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राजनीति

उत्तराखण्ड सरकार ने बच्चों के मामले में लिया एक आपराधिक फैसला

Janjwar Team
17 Sep 2017 11:18 AM GMT
उत्तराखण्ड सरकार ने बच्चों के मामले में लिया एक आपराधिक फैसला
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सरकार का मकसद सरकारी स्कूलों को सही करना होता तो इसकी कमजोरियां तलाश कर उसे दुरुस्त किया जाता, लेकिन मंशा सरकारी शिक्षा को खत्म करना है...

चंद्रशेखर जोशी

हल्द्वानी। उत्तराखण्ड सरकार ने फैसला किया है कि कम छात्र संख्या वाले तीन हजार स्कूलों को बंद किया जाएगा। यहां के शिक्षकों को दूसरे स्कूल में शिफ्ट किया जाएगा। यानी कि इनमें पढ़ने वाले बच्चे अपना इंतजाम स्वयं कर लें और स्कूल भवन किसी अन्य विभाग या पंचायत को सौंप दिए जाएंगे।

ऐसा इसलिए क्योंकि एक फैसला कुछ दिन पहले और भी लिया था त्रिवेंद्र सरकार ने, वह ये कि जिन स्कूलों में ज्यादा छात्र संख्या है, उन्हें पीपीपी मोड में किसी निजी कंपनी या प्राइवेट स्कूल के माध्यम से चलाया जाएगा।

क्या किसी की समझ में आया कि बीमारी है कहां? जहां कम बच्चे हैं वहां के शिक्षकों को रोज गालियां, जहां अधिक बच्चे हैं उनको निजी कंपनियां चलाएंगी। आखिर सरकार की मंशा है क्या?

असल बात ये है कि किसी भी सरकारी स्कूल में पूर्ण सुविधाएं नहीं हैं। करीब दो-तीन दशक पहले बने भवनों में रंग-रोगन तक नहीं किया जाता। जो थोड़ी बहुत बजट कभी मिला तो उसका हिस्सा मंत्री-अफसर बांट खाते हैं। सरकारी स्कूलों को इतना बदनाम कर दिया गया है कि लोग पढ़े—लिखे शिक्षकों से अपने बच्चों को पढ़ाने के बजाए इंटर पास युवक-युवतियों से पढ़ने के लिए निजी स्कूलों में भेजते हैं।

आज तक सरकारी स्कूलों में प्राइमरी में अंग्रेजी भाषा तक ठीक से शुरू नहीं की गई। स्कूलों में जो शिक्षक पढ़ाई या ड्यूटी में लापरवाही करते हैं उनके खिलाफ कार्रवाई जरूरी है, मगर ऐसा भी नहीं है कि जिन स्कूलों में बच्चे कम हैं वहां आबादी नहीं है। आबादी भरपूर है, लोग वाहन लगाकर बच्चों को पांच किलोमीटर दूर निजी स्कूलों में भेज रहे हैं। आखिर क्यों उठ रहा है लोगों का सरकारी स्कूलों पर से भरोसा।

यदि सरकार का मकसद सरकारी स्कूलों को सही करना होता तो इसकी कमजोरियां तलाश कर उसे दुरुस्त किया जाता, लेकिन मंशा सरकारी शिक्षा को खत्म करना है।

सर्वे किया जाए तो सरकारी स्कूलों से ज्यादा खराब हालत प्राइवेट स्कूलों की है। इसके बाद भी सरकार प्राइवेट स्कूलों को बंद नहीं करती, बल्कि सरकारी स्कूलों को बंद करने का फरमान जारी हो गया है। यह मामला यहीं थमने वाला नहीं है, जल्द ही इसकी चपेट में माध्यमिक व उच्च शिक्षा भी आने वाली है। उत्तराखंड सरकार के फैसले से उलट दिल्ली सरकार ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने का प्रयास किया है, यदि ऐसे सुधार किए जाएं तो स्कूलों की संख्या कम पड़ेगी।

शिक्षा सचिव चंद्रशेखर भट्ट के 15 सितंबर को दिए गए एक आदेश के अनुसार एक किलोमीटर के दायरे में आने वाले ऐसे प्राइमरी और जूनियर स्कूलों को बंद कर उनका विलय एक स्कूल में कर दिया जाएगा, जहां छात्र संख्या दस और दस से कम है। इसके साथ ही तीन किलोमीटर के दायरे में आने वाले जूनियर हाईस्कूलों का भी विलय एक स्कूल में करने की सहमति शासन की तरफ से दे दी गई है।

त्रिवेंद्र रावत कैबिनेट के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे इतने बड़े पैमाने पर स्कूलों को बंद किए जाने के मामले में कहते हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए यह बेहद जरूरी हो गया था। इससे सरकार पर अनावश्यक आर्थिक बोझ कम होगा। जो धन अलग-अलग स्कूलों में दिया जाता था, वो सारा अब एक स्कूल पर ही इस्तेमाल होगा। इससे हर स्कूलों को पर्याप्त संसाधन मिलेंगे और प्राइवेट स्कूलों के समान हर कक्षा को एक शिक्षक देना भी मुमकिन हो जाएगा।

लेकिन क्या वो यह बताएंगे कि थोड़े समय पहले उनकी सरकार ने जिन स्कूलों में छात्र संख्या ज्यादा है उन्हें पीपीपी मोड में डालने का फैसला लिया था, वह क्यों लिया था। पीपीपी मोड के तहत किसी निजी कंपनी या प्राइवेट स्कूल के माध्यमों से स्कूल चलाया जाता है।

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