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विमर्श

बौद्ध धर्म के पतन के लिए अवतारवाद, रहस्यवाद और परलोकी पलायनवाद जिम्मेदार, बुद्ध की ​मूल शिक्षाओं को बनाया संदिग्ध

Janjwar Desk
7 March 2021 10:09 AM GMT
बौद्ध धर्म के पतन के लिए अवतारवाद, रहस्यवाद और परलोकी पलायनवाद जिम्मेदार, बुद्ध की ​मूल शिक्षाओं को बनाया संदिग्ध
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ओशो, जग्गी वासुदेव, श्री श्री और न जाने किन किन चेहरों की आड़ में वेदान्तिक प्रतिक्रान्ति बार-बार स्वयं को संगठित कर रही है, ये लोग विज्ञान द्वारा दी गयी व्याख्याओं को आधे-अधूरे ढंग से अपने लिए इस्तेमाल कर लेते हैं और भक्तों के सामने विज्ञान के तर्कों से स्वयं विज्ञान को ही निरस्त कर देते हैं...

युवा समाजशास्त्री संजय श्रमण का विश्लेषण

जनज्वार। भारत में मुक्तिकामियों के जितने भी आन्दोलन या प्रयास चल रहे हैं उनके केन्द्रीय तर्क एक विकसित भौतिकवादी तर्क पर आधारित हैं। और जितने भी प्रतिक्रान्ति के षड्यंत्र चल रहे हैं वे सब अतिभौतिक, पराभौतिक या अध्यात्मिक या भाववादी तर्क पर आधारित हैं।

सरल भाषा में कहें तो भाववाद और भौतिकवाद की प्राचीनतम लड़ाई ही भारत में ब्राह्मणवाद और अंबेडकरवाद की लड़ाई बन रही है या कहें कि धर्म की और साम्यवाद की लड़ाई भी इसी का विस्तार है।

मार्क्स ने हीगल के भाववाद को सर के बल खड़ा करके वही काम किया था जो श्रमणों, लोकायतों, तांत्रिकों और आजीवकों ने शताब्दियों पहले भारत में किया था। हालाँकि वह काम फिर से भाववाद की षड्यंत्र की बाढ़ में खत्म हो गया और भारत धर्मप्राण राष्ट्र बनकर पतित और गुलाम हुआ।

उस समय विज्ञान का और तकनीक का इतना प्रचार नहीं हुआ था फिर भी जीवन और जगत की सामान्य घटनाओं और प्रेक्षणों से जो तर्क उभरता था उसी ने बहुत हद तक भाववाद कि बखिया उधेड़ दी थी, लेकिन बाद में राजसत्ता और पितृसत्ता ने जिस तरह जीवन के कोमल आयामों पर जीत हासिल की, उसके समानांतर भौतिकवादी तर्क और ज्ञान का लोप हुआ और धर्म, कर्मकांड, रहस्यवाद और अध्यात्म की बीमारी समाज पर हावी होती गयी।

भारत में ब्राह्मणों के आगमन के पहले बुद्ध सहित बौद्ध धर्म का उभार भौतिकवादी तर्कों पर आधारित विचारधारा की जीत की तरह उभरा और जल्द ही खुद अध्यात्म की पारलौकिक बाढ़ में अस्त हो गया। ब्राह्मण धर्म के ईश्वर की राजनीतिक शक्ति का जवाब खोजने के क्रम में बौद्धों ने बुद्ध को ही ईश्वर बना डाला।

बहुत सावधानी से देखा जाए तो बौद्ध धर्म का पतन असल में महायानी अवतारवाद और रहस्यवाद सहित परलोकी पलायनवाद के हाथों हुआ है। इस महायान ने ब्राह्मणवाद से भी भयानक परलोकवाद पैदा करके बुद्ध की मूल शिक्षाओं को ही संदिग्ध बना दिया।

आज भी लोग बुद्ध की अव्याख्य प्रश्नों की श्रृंखला में अध्यात्म और रहस्यवाद के बचाव के बहाने खोजते हैं। बुद्ध ने जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए थे या जिन प्रश्नों पर चर्चा से इनकार कर दिया था, उन्हीं प्रश्नों को आधार बनाकर ब्राह्मणवाद ने अपना जाल बुना था।

ठीक वही काम आज हो रहा है। भौतिकवाद और भौतिक विज्ञान ने अपने स्वाभाविक विकास क्रम में जिस क्वांटम फिजिक्स को जन्म दिया है वह भौतिक विज्ञान के ऐसे गहन आयाम को उद्घाटित कर रहा है, जहां सामान्य कार्यकारण नियम काम नहीं कर रहे हैं।

कम से कम माइक्रो वर्ल्ड और मैक्रो बर्ल्ड की कार्यपद्धति में एक विरोध सा खड़ा हो गया है। इस विरोध की व्याख्या करना कठिन हुआ जा रहा है और इस कठिनाई या इस अव्याख्य कठिनाई में ही जमाने भर के बाबा इश्वर को खोजकर प्रक्षेपित कर रहे हैं।

बस उतनी सी अव्याख्य जगह में उन्होंने इश्वर के नाम का महल खड़ा कर डाला है। इस महल को तोड़ना जरुरी। खुद क्वांटम फिजिक्स के जानकार इस महल की हंसी उड़ाते हैं लेकिन दुर्भाग्य से भौतिकशास्त्रियों का संबंध आम जनता से बिलकुल नहीं बन सका है और बाबाओं का संबंध आम जनता से खूब गहराता जा रहा है।

आगे भारत में जो दलित, साम्यवादी और नारीवादी आन्दोलन चलेंगे, उनमें क्वांटम फिजिक्स द्वारा सृजित इस अव्याख्य दशा की भाववादी व्याख्या के प्रयासों को चुनौती देनी होगी।

ये चुनौती बुद्ध के बाद बुद्ध के अव्याख्य प्रश्नों में रहस्यवाद को प्रक्षेपित करने के समय भी दी जानी थी, लेकिन ठीक से दी नहीं गयी, इसीलिये गीता और कृष्ण सहित पूरे वेदान्त ने बुद्ध की मूल शिक्षाओं को विकृत करके भारत को हजारों साल पीछे धकेल दिया।

आज फिर से वही खेल चल रहा है। भौतिकवाद और भौतिक विज्ञान की तमाम उपलब्धियों के बीच भी भाववादी और अध्यात्मिक मूर्खताएं चल रही हैं। ओशो, जग्गी वासुदेव, श्री श्री और न जाने किन किन चेहरों की आड़ में वेदान्तिक प्रतिक्रान्ति बार-बार स्वयं को संगठित कर रही है।

ये लोग विज्ञान द्वारा दी गयी व्याख्याओं को आधे अधूरे ढंग से अपने लिए इस्तेमाल कर लेते हैं और भक्तों के सामने विज्ञान के तर्कों से स्वयं विज्ञान को ही निरस्त कर देते हैं। ये गजब का खेल है जो अब बंद होना चाहिए। अगर ये बंद नहीं होता है तो भारत के सभ्य, वैज्ञानिक और संपन्न होने का कोई उपाय नहीं होगा।

भारत में कम से कम दलित आन्दोलन एक ठोस भौतिकवादी तर्क से ही आगे बढ़ सकता है। भौतिकवाद का तर्क ही अज्ञात और अज्ञेय पर खड़े सब भांति के धार्मिक रहस्यवादों और गुलामियों को तोड़ सकता है। बौद्ध धर्म ने अपने शुरूआती दौर में यही किया था। बाद में उसमें रहस्यवाद हावी हुआ और वह पतित हुआ।

उस पतन की आधुनिक केस स्टडी तिब्बत की बर्बादी में देखी जा सकती है। कैसे अवतारवाद, परलोक और पुनर्जन्म ने तिब्बत जैसे पूरे देश को तबाह कर डाला है ये जानने योग्य है।

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