंने डाली थी, उसे लाइक किया और किसी भी तरह की प्रतिक्रिया या जवाब दिए बिना चले गए। पांच घंटे बाद उक्त महानुभाव ने मुझे अमित्र कर दिया।

इस तरह की खबरों पर सामाजिक प्रतिक्रिया के अपने अध्ययन को आगे बढ़ाते हुए, अगले दिन मैंने अपनी पहली पोस्ट और उस पर हुई प्रतिक्रिया के आकंड़ों को लेते हुए एक छोटी सी टीप बनाई और उसे न सिर्फ सोशल साइट पर पोस्ट किया, बल्कि बाकी बचे दो सौ ग्यारह में से ज्यादातर साझे मित्रों को वह टीप व्यक्तिगत रूप से इनबॉक्स में भी भेज दी

नतीजे चौकाने वाले थे...

सत्तर प्रतिशत की अब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, करीब दस प्रतिशत ने हालांकि इनबॉक्स में सकारात्मक संकेत दिए, पर सार्वजनिक तौर पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी। करीब दस प्रतिशत ने सार्वजनिक तौर पर पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी। पांच प्रतिशत साझे मित्रों ने अबकी बार, ख़ामोशी से उक्त महानुभाव को अमित्र कर दिया।

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