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समाज

स्वच्छता की यह तस्वीर उत्तराखंड के सबसे बड़े अस्पताल सुशीला तिवारी हॉस्पिटल की है

Janjwar Team
6 Feb 2018 5:33 PM GMT
स्वच्छता की यह तस्वीर उत्तराखंड के सबसे बड़े अस्पताल सुशीला तिवारी हॉस्पिटल की है
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मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान को आइना दिखाता उत्तराखण्ड के सबसे बड़े अस्पतालों में शामिल सुशीला तिवारी हॉस्पिटल, जहां जच्चा—बच्चा वार्ड में सिजेरियन बच्चा पैदा करने वाली प्रसूताएं जिन टॉयलेट्स का प्रयोग करती हैं, उनकी हालत देखकर घिन तो छोटी चीज है, वहीं पर उल्टी निकल जाएगी

जनज्वार, हल्द्वानी। उत्तराखण्ड में कुमाऊं के प्रवेशद्वार कहे जाने वाले हल्द्वानी स्थित सुशीला तिवारी अस्पताल का विवादों से चोली दामन का साथ रहता है। इसके पीछे जिम्मेदार हैं उसकी प्रशासनिक व्यवस्थाएं। थोड़े दिन पहले डॉक्टरों ने एक गर्भवती महिला को भर्ती करने से मना कर दिया, जिसके बाद महिला ने रैन बसेरे में बच्ची को जन्म दिया था।

उत्तराखण्ड के इस सबसे बड़े हॉस्पिटल का प्रशासन अपने मरीजों के स्वास्थ्य के प्रति कितना गंभीर है, इसे देखना हो तो बच्चा—जच्चा वार्ड में उस हिस्से को देखा जाना चाहिए, जहां सिजेरियन बच्चों को जन्म देने के बाद महिलाएं भर्ती हैं। साथ में नवजात शिशु भी, जिन्हें कि साफ—सुथरे माहौल में होना चाहिए। स्वच्छ भारत अभियान की बात करने से पहले एक नजर इस हॉस्पिटल के टॉयलेटस पर भी जरूर डाल लेनी चाहिए।

इस जच्चा—बच्चा वार्ड में सिजेरियन पैदा हुए बच्चों की माताएं जिन टॉयलेट्स का प्रयोग करती हैं, उनकी हालत देखकर घिन आना तो छोड़िए वहीं पर उल्टी हो जाएगी। ऊपर से पूरे वार्ड में सिर्फ एक इंग्लिश टॉयलेट लगा है, जबकि यहां भर्ती एक भी जच्चा की हालत ऐसी नहीं है कि वह इंडियन टॉयलेट का प्रयोग कर पाए। इंग्लिश टॉयलेट भी ऐसा कि न उसमें फ्लश काम करता है, न ही पानी की कोई और व्यवस्था। लगभग एक मीटर की दूरी पर लगे नल के पास एक बड़ी—सी बाल्टी रखी हुई है। एक नवप्रसूता वो भी जिसका आॅपरेशन हुआ हो, उस बाल्टी से कैसे पानी ले पाएगी यह आसानी से समझा जा सकता है।

आॅपरेशन से बच्चा पैदा करने वाली मां इस टॉयलेट का प्रयोग कैसे कर पाएगी, यह सिर्फ सोचा जा सकता है। वार्ड में जितनी भी जच्चा हैं, सभी जल्दी से जल्दी वहां से घर जाना चाहती हैं, सबसे बड़ी समस्या उनके लिए टॉयलेट ही बना हुआ है।

खैर, किसी तरह कोई हिम्मत करके जच्चा टॉयलेट में चली भी जाती हैं, तो वहां के गंदगी से पटे टॉयलेट में दोबारा तब तक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं, जब तक कि अति न हो जाए। जच्चाओं के तीमारदार तो रैन बसेरे में बने टॉयलेट्स का उपयोग करते हैं, मगर मजबूरी में अगर इस गंदगी से पटे टॉयलेट का उपयोग करता भी है तो बिना उल्टी किए शायद ही कोई बाहर निकलता है।

कोई भी टॉयलेट ऐसा नहीं है, जिसमें पानी और फ्लश की सुचारू रूप से व्यवस्था हो। सवाल यह है कि क्या यहां का प्रशासन और स्टाफ भी ऐसे टॉयलेटस का उपयोग कर पाएगा।

जितने भी डॉक्टर मरीजों को देखने आते हैं वो नाक बंद किए रहते हैं ताकि वो बदबू को महसूस तक न कर पाएं। एक डॉक्टर नाम न बताने की शर्त पर कहती हैं, यहां की गंदगी को देखकर इतनी घिन आती है कि हम तो उस तरफ देख भी नहीं सकते, उसे यूज करना तो बहुत दूर की बात।

हैल्पिंग स्टाफ का व्यवहार रहता है बहुत खराब, मामूली बातें पूछने पर भी भड़क जाती हैं नर्सें

टॉयलेट के अलावा जो दूसरी सबसे बड़ी बात मरीजों और उनके तीमारदारों को परेशान करती है वह है यहां की नर्सों का व्यवहार।

अपनी बड़ी बहिन जिसने कि सिजेरियन बच्चे को जन्म दिया है, के साथ देखभाल करने रुकी भावना जब नर्स से कुछ पूछती है तो नर्स ऐसे भड़क जाती है कि जैसे उसने कुछ गुनाह कर लिया हो। ऐसे ही अपनी बहू की देखभाल कर रहीं एक बुजुर्ग अनपढ़ महिला जब कहती है कि बिटिया जरा बता दोगी इनकी डॉक्टर कौन हैं? तो नर्स इस तरह उन पर चढ़ जाती हैं कि उन्होंने प्राइम मिनिस्टर के घर का पता पूछ लिया हो। नर्स बुजुर्ग महिला से कहती है, तुम क्यों आई हो इनके साथ जब तुम्हें कुछ पता ही नहीं है, हमने ठेका नहीं ले रखा इन सब बातों को बताने का। रिशेप्सन पर जाकर पता करो।

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