संस्कृति

कैसे कह दें आजाद हो गए

Prema Negi
15 April 2019 5:23 AM GMT
कैसे कह दें आजाद हो गए
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रोहतक के युवा कवि संदीप कुमार की कविताएं

दखल

बहुत शोर मचा है

उस गोल गुंबज का

जिसका इतिहास रक्तरंजित है

मजदूरों के खून से

किसानों के खून से

जिसने हमेशा ताकतवर के पक्ष में

अपने फैंसले सुनाए हैं।

उसी गोल गुंबज के पक्ष में

भ्रमित किया जा रहा है

मेहनतकशों को

और ये भ्रम फैलाने कि

इस गोल गुंबज से ही

मुक्ति की राही निकलेगी

निकले हैं कुछ और रंगे शियार

यह कहते हुए

हम दखलांदाजी करेंगे

इस गोल गुंबज में घुसकर

मैं भी कहता हूँ

दखलंदाजी होनी चाहिये

उसके लिए

इस गोल गुंबज में जाने की जरूरत नहीं

जनता के बीच रहते हुए

जनता के साहस को

ऊपर उठाने की जरूरत है

जरूरत है जनता को बताने की

तुम्हारी मेहनत से ही

ये गोल गुंबज की सैर करते हैं

तुम्हारी मेहनत से ही

तुम्हारे खिलाफ ये लड़ते हैं।

जलियांवाला बाग

हमारा खून खौलता है

जब 1919 याद आता है

हमारा खून

पानी क्यों बन जाता है?

सौ साल बाद जब कोई

फर्जी मुठभेड़ करवाता है!

हम क्यों चुप हो जाते हैं

अन्याय के खिलाफ खड़े होने पर

जब किसी को जेल भेजा जाता है?

हम चाय की प्यालियों में

तूफान लाने वाले

जनसंघर्षों का नाम आते ही

बहुत जरूर काम है कहकर

क्यों रूखस्त हो लेते हैं?

जुल्म बढ़े हैं पहले से

अंग्रेजों से ज्यादा हुए हैं नरसंहार

मजदूरों, किसानों पर चली हैं गोलियां

दलितों और महिलाओं को जिंदा जलाया है

छात्र-छात्राओं पर

देशद्रोह के केस लगाए हैं

फिर कैसे कह दें आजाद हो गए

नीली स्याही के निशान से

हम सबको बहकाया है।

अब नहीं जन्मेंगे

उधम, अशफाक और भगतसिंह

हमें ही खड़ा होना है सीना तानकर।

ये सौ सालों के संघर्षों का जश्न

हम रोकर नहीं मनाएंगे

जो किये कत्ल जुल्मियों ने

न्यायप्रिय लोगों पर

हम उन सबकी शहादतों का बदला लेने

हे जुल्मी, तुम्हारे घर तक आएंगे!

हां, तुम्हारे घर तक आएंगे!

इस संसद के भ्रम को क्यों नहीं उखाड़ सकते?

क्रूर शासक

हमारी मेहनत का खाते थे

हमारी मेहनत को ही

दान-दक्षिणा में देते थे

हमारी मेहनत पर ही

करते थे सैर सपाटे और

ऐशो आराम।

आज के निर्वाचित शासक

इसलिए कहते हैं

राजाओं का राज बेहतर था

उसी सामंती विचारधारा को

फिर से व्यवहार में ला रहे हैं

कभी छात्रों पर लाठियां मारकर

कभी किसान मजदूरों पर गोलियां चलाकर

कभी बलात्कारों को जायज ठहराकर

जब मेहनत की लूट से

ऐशो आराम मिलता हो

जब मेहनत की लूट से

सुरक्षा कवच हो

तब घमंड आ ही जाता है

आखिर समझना तो हम

मेहनतकशों को ही है

जब हम सड़के बना सकते हैं

जब हम बांध बना सकते हैं

जब हम अंतरिक्ष में जा सकते हैं

जब हम रोटी, कपड़ा और

मकान बना सकते हैं

तब इन लूटेरों को

क्यों नहीं भगा सकते?

तब इन चोरों को

क्यों नहीं दफना सकते?

तब इन संसद के भ्रम को

क्यों नहीं उखाड़ सकते?

क्यों नहीं उखाड़ सकते?

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