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समाज

तीन तलाक की पीड़िता हिंदू बनने को तैयार

Janjwar Team
10 July 2017 4:52 PM GMT
तीन तलाक की पीड़िता हिंदू बनने को तैयार
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ज़ीशान अख्तर की रिपोर्ट

मुमताज़ की उम्र करीब 30 साल है. शादी को 12 साल हो गये. तीन बच्चे हैं. यूपी के झाँसी शहर के आवास-विकास इलाके में रहती है. झाँसी के ही रहने वाले एक शख्स से 2003 में उसकी शादी हुई. 21 दिसंबर 2004 को बेटी हुई. यह पहला बच्चा था.

बेटियों के पैदा होने पर कई लोग खुश नहीं होते, इसी तरह मुमताज़ का शौहर भी खुश नहीं था. गरीबी पर बेटी का होना बोझ मान लिया. कुछ अनबन हुई. 'बेटा पैदा करने को कहा था, फिर भी बेटी क्यों की?' जैसे बेहूदा सवाल किये. जिस बच्ची को पैदा हुए कुछ माह भी नहीं हुए, उसकी शादी की चिंता में मुमताब के मायके वालों से एक प्लाट खरीदवा लिया. इसके बाद बेटा हुआ. कुछ साल पहले फिर से एक बेटी हुई. अनबन फिर शुरू हुई. गुस्से में तलाक दे दिया. तीन तलाक कह कर मुमताज़ को घर से भगा दिया. एक नोटिस भी भेजा, जिसमें तलाक की बात लिखी थी.

ज़ाहिर है एक पत्नी और औरत होने के नाते मुमताज़ परेशान हुई. वह पुलिस के पास न जाकर सीधे मौलानाओं के पास चली गयी. झाँसी में ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड से सम्बद्ध दारुल कज़ा शरई अदालत के मौलानाओं ने मुमताज से जो कहा और उसके साथ जो किया, वह शर्मनाक की श्रेणी में रखा जा सकता है.

'तीन तलाक एक साथ एक ही वक़्त पर नहीं कह सकते. इसे नहीं माना जाना चाहिए.' इस बात को आधार बनाकर पीड़ित मुमताज ने शरई अदालत से मदद मांगी, लेकिन अदालत के अध्यक्ष मुफ़्ती सिद्दीकी नकवी ने कहा कि अगर महिला को शौहर ने तलाक दे दिया है तो उसे माना जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि तरीका गलत है. एक साथ तलाक नहीं हो सकता, लेकिन अब कह दिया है तो तलाक हो गया. वह इसमें कुछ नहीं कर सकते.

मुमताज़ यह सुन फूट-फूट कर रो पड़ी. उसने कहा कि उसकी मदद नहीं हो रही. दीन से यकीन उठ जाएगा. उसने कहा कि वह पीएम मोदी और सीएम योगी के पास जायेगी. उसने आखिर में ये भी कहा कि जब कोई कुछ नहीं करेगा तो वह हिन्दू धर्म अपना लेगी. हालांकि अब तक उसने ऐसा नहीं किया है.

मुमताज के हिंदू धर्म अपनाने की बात पर किसी पार्टी को सियासी फायदा हो सकता है. किसी का अपना एजेंडा हो सकता है. हो सकता है आपकी नज़र में धर्म खतरे में पड़ा हो. आपकी भावनाओं को ठेस पहुंची. आपने घुटन महसूस की हो. घर में, दोस्तों के बीच, मस्जिद में, जमात के साथ या दूसरे किसी मौके पर मजमे के सामने ‘तीन तलाक’ के मुद्दे को सियासी चाल बताया हो. सरकार की आलोचना की होगी. ये भी ज़ेहन में आया होगा कि धर्म और मुसलामानों को निशाना बनाया जा रहा है. ठीक है, लेकिन वक़्त ठहर कर सोचने का भी है. ये सोचने का कि मुमताज़ आखिर हिन्दू क्यों बनना चाहती है?

आलोचनाओं को साथ लीजिये. तकरीरें कीजिये, लेकिन तीन तलाक का शिकार जन्म से मुस्लिम महिला मुमताज़ अगर रो-रो कर कहती है कि अगर न्याय नहीं मिला तो ऐसे दीन से क्या फायदा; वह हिन्दू धर्म अपना लेगी, तो यह भी सोचिये कि यह किसकी नाकामयाबी है. ऐसी कितनी महिलायें हैं जो ये बात ज़ेहन में लाती होंगी. कोई मर्ज़ी से खुश होकर तो ठीक है. आज़ादी है. लेकिन अगर रो-रोकर ऐसा कहे तो यहाँ हार कौन रहा है?

मौलानाओं को जब पता है कि तीन तलाक एक साथ जायज नहीं है, तो उन्होंने मुमताज़ से ये क्यों नहीं कहा कि हम तुम्हारे साथ हैं. इस तरह तीन तलाक को नहीं माना जायेगा. शौहर को बुलाकर या उसके घर जाकर ये तीन तलाक का सही तरीका क्यों नहीं बताया? उसे ये क्यों नहीं बताया कि तीन तलाक के लिए तीन से चार सेकण्ड नहीं, बल्कि तीन से चार माह लगते हैं. इद्दत का वक़्त दिया जाता है. सोचने का वक़्त लिया-दिया जाता है.

ये भी क्यों नहीं बताया कि तीन तलाक की सभी शर्तों के पूरा होने पर तलाक होने के बाद निकाह के दौरान तय हुई मेहर की रकम भी पत्नी को अदा करनी पड़ती है, जिससे वह अपना भरण-पोषण कर सके. अगर ये आपका काम नहीं है तो फिर अदालत लगाकर क्यों बैठे हैं? आलोचना क्यों कर रहे हैं जब कोई दूसरा अपने ढंग से न्याय दिलाये जाने की बात कर रहा है.

मुमताज़ अकेली नहीं है. कई और भी हैं. इन्हें आखिर भरोसा क्यों नहीं दिलाया जाता कि जो हुआ वो गलत था. उनके सिर हाथ क्यों नहीं रखा. मौलानाओं के साथ ही मुस्लिम समाज ने भी क्यों नहीं कहा कि इस तरह से तो गलत है.

जब कोई गलत तरीके से तलाक दे रहा हो, मुस्लिमों-मौलानाओं को लगता है कि तीन तलाक की गलत व्याख्या की जा रही है. बदनाम किया जा रहा है, ये तो अल्लाह का तोहफा है, तो फिर वह ऐसा करने वाले मुट्टीभर मुस्लिमों को सही व्याख्या क्यों नहीं बता पा रहे.

आप टीवी पर सिर्फ सियासी लोगों पर इलज़ाम लगा रहे हैं. अखबारों में बयान दे रहे हैं. गालियाँ दे रहे हैं. गालियाँ सुन रहे हैं, लेकिन मुमताज़ के शौहर या ऐसे ही लोगों को तरीका नहीं समझा पा रहे, तो यह किसकी नाकामयाबी है?

देखें क्या कहती है पीड़िता :

(जीशान अख्तर दैनिक भास्कर डिजिटल से जुड़े हैं। रिपोर्ट उनके ब्लॉग से साभार।)

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