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संस्कृति

नहीं रहीं उत्तराखण्ड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी

Prema Negi
7 July 2018 6:39 AM GMT
नहीं रहीं उत्तराखण्ड की पहली लोकगायिका कबूतरी देवी
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बीमारी के बाद भर्ती थीं पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल में...

हल्द्वानी, जनज्वार। उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध स्वर कोकिला कबूतरी देवी का निधन अभी थोड़ी देर पहले गंभीर रूप से बीमार होने के बाद पिथौरागढ़ के जिला अस्पताल में निधन हो गया। 73 वर्षीय कबूतरी देवी को 5 जुलाई की रात को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

“आज पनि झौं-झौ, भोल पनि झौं-झौं, पोरखिन त न्है जूंला” और “पहाड़ों को ठण्डो पाणि, कि भलि मीठी बाणी” जैसे प्रसिद्ध कुमाउंनी गीतों को स्वर देने वाली कबूतरी देवी पिछले लंबे समय से बीमार चल रही थीं।

उत्तराखण्ड की तीजन बाई कही जाने वाली कबूतरी देवी मूल रुप से सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लाक के क्वीतड़ गांव की रहने वाली थीं। काली-कुमाऊं यानी चम्पावत जिले के एक मिरासी लोक गायक परिवार में जन्मी कबूतरी देवी ने संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के देब राम और देवकी देवी और अपने पिता रामकाली जी से ली। कबूतरी देवी के पिता प्रख्यात लोकगायक थे, इसलिए लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली।

पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। जब कबूतरी देवी रेडियो में गाती थीं, तब तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। 70 के दशक में इन्होंने पहली बार पहाड़ के गांव से स्टूडियो पहुंचकर रेडियो जगत में अपने गीतों से धूम मचा दी थी।

कबूतरी देवी खासतौर पर ऋतु आधारित गीत ऋतुरैंण गाया करती थीं। कबूतरी देवी जी ने जो भी लोकगीत गाए वे उन्हें बाप—दादाओं से मिले प्रकृति से संबंधित लोकगीत थे। पहाड़ के आम जनमानस में बसे लोकगीतॊं को पहली बार उन्होंने स्वर दिया।

आकाशवाणी के लिये सैकड़ों गीत गाने वाली कबूतरी देवी ने अपने पति की मृत्यु की बाद आकाशवाणी के लिये और समारोहों के लिये गाना बन्द कर दिया था, क्योंकि वही उन्हें आकाशवाणी ले जाया करते थे।

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