राजनीति

यूपी के भरवलिया गांव में 70 साल में न पुल बना, न बिजली पहुंची और न राशन की दुकान खुली

Prema Negi
24 April 2019 4:18 AM GMT
यूपी के भरवलिया गांव में 70 साल में न पुल बना, न बिजली पहुंची और न राशन की दुकान खुली
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भरवलिया के ग्रामीणों की जिंदगी और मौत के बीच सिर्फ नदी का फासला, 1500 वोटर हर चुनाव में देते हैं उम्मीदों के साथ वोट, मगर चुनाव खत्म होते ही गायब हो जाते हैं इनके मुद्दे, 5 साल बाद चुनावों के वक्त दिखने वाले जनप्रतिनिधियों को नहीं है इनकी समस्याओं से कोई वास्ता...

बलरामपुर से फरीद आरजू की रिपोर्ट

जनज्वार। लोकतंत्र के इस महापर्व में वोटरों के दम पर देश के सबसे बडे पंचायत घर में पहुंचने का ख्वाब देख रहे प्रत्याशियों को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले की उतरौला तहसील स्थित भरवलिया गांव के लोगों का दर्द महसूस नहीं हो रहा है।

जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते भरवलिया गांव के लोगों को आज भी कोटे की दुकान से राशन खरीदने से लेकर अस्पताल और थाना, कचहरी पहुंचने के लिए नाव से नदी पार करना पड़ता है। आजादी के बाद से राप्ती नदी पर एक अदद पीपे के पुल की मांग कर रहे भरवलिया वासियों ने 72 साल का वक्त गुजार दिया, लेकिन उन्हें आज तक पीपे का पुल नसीब नहीं हो सका। उनकी जिन्दगी आज भी आदिवासियों से भी बदतर बनी हुई है।

बलरामपुर जिले का अन्तिम और पड़ोसी जिले सिद्धार्थ नगर की सीमा से सटा गाँव भरवलिया है। यह नंदौरी ग्राम सभा का एक मजरा है। नंदौरी और भरवलिया गाँव के बीच से राप्ती नदी प्रवाहित होती है। यहाँ मिश्रित आबादी के करीब तीन हजार लोग निवास करते हैं, जिनमें 15 सौ वोटर हैं।

सरकारी योजनाएं गाँव तक पहुंचने में राप्ती नदी बाधक सिद्ध हो रही है। ग्रामीण सुरेश कुमार, हिदायत उल्ला, राबिया, हसीबुर्रहमान बताते हैं, आपात स्थिति में डायल 100 से लेकर सरकारी एंबुलेंस की सेवा आज तक गाँव वासियों को नसीब नहीं हो सकी है। इन गाड़ियों की स्टेयरिंग गाँव की ओर मुड़ती जरूर है, लेकिन उसका पहिया राप्ती नदी के मुहाने पर पहुंच कर ठहर जाता है।

नदी पार करने के लिए जिस नाव का सहारा लिया जाता है उसकी कीमत ग्रामीणों को मल्लाह को चुकानी पड़ती है। इस गाँव में एक प्राथमिक विद्यालय और एक जूनियर हाईस्कूल है, जिसके चलते वोट डालने की सुविधा उन्हें उसी मजरे में मिल रही है। कक्षा 8 से आगे की पढाई के लिए नदी पार कर तहसील मुख्यालय आना बच्चों की मजबूरी है। मगर यह नदी लड़कियों की आगे की शिक्षा के लिए बाधक ही साबित हो रही है। 8वीं के बाद आगे की पढाई यहाँ की बच्चियां नहीं कर पाती हैं।

कोटे की दुकान से राशन उठाने के लिए यहाँ के लोगों को नदी पार कर नंदौरी गाँव आना पड़ता है। गाँव में एएनएम सेंटर न होने से गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण समय से नहीं हो पाता है। ऐसी महिलाओ को आंगनबाड़ी केन्द्र तक आने के लिए नाव का ही सहारा है।

पीड़ित ग्रामीण कहते हैं, बाढ़ के समय मौत हथेली पर रखकर दिन रात गुजारने पड़ते हैं। सारा गाँव जलमग्न हो जाता है। इस दौरान किसी की तबीयत खराब होने पर तांडव करती राप्ती नदी को पार करना मौत से जंग जीतने के बराबर होता है। मकान बनाने के लिए ग्रामीणों को पड़ोसी जिले सिद्धार्थनगर से भवन सामग्री खरीद कर लाना पड़ती है।

काफी मांग के बाद भरवलिया गाँव में बिजली आपूर्ति के लिए खंभा लगाकर तार तो खींच दिया गया है, लेकिन विद्युत आपूर्ति अभी तक बहाल नहीं हो सकी है। बलरामपुर जिले से बिजली आपूर्ति बहाल करने में भी राप्ती नदी खलल पैदा कर रही है। ऐसे में सिद्धार्थनगर जिले से बिजली आपूर्ति की तैयारी हो रही है।

ग्राम प्रधान मोहम्मद मुकीम कहते हैं, अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक इस गाँव में आने से कतराते हैं। सिर्फ चुनाव के समय किसी एक उम्मीदवार के दर्शन हो पाते हैं। भरवलिया गाँव के लोग नदी पर पीपे के पुल की मांग आजादी के बाद से करते चले आ रहे हैं, लेकिन आज तक उनकी मांग पूरी नहीं हो सकी है। इससे नाराज भरवलिया वासी कहीं इस चुनाव में मतदान के दौरान प्रत्याशियों के खिलाफ नोटा के जरिये अपनी नाराजगी का इजहार न कर दें, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।

नाव से नदी पार कर यहाँ करते हैं मतदान

उत्तर प्रदेश में बलरामपुर जिले के उतरौला तहसील के 15 सौ वोटरों की खातिर पोलिंग पार्टियां नाव से नदी पार कर मतदान केन्द्र तक पहुंचेगी, तो वहीं तीन गाँवों के मतदाता भी नाव से नदी पार कर बूथों तक जायेंगे और मतदान कर लोकतंत्र के महापर्व का हिस्सा बनेंगे।

जानकारी के अनुसार बलरामपुर जिले से होकर गुजरने वाली राप्ती नदी के मुहाने पर वैसे तो सैकड़ों गाँव बसे हैं, लेकिन उतरौला तहसील के मस्जिदिया, नन्दौरी, फत्तेपुर और बभनपुरवा ऐसे गाँव हैं, जहाँ की आबादी नदी के दोनों ओर निवास करती है।

ये सभी मतदाता आजादी के बाद से हर चुनाव मे नाव के सहारे नदी पार कर मतदान केन्द्रों पर पहुंचते हैं। निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार राप्ती नदी के मुहाने पर बसा नन्दौरी ग्राम सभा का एक मजरा भरवलिया है, जो नदी के उस पास स्थित है। इस गाँव के लोगों के आवागमन का एक मात्र साधन नाव है। आगामी 6 मई को होने वाले चुनाव में पोलिंग पार्टियां नाव पर सवार होकर बूथ तक पहुंचेगी।

हाँ कुल 1500 मतदाता हैं। फत्तेपुर गाँव का मजरा वजीरगंज भी नदी के उस पार स्थित है। यहाँ करीब सवा दो सो वोटर हैं। ये सभी नाव से नदी पार कर वोट डालने जायेंगे। यही स्थिति बभनपुरा गाँव के कटरा मजरे की भी है। खटरा के करीब 140 मतदाता अस्थाई पीपे के पुल के सहारे नदी पार कर बभनपुरवा में बने मतदान केन्द्र पर पहुंचेंगे और अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

इसी तरह मस्जिदिया गाँव के हसनगढ के करीब डेढ सौ मतदाता नाव के सहारे राप्ती नदी पार कर अपने प्रत्याशी के पक्ष में वोट करेंगे। एआरओ अरुण कुमार गौड़ ने बताया कि मतदाताओं और पोलिंग पार्टियों के लिए नाव की व्यवस्था करने का निर्देश लेखपालों और ग्राम प्रधानों को दिया गया है। इन गाँवों के मतदाताओं को मतदान के दिन कोई असुविधा न हो, इसका ध्यान रखा जायेगा।

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