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उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस 9 नवंबर पर विशेष
फिर से एक बार बंद कमरों में बैठकर पलायन आयोग के कर्ता-धर्ता पहाड़ से पलायन के कारण ढूंढ़ेंगे। ये वही लोग हैं, जिन्होंने कभी पहाड़ की ओर रुख तक नहीं किया...
देहरादून से मनु मनस्वी
लंबे जनांदोलन और सैकड़ों शहादतों के बाद जनमा उत्तराखंड आज 17 वर्ष पूरे कर अठारहवें वर्ष में प्रवेश कर गया है। यौवन की दहलीज लांघ चुके इस राज्य की हालत अब भी उस बच्चे की भांति है, जिसने अब तक केवल और केवल गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, पलायन और भ्रष्टाचार ही देखा है। ऐसे में कैसे उम्मीद करें कि सरकारी आंकड़ों में जवान हो चुके इस राज्य का भविष्य उज्ज्वल होगा?
राज्य की नीयति रही है कि अब तक बारी बारी से भाजपा-कांग्रेस ने इसे अपनी मनमर्जी से हांका है। नित्यानंद, कोश्यारी, तिवारी, खंडूड़ी, निशंक, बहुगुणा, हरीश और अब त्रिवेन्द्र सरकार ने राज्य के हितों के प्रति कम और अपने चहेते नौकरशाहों के हितों के प्रति अधिक मुफीद निर्णय लिए, जिससे राज्य साल दर साल पीछे जाता रहा।
भ्रष्टाचार के खुले आरोप लगने के बाद भी कई नौकरशाह सरकार की आंखों का तारा बने रहे। यहां तक कि रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें सेवा विस्तार के नाम पर पाला पोसा गया यहां की जनता के पैसों पर।
हां, राज्य आंदोलन में भागीदारी निभाने को भुनाते हुए उक्रांद ने जमकर सत्ता की मलाई चाटी। और तो और कोई निर्दलीय सत्ता से दूर रहकर जनता की हिमायती होने की हिमाकत नहीं कर सका। जिसकी सरकार बनी, सब उसी ओर ढुलक गए।
अलग राज्य बनने के पीछे जो सोच थी, उसका एक बड़ा उद्देश्य यह था कि उत्तर प्रदेश के साथ रहते यहां के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग यहां के मूल पहाड़ियों को नहीं मिल पा रहा था। अब भी स्थिति वही है। आज भी हम उत्तर प्रदेश के उपनिवेश बने हुए हैं।
शराबबंदी, रोजगार, पलायन जैसे मुद्दे अब भी जस के तस हैं। इस नई सरकार ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए बाहर से विशेषज्ञ बुलाकर पलायन आयोग रूपी सफेद हाथी भी पाल लिया है, जो अगले पांच वर्षों तक राज्य की जनता के पैसों पर पलेगा और अंत में न कोई धरातली रिपोर्ट प्रस्तुत कर पाएगा और न ही पलायन रुकने की ओर एक भी कदम उठाया जा सकेगा। कारण कि बंद कमरों में बैठकर पलायन आयोग के कर्ता-धर्ता पलायन के कारण ढूंढेंगे। ये वही लोग हैं, जिन्होंने कभी पहाड़ की ओर रुख तक नहीं किया।
गैरसैंण हर बार की तरह इस बार भी गैर ही नजर आता है। जनता को भरमाने के लिए विधानसभा सत्र आयोजित करने और स्थाई राजधानी की बजाय ग्रीष्मकालीन-शीतकालीन का खेल खेल रही सरकार जनता को पांच साल तक यही लॉलीपाप दिखाकर भरमाती रहेगी।
पिछली कांग्रेस सरकार ने अस्पतालों को पीपीपी मोड में देकर कायाकल्प के दिवास्वप्न देखे, जो बिखरने ही थे। निजी हाथों में सौंपने से सरकार की मंशा जाहिर हो गई कि वो खुद कुछ करने की इच्छा नहीं रखती और न ही कुव्वत।
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर भूमाफिया, खनन माफिया मालामाल हो रहे हैं और यहां के बाशिंदे बाहरी शहरों में जाकर भांडे होटलों में मांजने को मजबूर हैं। शराब यहां मुख्य समस्या रही है, जिसने कई घर बर्बाद किए हैं और राज्य की बर्बादी का एक बड़ा कारण यही है।
शराबबंदी को मुद्दा बनाकर ही इस बार भाजपा बंपर बहुमत से सत्ता में आई, लेकिन छह माह बीतते-बीतते उसने हाथ खड़े कर दिए। कभी आबकारी मंत्री प्रकाश पंत का बयान आता है कि शराबबंदी एकदम न होकर धीरे-धीरे की जाएगी और कभी कहते हैं कि शराबबंदी पूर्ण रूप से संभव नहीं।
स्थिति यह है कि लगभग तीन हजार शराब के ठेके और खोले जाने की तैयारी है, और तो और ठेकों के खुलने का समय भी रात 11 बजे तक करने की मंशा सरकार ने दिखा दी है, जबकि वीरान हो चुके सरकारी विद्यालयों में सुविधाएं चाक चैबंद करने की बजाय सरकार उन पर ताला लगा रही है।
क्या यह हास्यास्पद नहीं कि पर्यटन और ऊर्जा क्षेत्र, जो राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, उस ओर सुधार करने की बजाय सरकार शराब से राजस्व जुटाने पर अधिक ध्यान दे रही है।
बहरहाल बुझे मन से सभी राज्यवासियों को राज्य स्थापना दिवस की शुभकामनाएं। इस उम्मीद के साथ कि कुछ बेहतर हो।