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विमर्श

UPA सरकार में ही भारत घोषित कर चुका था सुरक्षा परिषद सदस्यता की अपनी उम्मीदवारी, फिर अभी वाहवाही क्यों

Janjwar Desk
21 Jun 2020 3:30 AM GMT
UPA सरकार में ही भारत घोषित कर चुका था सुरक्षा परिषद सदस्यता की अपनी उम्मीदवारी, फिर अभी वाहवाही क्यों
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जो पड़ोसी देश चीन, पाकिस्तान और नेपाल बने हुए हैं आज भारत के दुश्मन, उन्होंने भी सुरक्षा परिषद सदस्यता के लिए किया था वोट...

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण

जनज्वार। भारत एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य चुन लिया गया है। ऐसा आठवीं बार हुआ है। भारत का निर्वाचन एशिया-पैसिफिक समूह के प्रतिनिधि के रूप में हुआ है। बुधवार 17 जून को हुई वोटिंग में महासभा के 193 देशों ने हिस्सा लिया। इनमें से 184 देशों ने भारत का समर्थन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट के जरिये भारत को समर्थन देने वाले देशों का आभार जताया।

इसके पहले संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने ट्विटर पर वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से जानकारी देते हुए कहा कि मैं वाकई बहुत खुश हूँ कि भारत 2021—22 के लिए सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुन लिया गया है। हम एक जनवरी 2021 से सुरक्षा परिषद में शामिल होने जा रहे हैं और हमारा कार्यकाल दो साल का होगा।

भारत की इस जीत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देते हुए तिरुमूर्ति ने कहा कि सुरक्षा परिषद् में भारत का निर्वाचन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि और खासकर कोरोना काल में उनके द्वारा दुनिया के नेतृत्व को प्रेरणा देने का सबूत है।

भारत का गोदी मीडिया भी कुछ इसी तरह की बात कर रहा है, जबकि हकीक़त ये है कि ये जीत भारत की है न किसी व्यक्ति विशेष की। वैसे भी 2021—22 के लिए सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्य बनने की अपनी उम्मीदवारी की घोषणा भारत 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले 2013 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में ही कर चुका था।

तब एशिया-पैसिफिक समूह से अफ़ग़ानिस्तान ने भी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी, लेकिन बाद में भारत से बातचीत के बाद उसने अपनी उम्मीदवारी वापिस ले ली। लिहाजा इस समूह से भारत ही अकेला उम्मीदवार बना रहा। उस समय अशोक कुमार मुखर्जी संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि थे।

2013 में दिसंबर के पहले सप्ताह में अशोक कुमार मुखर्जी ने पीटीआई से कहा था -"हमने 2021—22 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के लिए उम्मीदवारी घोषित कर दी है। चुनाव 2020 में होंगे।"

इसके पूर्व 2011—12के दौरान भारत इस समूह से 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य था।

दी इकोनॉमिक टाइम्स में 5 दिसंबर 2013 को छपी पीटीआई की खबर के अनुसार भारत और अफ़ग़ानिस्तान ने अपने फ़ैसलों की सूचना दिनाक 21 नवम्बर को लिखे पत्र के माध्यम से सयुंक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के स्थायी मिशन को दे दी थी।

पीटीआई के अनुसार भारतीय मिशन ने अपने पत्र में लिखा था-"... भारत ने तय किया है कि वो 2021—22 के लिए सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करेगा, जिसके लिए चुनाव 2020 में संयुक्त राष्ट्र के 75वें आम अधिवेशन के दौरान होंगे। भारत का स्थायी मिशन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए भारत की उम्मीदवारी के प्रति सम्मानित सदस्य देशों के समर्थन का इच्छुक है।"

अशोक मुखर्जी ने पीटीआई से कहा कि 2021—22 के लिए सुरक्षा परिषद् की अस्थायी सदस्यता पर अफ़ग़ानिस्तान की नज़रें भी थीं लेकिन भारत के साथ "द्विपक्षीय बातचीत" के बाद और "अपनी अंदरूनी प्रक्रिया" के तहत एक दुर्लभ हाव-भाव दिखते हुए काबुल ने अपनी उम्मीदवारी वापिस ले ली।

पीटीआई के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र को लिखे पत्र में अफ़ग़ानिस्तान के स्थायी मिशन ने कहा, "इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने तय किया है कि 2021—22 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्यता के लिए अपनी उम्मीदवारी इसी समयावधि के लिए भारतीय गणराज्य के पक्ष में वापिस लेती है।"

"यह फैसला इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान और भारतीय गणराज्य के बीच लम्बी अवधि से चले आ रहे घनिष्ठ एवं दोस्ताना संबंधों के आधार पर लिया गया है।"

अखबार के अनुसार यह फैसला एशिआ-पैसिफिक समूह के देशों को सम्प्रेषित कर दिया गया क्योंकि भारत की उम्मीदवारी इसी समूह से थी। इस समूह में 55 देश हैं।

भले ही आज पाकिस्तान, चीन और नेपाल भारत के दुश्मन नज़र आ रहे हों, लेकिन ये तीनों ही एशिया-पैसिफिक समूह के देश हैं और तीनों ने ही भारत की उम्मीदवारी पर मुहर लगाई थी। 26 जून 2019 की सुबह संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने एक वीडियो रिकॉर्डिंग ट्वीट करके बताया कि संयुक्त राष्ट्र में एशिया-पैसिफिक क्षेत्रीय समूह के देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता के लिए दो साल के लिए भारत की उम्मीदवारी पर सर्वसम्मति से अपनी मुहर लगा दी है।

अकबरुद्दीन ने ट्वीट करते हुए लिखा-"सर्वसम्मति से उठाया गया कदम। सभी 55 सदस्यों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद।"

वैसे भी इस बार सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य होना भारत के लिए कोई बड़ी बात नहीं है। इसके पहले भी सात बार भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। पाकिस्तान भी सात बार सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य रह चुका है।

पाकिस्तान 1952—53, 1968—69, 1976—77, 1983—84, 1993—94, 2003—04, और 2012—13 में सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य रहा है।

वहीं भारत 1950-1951, 1967-1968, 1972-1973, 1977-1978, 1984-1985, 1991-1992 और 2011-2012 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रह चुका है।

भारत दो साल के लिए अस्थाई सदस्य चुना गया है। भारत के साथ आयरलैंड, मैक्सिको और नॉर्वे भी अस्थाई सदस्य चुने गए हैं।

निस्संदेह भारत की जीत एक बड़ी जीत है क्योंकि तमाम अटकलों के बावजूद उसे कुल डाले गए १९३ मतों में से 184 मत मिले हैं, लेकिन 2010 के चुनाव में भी भारत को बड़ी जीत मिली थी। उस साल मत डालने वाले 190 देशों में से 187 देशों ने भारत के पक्ष में मत डाला था। तब ख़ुशी का इज़हार करते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन स्थायी प्रतिनिधि और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने पीटीआई से कहा था, "ये पिछले पांच सालों में किसी भी देश द्वारा हासिल किये गए सबसे ज़्यादा वोट है। अब इसका कुछ तो मतलब होता है ना।"

कहा जा सकता है कि हर बार भारत की जीत के पीछे जहां भारत की एक शांतिप्रिय देश की छवि काम करती है, वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय और भारतीय राजनियकों की अथक मेहनत भी रंग लाती है।

सुरक्षा परिषद् में अस्थायी सदस्यता के लिए हुए निर्वाचन में भारत की बड़ी जीत से जहां देशवासियों में खुशी की एक लहर है, वहीं बदल रहे वैश्विक हालातों के चलते संयुक्त राष्ट्र में भारत को एक चुनौती भरी भूमिका का निर्वहन करना पड़ सकता है।

सुरक्षा परिषद में भारत के भारी मतों से अस्थाई सदस्य चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी खुशी जाहिर की। ट्वीट करते हुए उन्होंने लिखा - यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में भारत की अस्थाई सदस्यता के लिए दुनिया ने समर्थन और सहयोग दिया। मैं उनका आभार प्रकट करता हूं। भारत सभी के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और बराबरी के लिए काम करेगा।

उधर अमेरिका ने भी खुशी ज़ाहिर करते हुए एक बयान जारी किया। बयान में कहा गया है - "हम भारत का स्वागत करते हैं। उसे बधाई देते हैं। दोनों देश मिलकर दुनिया में अमन बहाली और सुरक्षा के मुद्दों पर काम करेंगे। दोनों देशों के बीच ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप है। हम इसे और आगे ले जाना चाहते हैं।"

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