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विमर्श

भाजपा से सवाल करने के बजाय कांग्रेस के पीछे क्यों पड़ी हैं मायावती : कमाल खान का विश्लेषण

Prema Negi
25 May 2020 11:27 AM GMT
भाजपा से सवाल करने के बजाय कांग्रेस के पीछे क्यों पड़ी हैं मायावती : कमाल खान का विश्लेषण
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मायावती बता रही हैं कि देश में महामारी के बाद आज जो हालात बने हैं इन सबके पीछे कांग्रेस जिम्मेदार है। जिसकी सरकार नहीं है, जिसके पास कोई ताकत नहीं है, वो आखिर मजदूरों के पलायन के लिए कैसे जिम्मेदार है....

एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान का विश्लेषण

जनज्वार। मायावती का बीजेपी के लिए जो सॉफ्ट कार्नर है, उसका अभी जो सबसे बड़ा कारण है वो है सीबीआई और ईडी। उनके भाई की कई सौ करोड़ की प्रॉपर्टी है, जिसे कई साल पहले बीजेपी जब्त कर चुकी है। उनके भाई आनंद का पैसा जब्त हो चुका है। उसके बाद दूसरा कारण है चीनी मिल बेचने में मायावती के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप। उत्तर प्रदेश में जब वो सत्ता में थीं, तब बहुत सारी चीनी मिलें बेची गयी थीं, जिनके बारे में कहा गया था कि उन चीनी मिलों का स्क्रैप उनसे ज्यादा महंगा है, इसलिए सैकड़ों करोड़ की जमीनों के साथ चीनी मिलें बेच दी गई थीं। उस दौरान इस पर तमाम खबरें प्रकाशित हुई थीं।

मेरे ख्याल से उस मामले में सीएजी की रिपोर्ट में ऑब्जेक्शन भी उठा था। उस पर किसी ने पीआईएल भी दाखिल की थी। पत्रकारों ने बताया था कि बहुत समय से बीजेपी के लोग उस केस को उठाने के पीछे काम कर रहे थे।

लॉकडाउन में सत्ताधारी पार्टी पर मायावती की चुप्पी का कारण है उस मामले में जांच का आदेश दिया जाना। मायावती की चुप्पी का दूसरा कारण उनके भाई हैं, इसके अलावा भी कई कारण हैं चुप्पी के। मायावती जितनी भी बार सत्ता में आकर मुख्यमंत्री बनीं, वह भाजपा के समर्थन से। 1995 में वह पहली बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनीं थीं। सिर्फ एक बार व​ह बहुमत से सत्ता में आयीं। बाकी समय वह भाजपा के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बनी हैं। ऐसे में उनका बीजेपी के साथ जाना उनके राजनीतिक लाभ को सूट करता है।

ही मायनों में जिसमें थोड़ी सी भी राजनीतिक समझ हो वो ये आसानी समझ सकता है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार गए कितना जमाना हो गया। आज की तारीख में जो भी मजदूर पलायन कर रहा है और जिस मुम्बई से कर रहा है, वहां देश के 100 सबसे बड़े रईस रहते हैं। उनके बारे में फोर्ब्स मैगजीन कहती है कि उनकी नेट वर्थ ही 34 लाख करोड़ है। जिस शहर में 34 लाख करोड़ नेट वर्थ के लोग रहते हों, वहां से आदमी अगर भूखा चला आये तो इससे बड़ी शर्म की बात आखिर क्या हो सकती है? दूसरी बात ये कि जिनके पास ये पैसा है वो क्या इन लोगों के लिए कोई मैकेनिज्म नहीं बना सकते। लोग भूख-प्यास से बेहाल हो 1500-1700 किलोमीटर साइकिल से ठेले से सफर कर रहे हैं।

र ये हालात तब हैं जब सरकार के पास सबकुछ है। पुलिस है, पावर है, नेता-मिनिस्टर हैं, सारा मैकेनिज्म उनका है, पर उन्होंने सिस्टम नहीं बनाया। वो पूंजीपतियों से बात करते, मजदूरों को भरोसा दे सकते थे कि आपको हम सुरक्षा और खाना देंगे। सैकड़ों किलोमीटर किसी को भी जाने की जरूरत नहीं थी। इसके लिए नेहरू, मनमोहन या कांग्रेस जिम्मेदार नहीं हैं।

हां तक मेरा मानना है कि एक देश जिसके पास इतनी बड़ी ताकत है कि वो पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश बना सकता है, कश्मीर जैसे हालात में दफा 370 खत्म कर सकता है, जिस देश के पास इतनी ताकत है कि वो चांद पर चंद्रयान भेज सकता है, आखिर गरीब मजदूरों को दो वक्त का खाना क्यों नहीं खिला सकता। इसके लिए योगी, ठाकरे, तेलंगाना के चीफ मिनिस्टर काम नहीं कर सकते थे, बल्कि केंद्रीय गृहमंत्री जो भाजपा के इतने बड़े चाणक्य माने जाते हैं, अगर वो सभी चीफ मिनिस्टर्स के साथ को-ऑर्डिनेट करते तो यह बहुत आसानी से हो जाता। हर स्टेट के पास बसों का इतना बड़ा बेड़ा होता है, हर एक जिले में इतनी बसें खड़ी हैं, उनको लगा दिया गया होता तो मजदूरों को इस पैदल चलने की जरूरत नहीं पड़ती। 100 से ज्यादा मजदूर बेमौत नहीं मरते। चूंकि ये को-ऑर्डिनेशन नहीं हुआ, इसलिए मजदूरों की बदहाली हुई और हो रही है।

मायावती भी इस वजह को भली भांति जानती हैं और जिसको राजनीति का अक्षर ज्ञान भी हो, उसको ये पता है कि इन मजदूरों की बदहाली की असल वजह क्या है? नेहरू, मनमोहन या सोनिया इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। अभी की समस्या के बजाय ये बात करना कि उन्होंने विकास किया होता या ये किया-वो किया होता तो अभी मुंबई या अन्य राज्यों से आने की वजह क्या है। अभी गुजरात-मुम्बई-दिल्ली से आने की व्यवस्था तो सरकार कर ही सकते थी न, आखिर वो भी क्यों नहीं कर पायी।

मायावती फिलहाल बीजेपी को खुश करना चाहती हैं, इसलिए बजाय मजदूरों के मामले में भाजपा की भूमिका पर सवाल उठाने के वह कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर रही हैं। उनके जितने भी ट्वीट हैं वो सभी खुशामदीद ट्वीट लगते हैं। आप उन ट्वीट को देखिये, उनकी भाषा देखिये। वो ट्वीट करती हैं कि मुझे अपील करनी है, अपील करती हैं वो। आप विपक्ष में हैं, जब इतने सैकड़ों मजदूर सड़क पर मर गए हैं, इतने मजदूर बेहाल हैं, करोड़ों लोग माइग्रेट कर रहे हैं। देश में यहां से वहां इतनी बदहाली पसरी है और उसमें सबसे बड़ी जो आबादी है वह ओबीसी और दलित लोगों की है, जो माइग्रेट करके लौटकर आ रहे हैं।

लितों-पिछड़ों की जो नुमाइंदा नेता हैं, वो जब सरकार को ट्वीट करती है तो कहती हैं हम...हम आपसे अपील करते हैं। वो इतनी तैयारी करके अपील करती हैं, इतनी खुशामद करके ट्वीट अपील करती हैं उसका आखिर क्या मतलब है, कोई भी समझ सकता है। जिसको राजनीति का 'र' भी आता है वो भी समझ जायेगा इसके मायने। मायावती शायद आगे जाने का कोई रास्ता बना रहीं है, उनको लगता है कांग्रेस कमजोर है तो हम बीजेपी के साथ जाकर कोई पॉलिटिकल पावर ले सकते हैं।

कांग्रेस और मायावती का वोट बैंक एक ही है। यानी दोनों एक दूसरे को पछाड़कर ही आगे बढ़ेंगे।

ब प्रियंका गांधी के मामले में देखिये। सोनभद्र से खबर आई कि जमींदार ने लोगों पर गोलियां चलाईं और 11 आदिवासी वहां मार दिए गए। प्रियंका वहां चली गईं। उनको रोका जा रहा था वो सड़क पर धरने पर बैठ गईं चुनार किले में। तब फौरन मायावती ने प्रियंका गांधी की बुराई करनी शुरू कर दी, उन पर अटैक करना शुरू कर दिया गया। प्रियंका गांधी ने हाल ही में प्रवासी मजदूरों के लिए जो बसों की मांग की या बसों को लेकर जो विवाद ​हुआ, उस पर फौरन मायावती आक्रामक हो गयीं। आखिर इसका कारण क्या है? सवाल उठता है कि आप मजदूरों के पक्ष में आवाज नहीं उठा रही हैं और कोई और उठा रहा है तो उसे काम करने दें, उसमें बाधा क्यों डाल रही हैं? कोई मजदूरों के हक की आवाज उठा रहा है, कम से कम उसका विरोध तो मत कीजिये।

मायावती कह रही हैं कि मजदूरों की आज जो हालत है, उसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार है, जबकि लोग जानते हैं कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? आज की तारीख में सड़क पर जो भी मजदूर भूखे-प्यासे चल रहे हैं, उनसे जाकर पूछिये की क्या नेहरू जिम्मेदार हैं इसके लिए, क्या नेहरू ने तुमको भूखा रखा है, क्या मनमोहन सिंह ने भूखा रखा है तो शायद वह थप्पड़ जड़ देगा।

मायावती कोई आंदोलन नहीं करती हैं, वो सड़क पर नहीं उतरती हैं। चूंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक दलित नेता चंद्रशेखर रावण पैदा हो गए हैं, वो बहुत सारे मुद्दे उठाते हैं और उन मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरते हैं, इसलिए बहुत सारे दलितों का उन्हें सपोर्ट है, वो उनके पीछे चले आते हैं। मायावती ने अपने यहां से आर्डर जारी किया हुआ है कि हमारा कोई भी आदमी सड़क पर आंदोलन नहीं करेगा। यानी मायावती देश की एकमात्र ऐसी पॉलीटिकल पार्टी की नेता हैं, जो जनता को रोक रही हैं अपने मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरने के लिए।

बाकायदा ऑर्डर जारी करके मायावती अपने लोगों को इसलिए रोक रही हैं, क्योंकि उनको लगता है कि कहीं हमारे लोग चंद्रशेखर के साथ न चले जायें। चंद्रशेखर की लीडरशिप में उनकी पार्टी से जुड़े लोग आंदोलन न करने लग जाएं, इसलिए अब वो उनकी बुराई करती रहती हैं। चंद्रशेखर दलितों के मुद्दे उठा रहे हैं, इसलिए मायावती उन पर भी अटैक करने लगी हैं।

क्या किसी को ये याद है कि मायावती की पिछली रैली कब हुई थी। चुनाव रैली के अलावा आज तक मायावती ने देश के किसी भी मुद्दे पर कोई रैली नहीं की है। आखिर वो किसके लिए राजनीति करना चाहती हैं। महंगाई, बेरोजगारी, कानून—व्यवस्था कमी या पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों के मुद्दे को मायावती को कभी नहीं उठाया। जब इंटरनेशनल मार्किट में पेट्रोल-डीजल बहुत सस्ता हो गया है, तब भी जनता को इतना पैसा देना पड़ रहा है, उल्टा कीमतें बढ़ा दी गयी हैं।

खिर विपक्षी दल जनता के मुद्दे पर ही तो आंदोलन करेगा। सोनभद्र में नरसंहार हुआ, बहुत सारे लोग मरे, दलितों—पिछड़ों के साथ तमाम कांड-लिंचिंग हुई, अखलाख की लिंचिंग या किसी भी तरह की लिंचिंग हुई, इतने ओबीसी-दलित मार दिए गए किसी के घर मायावती नहीं गयीं, आखिर किस बात की नेता हैं वो। मायावती किसी से मिलती नहीं हैं, कोई प्रेस-कॉन्फ्रेंस नहीं करतीं। पहले रैली करती थीं बड़ी-बड़ी, अब वो भी बन्द हो गईं। बाद में उन्होंने प्रेस का कांफ्रेंस करना शुरू किया, जिसमें सिर्फ वो बोलती थीं, कोई जर्नलिस्ट सवाल करता था तो उठकर चली जाती थीं। जब उन्होंने सवाल का जवाब देना शुरू किया तो प्रेस-कॉन्फ्रेंस बन्द कर दीं और ANI को बाइट देने लगीं। अब वो ट्वीट करती हैं और उनकी पार्टी के लोग उनका ट्वीट सारे टीवी मीडिया में फारवर्ड करते रहते हैं कि बहिन जी की बात टीवी पर चली जाये।

मायावती अपने हर ट्वीट में बीजेपी से अपील करती रहती हैं तो ऐसा नेता आखिर किस काम का। नेता का मतलब है कि जिस गरीब आदमी ने उसको वोट दिया है वो जब सबसे बड़ी मुसीबत में हो तो उसको उसके नेता का सपोर्ट मिले।

देश में विभाजन के बाद जब सबसे ज्यादा लोग इधर से उधर हुए थे, तब भी ऐसी हालत में नहीं था आम आदमी, जिन हालातों में वह अब गुजर रहा है। जो प्रवासी मजदूर घरों को लौट रहे हैं, उनमें सबसे बड़ी आबादी दलित और पिछड़ों की हैं। मायावती कभी नहीं गईं इन लोगों के बीच। राहुल गांधी प्रवासी मजदूरों से फुटपाथ पर बैठकर बात कर रहे हैं।

लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि मायावती सीबीआई से डरी हैं इसलिए भाजपा को इतनी मुहब्बत में वो लिखती हैं 'हम अपील कर रहे हैं' क्या गरीब मजदूरों की हालत देखकर उन्हें गुस्सा नहीं आता। आप केंद्र के साथ खड़ी हैं, कांग्रेस को गालियां दे रहीं हैं। इसका मतलब आप बीजेपी को बचाना चाहती हैं, इसीलिए लगातार कांग्रेस को कोस रही हैं महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की इस दुर्दशा के लिए। (आलेख बातचीत पर आधारित)

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