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विमर्श

Female Orgasm पर बहस : जीव विज्ञान के विषय पर साहित्य के लोग ज्ञान दे रहे हैं

Janjwar Desk
27 April 2022 8:00 AM GMT
Female Orgasm पर बहस : जीव विज्ञान के विषय पर साहित्य के लोग ज्ञान दे रहे हैं
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Female Orgasm पर बहस : जीव विज्ञान के विषय पर साहित्य के लोग ज्ञान दे रहे हैं

Female Orgasm : बहस इस विषय पर होनी चाहिए कि नारी को इस देश में जन्म लेने, शिक्षा प्राप्त करने, समानता का अधिकार प्राप्त करने, अपनी मर्जी से जीवनसाथी और आजीविका चुनने का अधिकार क्यों नहीं मिलता है.....

दिनकर कुमार की टिप्पणी

Female Orgasm : जिस तरह अंधे को हाथी का वर्णन करने के लिए कहा जाए तो वह उस प्राणी का सटीक चित्रण नहीं कर सकता, उसी तरह नारी ऑर्गेज्म (Female Orgasm) का वर्णन अगर जीवविज्ञानी की जगह साहित्य जगत के लोगों को करने के लिए कहा जाए तो वे ऊलजलूल बातें ही करेंगे।

पिछले दिनों सेक्सुअलिटी पर अपनी बात रखने वाली एक महिला को उसकी बातों से अहसमत लोगों ने तरह-तरह से गालियां दी। महिला ने नारी ऑर्गेज्म पर किसी सर्वे का हवाला देते हुए अपनी बात रखी थी। महिला की बातों से इत्तेफाक नहीं रखने वाले लोगों ने महिला को कई तरह की गालियां दी। हद तब हो गई जब गाजीपुर के रहने वाले एक व्यक्ति ने उक्त स्त्री की सफाई तेजाब से करने की बात की।

यह मसला सोशल मीडिया (Social Media) पर आग की तरह उछला है। महिला द्वारा एसिड अटैक (Acid Attack On Women) की बात करने वाले व्यक्ति पर पुलिसिया कार्यवाही का अनुरोध किया गया है। हालांकि ट्रोल्स का एक तबका तेज़ाब से सफाई वाली बात का बचाव करता हुआ भी नज़र आया।

पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर नारी ऑर्गैज्म पर बहस हिन्दी साहित्य से जुड़े स्त्री-पुरुष चटखारे लेकर कर रहे हैं। उनकी मानसिकता सॉफ्ट पॉर्न से मजे लेने की तरह ही है। इसमें सुख से अघाए हुए वर्ग के स्त्री-पुरुष को अधिक बढ़-चढ़कर भाग लेते हुए देखा जा सकता है। इस बहस को देखकर अनायास ही याद आता है कि इस देश के प्रधानमंत्री ने जो मूर्खता का वातावरण निर्मित किया है उसका दायरा अब केवल राजनीति तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि उसके असर को समाज के हर क्षेत्र में देखा जा सकता है।

बहस इस विषय पर होनी चाहिए कि नारी को इस देश में जन्म लेने, शिक्षा प्राप्त करने, समानता का अधिकार (Right To Equality) प्राप्त करने, अपनी मर्जी से जीवनसाथी और आजीविका चुनने का अधिकार क्यों नहीं मिलता है। लेकिन बहस इस बात पर हो रही है कि सत्तर फीसदी स्त्रियों को चरम संतुष्टि से वंचित होना पड़ता है। गौर करें कि यह वही देश है जहां स्त्रियों को सबसे अधिक सताया जाता है।

एक रिसर्च के अनुसार भारत में महिलाएं सबसे पहले हिंसा का शिकार अपनी प्रारंभिक अवस्था में अपने घर पर होती हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उनके परिवारजन, पुरुष रिश्तेदारों, पड़ोसियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।

भारत में महिलाओं की स्थिति संस्कृति, रीति-रिवाज, लोगों की परम्पराओं के कारण हर जगह भिन्न है। भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों के कारण भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़कों पर केवल 940 लड़कियां ही थी। इतनी कम लड़कियों की संख्या के पीछे भ्रूण-हत्या, बाल-अवस्था में लड़कियों की अनदेखी तथा जन्म से पहले लिंग-परीक्षण जैसे कारण हैं।

राष्ट्रीय अपराधिक रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार महिलाएं अपने ससुराल में बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं। महिलाओं के प्रति होती क्रूरता में एसिड फेंकना, बलात्कार, आनर किलिंग, अपरहण, दहेज़ के लिए क़त्ल करना, पति अथवा ससुराल वालों द्वारा पीटा जाना आदि शामिल है।

इन बातों को बहस के केंद्र में लाने की जगह एक ऐसे मुद्दे पर तथाकथित पढ़ा-लिखा समूह वैचारिक मंथन करने में जुटा हुआ है जो पूरी तरह शरीर विज्ञान का मसला है।

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