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विमर्श

आखिर ये कैसा सनातन है जो दलित, आदिवासी और पिछड़ों के भविष्य में भर रहा है अँधेरा

Janjwar Desk
13 Sep 2023 12:15 PM GMT
आखिर ये कैसा सनातन है जो दलित, आदिवासी और पिछड़ों के भविष्य में भर रहा है अँधेरा
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file photo

आज जो लोग सनातन का झंडा बुलंद कर रहे हैं, उन्हें डॉ.आंबेडकर के विचारों से टकराना होगा, उन्हें बताना होगा कि जो धर्मग्रंथ करोड़ों दलितों को जीवनभर सेवा में जुटे रहने और उन्हें कभी मुक्त न करने का निर्देश देते हैं, उनके बारे में राय क्या है....

डॉ. उदित राज की टिप्पणी

प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश के बाद बीजेपी के तमाम नेताओं ने सनातन धर्म को लेकर विपक्ष के इंडिया गठबंधन के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। वे भूल गये हैं कि सत्ता के शीर्ष से अपनाया जा रहा ये रुख देश के करोड़ों दलितों और पिछड़ों के सीने में शूल की तरह धँस रहा है जिन्हें सनातन धर्म की परंपरा के नाम पर सदियों तक अस्पृश्यता और शिक्षा तथा रोज़गार से वंचित रखा गया। यहाँ तक कि आज़ादी के आंदोलन के दौरान जब महात्मा गाँधी ने शूद्रों के मंदिर प्रवेश का आंदोलन चलाया तो उनका विरोध भी सनातन परंपरा के नाम पर किया गया। थोड़ा और पीछे जायें तो सतीप्रथा के ख़िलाफ़ बने क़ानून का विरोध भी सनातन परंपरा के आधार पर किया गया था।

डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने जो कहा वह उत्तर भारतीयों के लिए ज़रूरी हैरान करने वाला है, लेकिन द्रविड़ आंदोलन की यह स्थापित मान्यता है जो ई.रामास्वामी पेरियार के आत्मसम्मान आंदोलन से उपजी है। एनडीए गठबंधन में शामिल एआईएडीएमके भी पेरियार को पथप्रदर्शक मानती है। अजीब बात है कि बीजेपी आईएडीएमके से पेरियार के विचारों पर कोई सफ़ाई नहीं माँग रही है। उसकी कोशिश यही है कि विपक्ष को ‘धर्म-विरोधी’ साबित करके ध्रुवीकरण कराया जाये।

हिंदू धर्म बहुत विशाल है। उसमें अद्वैत से लेकर साकार ब्रह्म तक की उपासना की जाती है। नास्तिकों के लिए भी स्थान है जैसे कि चार्वाक को ऋषि कहा जाता है। सनातन धर्म हिंदू धर्म का पर्याय नहीं, बल्कि एक शाखा है जिसका आधार वर्णव्यवस्था और पुनर्जन्म पर विश्वास है। यह दलित जाति में पैदा हुए लोगों को बताती है कि तुम्हारी तकलीफ़ों का कारण पिछले जन्म का कर्म है और मनुष्य को मनुष्य से ऊँचा-नीचा बताने वाली वर्णव्यवस्था को ईश्वरीय विधान मानती है। भारत में इस गैरबराबरी के विचार के विरोध की लंबी परंपरा रही है। कबीर, नानक, रैदास, सब इसी परंपरा के संत हैं।

1936 में लाहौर ‘जातपांत तोड़क मंडल’ के वार्षिक अधिवेशन में बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन लिखित भाषण में व्यक्त क्रांतिकारी विचारों को देखते हुए आमंत्रण वापस ले लिया गया था। बाद में यह भाषण ‘जातिप्रथा के उच्छेद’ के रूप में प्रकाशित हुआ। इस भाषण में डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि जातिप्रथा को धर्मशास्त्रों का समर्थन है इसलिए हिंदू इससे मुक्त नहीं हो सकता। डॉ.आंबेडकर ने इस भाषण में कहा था- “यदि आप जातिप्रथा में दरार डालने चाहते हैं तो इसके लिए आपको हर हालत में वेदों और शास्त्रों में डाइनामाइट लगाना होगा, क्योंकि वेद और शास्त्र किसी भी तर्क से अलग हटाते हैं और वेद तथा शास्त्र किसी भी नैतिकता से वंचित करते हैं। आपको श्रुति और स्मृति के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए। इसके अलावा कोई चारा नहीं है।” ( पृष्ठ 99, डॉ.आंबेडकर, संपूर्ण वाङ्गय, खंड-1, भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित)

इस भाषण को महात्मा गाँधी ने अपने अख़बार ‘हरिजन’ में प्रकाशित किया था और इस पर लंबी बहस चली थी जिसके बाद महात्मा गाँधी ने कहा था कि ‘जाति प्रथा आध्यात्मिक और राष्ट्रीय विकास के लिए हानिप्रद है।’ दोनों ही महापुरुष जाति प्रथा को हानिकारक मानते हुए, इसे ख़त्म करने के लिए अंतर्जातीय विवाह को उपाय बता रहे थे।

आज जो लोग सनातन का झंडा बुलंद कर रहे हैं, उन्हें डॉ.आंबेडकर के विचारों से टकराना होगा। उन्हें बताना होगा कि जो धर्मग्रंथ करोड़ों दलितों को जीवनभर सेवा में जुटे रहने और उन्हें कभी मुक्त न करने का निर्देश देते हैं, उनके बारे में राय क्या है? भारत का संविधान समता, स्वतंत्रता और समानता की बात करता है। डॉ.आंबेडकर ने कहा था कि जातिव्यवस्था के रहते भारत एक राष्ट्र नहीं बन सकता, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गर्व के साथ ख़ुद को क्षत्रिय बताते। उन्हें यह बात कभी नहीं समझ आयेगी कि यह गर्व कैसे उन लोगों को पीड़ा देता है जिन्हें जन्म से ‘नीची’ जातियों का माना गया है। बहुत दिन नहीं हुए जब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को पुरी के मंदिर में पूजा करते समय अपमानित किया गया और वर्तमान राष्ट्रपति मुर्मू जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। क्या दलित समाज इन प्रश्नों को उठाता है तो धर्म पर हमला बोलता है?

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पिछले दिनों ‘जितनी आबादी-उतना हक़’ का नारा दिया था। पार्टी जाति जनगणना की माँग कर रही है ताकि दलितों-पिछड़ों, आदिवासियों और अन्य वंचित वर्गों की सामाजिक हक़ीक़त सामने आ सके। बीजेपी इसे लेकर परेशान है इसलिए उसने सनातन का मुद्दा छेड़ दिया है जैसे कि कभी मंडल के ख़िलाफ़ उसे कमंडल उठा लिया था। आडवाणी जी ने रथयात्रा निकालकर धार्मिक ध्रुवीकरण कराया था। उस समय मौजूदा प्रधानमंत्री उनके सारथी थे। उस समय वे ‘सवर्ण’ थे। बाद में जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुए तो उनकी जाति ओबीसी की सूची मे दर्ज कर ली गयी। लेकिन पिछड़ों को मिला क्या? मोदी जी ने प्रधानमंत्री रहते दलितों पिछड़ों को बड़ी तादाद में नौकरियाँ दने वाले सार्वजनिक संस्थनों का तेजी से निजीकरण किया है। ये आरक्षण को खत्म करने की साज़िश ही है। आखिर ये कैसा सनातन है जो दलित, आदिवासी और पिछड़ों के भविष्य में अँधेरा भर रहा है?

हाल ही में सरसंघचालक मोहन भागवत ने माना है कि सामाजिक व्यवस्था के कारण हज़ारों साल तक शोषण हुआ। इसलिए आरक्षण अगले दो सौ साल तक जारी रहे तो बुरा नहीं। अगर उनकी मंशा ठीक होती तो कहते कि सनातन पर सवाल भी पीड़ा की उपज है, जिसे समझा जाना चाहिए। ये भी बताते कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई सरसंघचालक कभी दलित या पिछड़ी जाति का क्यों नहीं बनाया गया। या इस संगठन ने जातिप्रथा के नाश के लिए की कार्यक्रम क्यों नहीं चलाया जो हमेशा हिंदू एकता की बात करता है। क्या जातियों के रहते हिंदू एकता संभव है? महात्मा गाँधी और डॉ.आंबेडकर ने अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित किया था, लेकिन इसका भी सनातन के नाम पर ही विरोध होता है।

आज सरकारी नौकरियों को पूरी तरह खत्म किया जा रहा है। भागवत जी 2015 में आरक्षण की समीक्षा की बात कर रहे थे पर आज ये बयान इसलिए दे रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार ने आरक्षण को बेमानी बना दिया है। जहाँ कोई गुंजाइश होती भी है वहाँ तरह-तरह के षड्यंत्र किये जाते हैं। आखिर तमाम संस्थानों और नौकरियों में दलित-पिछड़े और आदिवासी समाज के लिए आरक्षित स्थान क्यों खाली हैं? हद तो ये है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देते हुए सरकार ने क्रीमी लेयर का मानक 8 लाख रुपये रखा है जबकि दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज के लिए यह बेहद कम है। क्या यह अन्याय नहीं है?

सनातन पर बात होगी तो दूर तलक जाएगी। करोड़ों दलितों-पिछड़ों के लिए यह आत्मसम्मान का मसला है, जिससे लड़ने की राह डॉ.आंबेडकर ने दिखाई है और जिनके बनाये संविधान को मोदी सरकार बदलना चाहती है।

(डॉ. उदित राज पूर्व सांसद और असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) के राष्ट्रीय चेयरमैन और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।)

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