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शिक्षा

लखनऊ विश्वविद्यालय में धरना—प्रदर्शन का रेट तय, देना होगा 25 हजार जुर्माना

Janjwar Team
18 July 2017 10:09 AM GMT
लखनऊ विश्वविद्यालय में धरना—प्रदर्शन का रेट तय, देना होगा 25 हजार जुर्माना
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विश्वविद्यालय प्रशासन ने कहा, हां हमने 16 जुलाई को जारी किया सर्कुलर, छात्रों के धरना—प्रदर्शन करने पर लगाएंगे 25 हजार जुर्माना, क्यों का जवाब पत्रकारों को नहीं, देंगे सिर्फ अधिकारियों को...

अनुराग अनंत

'चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले, जो कोई चाहनेवाला तवाफ़ को निकले, नज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जाँ बचा के चले,

लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर प्रो. विनोद सिंह ने 16 जुलाई को फरमान जारी किया है कि विश्वविद्यालय परिसर में नए सत्र से धरना, प्रदर्शन, जुलूस या सभा करने पर छात्रों पर 25,000 का जुर्माना लगाया जायेगा। फरमान ये भी है कि अगर अगर चार-छह छात्र एक साथ समूह में चलेंगे या मंत्रणा-विमर्श करते हुए पाए जायेंगे तो उन्हें समूह या झुण्ड माना जायेगा और उन पर प्रशासनिक कार्यवाही की जाएगी।

विश्वविद्यालय प्रशासन ने पहली बार धरना—प्रदर्शन करने का रेट 25 हजार जुर्माने के रूप में वसूलने का निर्णय लिया है।

गौरतलब है कि विश्वविद्यालय में पिछले महीने 7 जून को 'हिन्दवी स्वराज कार्यक्रम' में आमंत्रित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को छात्रों ने अपनी मांगों को लेकर काले झंडे दिखाए थे। छात्रों का यह विरोध विश्वविद्यालय में व्याप्त भ्रष्ट्राचार, प्रदेश में बढ़ रही अराजकता, खस्ताहाल क़ानून व्यवस्था, महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा, सहारनपुर दंगे और विश्वविद्यालयों में सत्ता पक्ष के बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप के खिलाफ था।

छात्र संगठनों के मुताबिक उन्होंने अपनी समस्याओं को लेकर कई बार विश्वविद्यालय के जिम्मेदार अधिकारियों व राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा था लेकिन उनकी समस्याओं पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो उनका आक्रोश बढ़ता गया। यूपीएसएसएससी के साक्षात्कारों पर रोक और बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर भी छात्रों में भारी रोष व्याप्त था, जो मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाने के रूप में निकाला।

मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाने के लिए लिए 12 छात्रों और 2 छात्राओं पर गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए। 10 छात्रों और दो छात्राओं पर 120बी जैसी गंभीर धाराओं में मुक़दमे दर्ज किए थे, जो कि याकूब मेनन और अफ़ज़ल गुरु जैसे आतंकियों पर लगाई गयी थीं। यानी सरकार का कैम्पस में प्रतिरोधी स्वर वाले छात्रों पर दमनवादी रवैया और पूर्वाग्रह इस बात से समझा जा सकता है कि लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वाले छात्र-छात्राओं को ये सरकार आतंकियों की श्रेणी में रखती है।

लगभग 27 दिन जेल की सजा काट कर वापस लौटीं आइसा की पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष पूजा शुक्ला कहती हैं, "हम 90 के दशक में पैदा हुए बच्चे हैं। हमने 1975 का आपातकाल नहीं देखा है, पर हम मौजूदा आपातकाल देख रहे हैं। जो सतह के नीचे से बिन बोले अघोषित रूप से कैंपसों और लोकतान्त्रिक आवाजों को बंद करने के लिए लगा दिया गया है।"

इस मामले में गिरफ्तार समाजवादी छात्रसभा के अनिल यादव "मास्टर" कहते हैं, "जेल काटने के बाद हमें पता चला है अभिव्यक्ति की आज़ादी के खतरे उठाने ही पड़ेंगे। हम ये खतरे उठाएंगे। क्योंकि हम लोहिया की जिन्दा कौमें हैं और हम पांच साल इन्तजार नहीं करेंगे। विश्वविद्यालय के इस मनमाने फरमान का हम सभी पुरजोर विरोध करेंगे।'

सरकार के इस तानाशाहीपूर्ण रवैये से लगता है कि विश्वविद्यालय जो कल तक लोकतांत्रिक समाज में रहने लायक मनुष्य का निर्माण करते थे, कैंपस डेमोक्रेसी के ट्रेनिंग कैम्प होते थे,अब इंसानी मशीन बनाने की फैक्ट्री हो जायेंगे। अगर ऐसा हुआ तो हम एक यांत्रिक समय गढ़ेंगे, जो यांत्रिक समाज और यांत्रिक मनुष्यों को जन्म देगा। हमारा लोकतंत्र भी बेहद यांत्रिक हो जायेगा, जिसे किसी मठ या गढ़ से बैठकर नियंत्रित किया जायेगा।

प्रशासनिक पक्ष पर विश्वविद्यालय रजिस्ट्रार आरके सिंह की दो टूक

सवाल : विश्वविद्यालय ने धरना—प्रदर्शन का रेट 25 हजार तय किया है?
जवाब : यह अधिकार विश्वविद्यालय को है, कई चीजें देखनी होती हैं पर पत्रकारों को केवल सवाल पूछना होता है।
सवाल : और क्या करें पत्रकार?
जवाब : जमीनी सच्चाई जानें। उन्हें पता ही नहीं विश्वविद्यालय के हालात क्या हैं।
सवाल: क्या विश्वविद्यालय में गुंडे—गुंडियों की भरमार हो गयी, छात्र अपराधी में तब्दील हैं या हुआ क्या है जो उनके दो—चार की संख्या में भी कार्यवाही की बात आपलोेगों ने सर्कुलर में लिखा है?
जवाब : हम आपको नहीं अधिकारियों को देंगे जवाब। ज्यादा सवाल करना हो तो प्रॉक्टर को फोन करें।

आखिरी सवाल : सर! सर्कुलर मेें बहुत साफ नहीं है कि धरना प्रदर्शन में शामिल एक—एक छात्र पर 25 हजार का जुर्माना लगेगा, या पूरे प्रदर्शन का रेट 25 हजार है या क्या?
जवाब— फोन कट गया !!!

(अनुराग अनंत बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में पत्रकारिता के शोध छात्र और लखनऊ में जनज्वार के सहयोगी पत्रकार। विश्वविद्यालय, कॉलेज और स्कूल से जुड़ी खबरें [email protected] पर मेल करें। )

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