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दुनिया

Second World War : कुछ तस्वीरें दुनिया के माथे पर एक कलंक की तरह छप जाती हैं

Janjwar Desk
18 July 2021 8:22 AM GMT
Second World War : कुछ तस्वीरें दुनिया के माथे पर एक कलंक की तरह छप जाती हैं
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(यह तस्वीर सेकंड वर्ल्ड वार के दौरान जापान के एक बच्चे की है जो अपने मृत छोटे भाई को कांधे पर लादे है)

वो अपने निचले होंठ को इतनी बुरी तरह काट रहा था कि खून दिखाई देने लगा। लपटें ऐसे धीमी पड़ने लगी जैसे छिपता सूरज मद्धम पड़ने लगता है। लड़का मुड़ा और चुपचाप धीरे धीरे चला गया...

जनज्वार। दुनिया के माथे पर एक कलंक की तरह छप जाती हैं कुछ तस्वीरें। ऐसी तस्वीरें इंसान के अंदर छुपे उस हैवान की झलक दिखाती हैं जो खुद को सर्वश्रेष्ठ और ताकतवर साबित करने के लिए सत्ता की हनक में अपनी ज़िद के आगे करोड़ों मासूमों की जान लेने में नहीं हिचकिचाता।

इतिहास की पन्नों में दफ़्न घिनौनी सच्चाईयों को उजागर करती एक ऐसी ही तस्वीर है दूसरे विश्व युद्ध की, जो जापान में शक्ति का प्रतीक बन गयी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान खींची गई इस तस्वीर में जापान का एक 10 वर्षीय लड़का अपने छोटे भाई के अंतिम संस्कार के लिए लाइन में खड़ा है।

एक इंटरव्यू में अमेरिकी फोटोग्राफर बताता है कि उसने एक दस साल के लड़के को आते देखा था। वो एक छोटे बच्चे को पीठ पर लादे हुए था। तब अपने छोटे भाई-बहनों को खिलाने के लिए अक्सर बच्चे ऐसा करते थे, लेकिन ये लड़का अलग था। वो यहां एक अहम वजह से आया था। उसने जूते नहीं पहने थे। चेहरा एकदम सख्त था। उसकी पीठ पर लदे बच्चे का सिर पीछे की तरफ लुढ़का था मानो गहरी नींद में हो।

लड़का उस जगह पर पांच से दस मिनट तक खड़ा रहा। इसके बाद सफेद मास्क पहने कुछ आदमी उस तरफ बढ़े और लड़के ने चुपचाप उस रस्सी को खोल दिया जिसके सहारे बच्चा लड़के की पीठ से टिका था। मैंने तभी ध्यान दिया कि बच्चा पहले से ही मरा हुआ था। उन आदमियों ने निर्जीव शरीर को आग के हवाले कर दिया। लड़का बिना हिले सीधा खड़ा होकर लपटें देखता रहा।

वो अपने निचले होंठ को इतनी बुरी तरह काट रहा था कि खून दिखाई देने लगा। लपटें ऐसे धीमी पड़ने लगी जैसे छिपता सूरज मद्धम पड़ने लगता है। लड़का मुड़ा और चुपचाप धीरे धीरे चला गया।

इस तस्वीर को जो.ओ. डोनल ने नागासाकी में खींचा था, साल 1945 का रहा होगा। डोनल ने सात महीनों तक पूरे पश्चिमी जापान में घूमकर विनाशलीला को तस्वीरों में कैद किया था। उनकी तस्वीरों में मानव इतिहास का सबसे भयावह और दर्दनाक दौर कैद हुआ। हर ओर लाशें, घायल लोग, अनाथ बच्चे, बेघर परिवार, जापान में सिर्फ यही सब था।

डोनल को अमेरिकी सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध में जापान भेजा था ताकि वो जाकर अपने कैमरे में उस विभीषिका को कैद कर सकें जिसे खुद अमेरिका ने फैलाया था। तब अमेरिका भी कहां जानता था कि डोनल की खींची एक तस्वीर उस पूरे दर्द को खुद में समेट लेगी जिसे अमेरिका ने आम जापानियों को दशकों तक के लिए बांटा था।

जापान में आज भी यह तस्वीर शक्ति का प्रतीक मानी जाती है! जापान ने कभी नहीं कहा के ये तस्वीर उसकी कमज़ोरी को बयां करती है या उसका राष्ट्रीय गौरव कम करके उसे कमज़ोर साबित करती है। उल्टा इसे वहाँ शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

1988 में आई जापानी फिल्म 'ग्रेव ऑफ द फायरफ्लाइज़' में बिलकुल ऐसी ही कहानी फिल्माई गई थी। वो फिल्म एक जवान भाई और उसकी छोटी बहन के बारे में थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी जान बचाने का कड़ा संघर्ष करते हैं।

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