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विमर्श

सोनू निगम! आपने 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' कितनी बार सुना

Prema Negi
17 Feb 2019 1:56 PM GMT
सोनू निगम! आपने भारत तेरे टुकड़े होंगे कितनी बार सुना
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अब तक यही समझा जाता था कि कलाकार संवेदनशील होता है और समस्याओं पर पैनी नजर रखता है, मगर परेश रावल, अनुपम खेर, किरण खेर, अभिजीत, हेमा मालिनी और अब सोनू निगम ने इस भ्रांति को तोड़ दिया है...

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

जनज्वार। पुलवामा आतंकी हमले के बाद पूरे देश से शोक सन्देश और प्रतिक्रियाएं आईं, फिल्म जगत भी इससे अछूता नहीं रहा। जावेद अख्तर और शबाना आजमी ने अपना पाकिस्तान का दौरा भी रद्द कर दिया। इन सबके बीच गायक सोनू निगम ने एक वीडियो सन्देश जारी कर जो कुछ कहा, वह चौंकाने वाला है। कहा जा रहा है कि उनका सन्देश फिल्म जगत के उन लोगों के लिए था जो असहिष्णुता या फिर मानवाधिकार के लिए समय समय पर आवाज उठाते रहे हैं।

इस विडियो में सोनू निगम ने कहा है, 'जवानों की शहादत का अफ़सोस आप क्यों मना रहे हैं? आप तो भारत तेरे टुकड़े होंगे, जैसी सोच रखने वाले सेक्युलर लोग हैं। सुना है कि आप लोग काफी बवाल मचा रहे हैं कि कुछ सीआरपीएफ के लोग मर गए हैं। कुछ 44 लोग थे, 44 लोग हों या 440 लोग, आप क्यों दुःख मना रहे हैं? इसमें दुख वाली क्या बात है? आप वो करिए जो इस देश में सही है, जो सेक्युलर लोग करते हैं। इन बातों पर दुख मनाना बीजेपी, आरएसएस, हिंदूवादी राष्ट्रवादी संस्था पर छोड़ दीजिये। वो करिए जो सेक्युलर लोग करते हैं। भारत तेरे टुकड़े होंगे, अफजल हम शर्मिंदा हैं, बोलिए। अगर भारत में रहना है तो इस तरह की सेक्युलर सोच होनी चाहिए। यहाँ बंदे मातरम् कहना गलत है। सीआरपीएफ जवानों की मौत पर दुःख मत मनाइए। नमस्ते भी नहीं बोलना है, लाल सलाम बोलिए।'

सोनू निगम के इस कथन से कहीं नहीं लगता कि इस आदमी को कोई भी दुःख है, उल्टा इस मौके का भी फायदा उन्होंने तथाकथित हिंदूवादी राष्ट्रवादी संस्थाओं को खुश करने के लिए उठाया है। उन्हें शायद समझ ही नहीं आ रहा है कि इन तथाकथित हिंदूवादी राष्ट्रवादी संस्थाओं और दलों के उभरने के बाद से ही इस तरह की घटनाएं बढी हैं। जाहिर है इस तरह की संस्थाएं इसी तरह का शोक मनाकर जनता के बीच अपनी पैठ बना रही हैं और दूसरी तरफ जवान शहीद होते जा रहे हैं।

हालत यहां तक पहुंच गयी है कि एक शोक के बीच में ही दूसरे शॉट का वक्त आ जाता है। इतना तो आप ने भी देखा होगा कि वर्ष 2014 के बाद इस तरह की घटनाएँ रोजमर्रा का समाचार हो गयी हैं। पुलवामा में आपके अनुसार 44 शहीद हुए, ये जवान एक साथ शहीद हो गए, इसलिए देश को गुस्सा है। एक-दो कर सम्भवतः इतने जवान तीन-चार महीनों में शहीद होते तब शायद यह रोजमर्रा का समाचार होता।

कुछ वर्ष पहले तक हम शहीदों के नाम तक याद रखते थे, 1962 के शहीद, 1965 के शहीद, 1971 के शहीद या फिर कारगिल के शहीद। तब जवान युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देते थे, पर अब तो बिना युद्ध के ही शहीद हो रहे हैं। बिना युद्ध के इतनी बड़ी संख्या में जवान हमारे देश में ही शहीद होते हैं, क्या इसे सरकार की नाकामी नहीं मानें? हम पाकिस्तान पर बरस लेते हैं, पर जब 2500 जवान एक साथ जाते हैं तब सरकार कोई सुरक्षा नहीं देती, कोई भी कार लहर उनके वाहनों से टकरा जाता है। इसे आप क्या कहेंगे? यदि आपने अपने घर पर ताला नहीं बंद किया है, और चोरी हो जाती है, तब क्या आप अपना कसूर नहीं मानेंगे?

सोनू निगम जी, प्रधानमंत्री का एक वक्तव्य तो आप बार बार सुन रहे होंगे, हमने सेना को आजाद कर दिया है। क्या इसका एक मतलब यह नहीं है कि आज तक सेना आजाद नहीं थी। साढ़े चार वर्ष से स्थितियां यही हैं, और सेना आजाद नहीं थी, इसे क्या समझें। एक सर्जिकल स्ट्राइक के चर्चे आज तक किये जा रहे हैं, उस पर बनी फिल्म को सरकार प्रमोट कर रही है, पर क्या किसी के पास यह जवाब भी है कि उस सर्जिकल स्ट्राइक का प्रभाव क्या पड़ा?

जहां तक भारत तेरे टुकड़े होंगे का सवाल है, इसे केवल गोदी मीडिया, बीजेपी या फिर एबीवीपी के लोग ही सुन पाते हैं। पुलिस भी सबूत नहीं खोज पाती। क्या सोनू निगम ने इस नारे को कभी भी सुना है? टुकड़े तो आप ने अपने वीडियो में कर दिया है, शायद आप को कभी पता नहीं चले। आपने हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवादी और सेक्युलर में देश बांट दिया है। अंतर केवल इतना है कि सेक्युलर हमारे सविधान के अनुरूप है, जबकि हिन्दुत्ववादी (राष्ट्रवादी नहीं) सोच आप जैसे लोगों की उपज है, पर संविधान के अनुरूप नहीं है।

जहां तक आपने बीजेपी को जवानों की शहादत पर अफ़सोस का मुद्दा उठाया है, उनका अफ़सोस इससे साफ़ जाहिर हो जाता है कि केवल इसी एक पार्टी का कोई कार्यक्रम इस घटना के बाद रद्द नहीं किया गया है, जबकि लगभग सभी पार्टियों के अनेक कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं। बीजेपी तो अपने चुनावी मोड में ही चल रही है, बैठे-बैठाए एक मुद्दा जो मिला है बाकी समस्याओं से हटाने का।

अब तक यही समझा जाता था कि कलाकार संवेदनशील होता है और समस्याओं पर पैनी नजर रखता है, मगर परेश रावल, अनुपम खेर, किरण खेर, अभिजीत, हेमा मालिनी और अब सोनू निगम ने इस भ्रांति को तोड़ दिया है।

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