हदिया को पिछले 6 महीने से नज़रबंद कर दिया गया है, उसके रजिस्टर्ड विवाह को हाईकोर्ट द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया है, उसका परिवार , संघ, पुलिस, अदालत और प्रशासन उसे प्रतिदिन प्रताड़ित कर रहे हैं...
मनीषा भल्ला, पत्रकार
नाम: हदिया, जुर्म: संविधान द्वारा प्राप्त मौलिक अधिकारों के तहत अपनी पसंद का धर्म चुना। सज़ा: जेल, एनआईए से लेकर संघ उसके परिवार के पीछे, उसका एवं उसके परिवार का जीना दुश्वार।
हदिया के समर्थन मे स्वयं घोषित बड़ी बिंदी, गहरा काजल, कोल्हापुरी चप्पल, सूती साड़ी और लकड़ी के झुमके पहनने वाली गिटपिट गिटपिट करने वाली सो कॉल्ड नारीवादी, लिबरल, वामपंथी, सेक्यूलर सब पता नहीं किस खेत में कहां धनिया बो रहे हैं?
आर्टिकल 21 की धज्जियां उड़ गई, कोर्ट लव जेहाद का केस बनाकर जांच NIA को सौंप चुका है, लड़की के घर पुलिस फोर्स तैनात है, संघ ने मोर्चा खोल रखा है, लेकिन हदिया एक बहादुर लड़की है। अपनी इच्छा को फौलाद बनाए उसके लिए अटल है। शादी तो एक मरहला था, असल बात अपनी इच्छा से किसी धर्म को मानना और उस पर अडिग रहना अपराध कब से हो गया पता ही नहीं।
24 साल की लड़की कमजोर और जल्द चपेट में आने वाली होती है और उसका कई तरीके से शोषण किया जा सकता है। चूंकि शादी उसके जीवन का सबसे अहम फैसला होता है इसलिए उनकी शादी का फैसला सिर्फ अभिभावकों की सक्रिय संलिप्तता से ही लिया जा सकता है।
हदिया को पिछले 6 महीने से नज़रबंद कर दिया गया है, उसके रजिस्टर्ड विवाह को हाईकोर्ट द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया है, उसका परिवार , संघ, पुलिस, अदालत और प्रशासन उसे प्रतिदिन प्रताड़ित कर रहे हैं।
क्योंकि वह पहले "अकिला अशोकन" थी, उसने इस्लाम का अध्ययन किया और मुसलमान बन गई, उसने एक मुस्लिम को अपना जीवनसाथी चुना और भारत की संवैधानिक प्रक्रिया अपना कर उसने कोर्ट में रजिस्टर्ड शादी भी की।
इसलिए सर्वोच्च से लेकर उच्च न्यायालय तक की नज़र में ना तो उसे इस देश के संवैधानिक और ना मौलिक अधिकार पाने का हक है, ना बालिग होने के बावजूद अपना पति चुनने का अधिकार।
फिलहाल लड़की हादिया 6 महीनों से कोर्ट, पुलिस, जाँच एजेंसी, परिवार, संघ से अकेले लड़ रही है सेक्युलर, अम्बेडकरवादी, समाजवादी, दलालवादी, संविधानवादी, मानवतावादी सब के सब ख़ामोश हैं।