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राजनीति

भाजपा-आरएसएस की चाटुकारिता के लिए ख्यात राकेश सिन्हा को राष्ट्रपति ने बनाया संस्कृति-समाज के कोटे से राज्यसभा सांसद

Prema Negi
14 July 2018 2:50 PM GMT
भाजपा-आरएसएस की चाटुकारिता के लिए ख्यात राकेश सिन्हा को राष्ट्रपति ने बनाया संस्कृति-समाज के कोटे से राज्यसभा सांसद
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राकेश सिन्हा थोड़े दिन पहले तब भी विवादों में आए थे जब माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय संचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय से उनके मुफ्त में लगभग 6 लाख रुपए वेतन लेने का हुआ था खुलासा...

जनज्वार, दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज चार अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। राष्ट्रपति कोविंद द्वारा ये मनोनयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर कला, संस्कृति, शिक्षा और सामाजिक कार्य कोटे से किये गए हैं।

मनोनीत होने वालों में मशहूर मूर्तिकार-शिल्पकार पद्म विभूषण रघुनाथ महापात्रा का चुनाव किया गया है तो मशहूर शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मान सिंह भी इस बार राज्यसभा भेजी गई हैं। उत्तर प्रदेश से बीजेपी के पूर्व दलित सांसद और किसान नेता राम सकल सिंह शामिल को भी राज्यसभा भेजा गया है। राज्यसभा भेजे जाने वालों में चौथा नाम टीवी डिबेट में संघ और आरएसएस की पैरवी के लिए ख्यात राकेश सिन्हा का है।

उनके मनोनयन पर तमाम तरह के सवाल सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं। गिरीश मालवीय लिखते हैं रघुनाथ महापात्रा, सोनल मान सिंह और किसान नेता राम सकल सिंह का का मनोनयन शायद शिक्षा और सामाजिक कार्य कोटे से किया गया होगा, पर टीवी चैनलों पर संघ और बीजेपी की पैरवी करने वाले डॉ. राकेश सिन्हा कौन सी कला के कलाकार हैं?

गौरतलब है कि राज्यसभा जाने वाले इन चारों लोगों को राष्‍ट्रपति कोविंद द्वारा क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, फिल्म अभिनेत्री रेखा, अनु आगा और के. पारासन के राज्यसभा में कार्यकाल पूरे होने के बाद मनोनीत किया है। तेंदुलकर, रेखा, अनु आगा और के पारासन का कार्यकाल पूरा होने से राज्‍यसभा की चार सीटें खाली हो गई थीं।

मोदी की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा भेजे गए राकेश सिन्हा मूल रूप से बिहार के बेगूसराय जिले के रहने वाले हैं। सिन्हा टीवी चैनल्स पर आने वाले डिबेट शो में अकसर संघ—भाजपा की हर सही—गलत पर पैरवी करते हुए देखे जा सकते हैं। फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय में मोतीलाल नेहरू कॉलेज में प्रोफेसर राकेश सिन्हा भारतीय सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान के सदस्य भी हैं।

थोड़े दिन पहले राकेश सिन्हा तब भी विवादों में आए थे, जब मीडिया में खबर आई थी कि माखनलाल विश्वविद्यालय ने नोएडा स्थित अध्ययन केंद्र में राकेश सिन्हा को प्रोफेसर बनाया और 6 महीने तक प्रतिमाह 1 लाख से ज्यादा वेतन दिया, मगर सिन्हा कभी अध्ययन केंद्र नहीं गए। सवाल उठा कि आखिर किस मद में सिन्हा को 6 लाख रुपए दिए गए, क्या यह भाजपा—आरएसएस की चाटुकारिता का पुरस्कार था, कुछ ऐसे ही सवाल उन्हें राज्यसभा भेजे जाने पर भी खड़े हो रहे हैं।

संघ प्रचारक राकेश सिन्हा को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय संचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय से मुफ्त में वेतन देने की बात भी सामने नहीं आई होती अगर यह बात सामने नहीं आती कि विश्श्विविद्यालय के पास बजट नहीं बचा है। तब जांच हुई कि आखिर पैसा कहां—कहां और किन—किन मदों में खर्च हुआ, इसी में यह खुलासा भी हुआ कि कुछ खास लोगों को उपकृत करने में विश्वविद्यालय की राशि उड़ाई गई।

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय संचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय मीडिया को ऐसा कोई भी साक्ष्य उपलब्ध नहीं करा पाया था, जिससे साबित हो कि राकेश सिन्हा एक भी दिन वहां आए थे। बिना विश्वविद्यालय गए राकेश सिन्हा का कार्यकाल 6 माह के लिए और बढ़ाया जा रहा था, लेकिन मीडिया में बात फैलने पर उनकी सेवाएं समाप्त की गईं।

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