एक गुलाम देश की जश्ने आजादी जिसमें सरकार स्वतंत्रता दिवस नहीं बल्कि मनाती है उत्सव!

अब तो आश्चर्य भी नहीं होता कि हमारी सरकार स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाती बल्कि एक उत्सव मनाती है – एक ऐसा उत्सव जिसमें प्रधानमंत्री गरजते हैं, कभी रोते हैं, कभी हंसते हैं..

Update: 2021-08-14 06:58 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हमारे देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, बीजेपी अध्यक्ष  सभी मिलकर एक स्वर में इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को देश में सबसे अच्छा बता रहे हैं। बेगुनाहों का पुलिसिया एनकाउंटर, जनता का दमन, अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने और महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर हिंसक हमलों के बाद से आदित्यनाथ का कद बीजेपी में बहुत बढ़ गया है और वे सभी प्रकार के चुनावों में स्तर प्रचारक के तौर पर जहर उगलने के लिए बुलाये जाने लगे हैं।

बीजेपी और प्रधानमंत्री समेत पूरी केंद्र सरकार जिसकी दिल खोल कर प्रशंसा करती हो, जाहिर है वह व्यक्ति, यानि आदित्यनाथ, जो करते हैं या जो कहते हैं वह प्रधानमंत्री के लिए एक आदर्श है, फिर चाहे वह आजादी का मसला ही क्यों न हो। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने जनवरी 2020 में बड़े स्पष्ट शब्दों में एक बयान दिया था, यदि कोई आजादी का नारा लगाते हुए पकड़ा जाता है तो उसपर राजद्रोह का मुक़दमा चले जाएगा।

आदित्यनाथ के एक इस वक्तव्य से ही केवल आदित्यनाथ का ही नहीं बल्कि उनकी तारीफ़ करने वाले हरेक व्यक्ति की सोच का पता चलता है कि वह जनता के साथ किस तरह का सलूक कर रही है और भविष्य में क्या करने वाली है। अब तो आश्चर्य भी नहीं होता कि हमारी सरकार स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाती बल्कि एक उत्सव मनाती है – एक ऐसा उत्सव जिसमें प्रधानमंत्री गरजते हैं, कभी रोते हैं, कभी हंसते हैं, कभी विपक्ष को कोसते हैं और कभी अति-नाटकीयता वाली मुस्कान के साथ कोई वक्तव्य देते हैं।

अधिकतर जनता जानती है कि उसे कुछ हासिल होने वाला नहीं है, पर कुछ अपना मानसिक संतुलन खो बैठे समर्थक इन्ही भाषणों से उन्माद चुराते हैं और फिर समाज में विद्वेष फैलाते हैं, और सरकार इसी विद्वेष के प्रसार को अपनी सफलता समझती है| इसके बाद मीडिया अगले कई दिनों तक इसी भाषण के हिस्से दिखाकर सरकार की सफलता को बढ़ाएगा।

जिस आजादी का जश्न सरकार मनाती है वह आजादी केवल प्रधानमंत्री, मंत्री, संतरी और पूंजीपतियों के पास है, बाकी देश तो इन सबका गुलाम है। दरअसल सरकार भी जश्न केवल इसी का मनाती है| तभी तो 80 करोड़ अत्यधिक गरीब आबादी को कम करने की कोई नीति नहीं बनाई जाती है, बल्कि इस गरीबी का मजाक उड़ाया जाता है, जिसे सरकार उत्सव कहती है। इस उत्सव का सरकार के सामने घुटने टेक चुकी मीडिया सीधा प्रसारण करती है, जिसमें प्रधानमंत्री प्रवचन देते हैं और प्रसाद के तौर पर 5 किलो अनाज दिया जाता है।

यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सब कवायद अनाज देने के लिए नहीं की जाती बल्कि उस थैले को बांटने की होती है जिसपर प्रधानमंत्री की तस्वीर होती है। प्रधानमंत्री जी ने यह तो सुनिश्चित कर लिया था कि आप टीवी देखें, सड़क पर चलें, पेट्रोल पम्प पर जाएँ, समाचारपत्र पलटें, या फिर कोई सर्टिफिकेट डाउनलोड करें – हरेक जगह उनका चेहरा नजर आये, अब आप अपने घर में भी रहें तब भी थैले पर लटके प्रधानमंत्री के दर्शन करते रहें| जाहिर है, प्रधानमंत्री के दर्शन के मामले में हम अवश्य ही विश्वगुरु हैं।

अब, जनता की कोई मांग नहीं है, जनता की कोई आशा नहीं है, कोई महत्वाकांक्षा नहीं है – हमारे देश में लोकतंत्र की नई परिभाषा गर्धी गयी है, जिसमें केवल प्रधानमंत्री की मांग, आशा और महात्वाकांक्षा का मतलब है, बाकी देश एक बड़ा सा शून्य है। दुनिया के बड़े से बड़े तानाशाह के देश में मीडिया और न्यायपालिका इस शून्य को भरने का काम करती है, पर अफ़सोस हमारे देश में दोनों ही प्रधानमंत्री की ही भाषा बोलते हैं। दुनिया में केवल हमारा देश ऐसा है जहां का मीडिया जनता का दुश्मन है और सरकारी चाटुकार बन बैठा है। न्यायपालिका का आलम भी यह है कि देश तोड़ने वाले, महिलाओं और मुस्लिमों के विरुद्ध हिंसक नारे लगाने वाले अगले दिन जमानत पर बाहर पहुँच जाते हैं और दूसरी तरफ जनता की आवाज उठाने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता सालों-साल जेल में सड़ते रहते हैं, कुछ तो जेल में ही मर भी जाते हैं।

आजकल जै श्री राम का नारा सरकार समर्थित हिंसा का पर्यायवाची शब्द बन गया है। आप सरेआम किसी की जान ले लीजिये, किसी को लूट लीजिये, हिंसा कीजिये – पर जय श्री राम का नारा लगाते ही आप महान देशभक्त हो जायेंगे और सरकार और पुलिस तुरंत यथासंभव मदद के लिए तत्पर रहेगी| अब तो यह नारा देश की संसद में गूंजता है – जाहिर है हिंसा संसद में भी हो रही है। अब संसद भवन ऐसी हिंसा के लिए छोटा पड़ने लगा है तभी नए संसद भवन की जरूरत है।

जनता भले ही भूखी रहे पर जनता को खरीदकर संसद तक पहुंचे तथाकथित प्रतिनिधि को मारपीट करने या गाली गलौज करने के लिए पर्याप्त जगह मिले। आश्चर्य यह है कि ट्रम्प के समय अमेरिकी संसद पर हमले की भर्त्सना पूरी दुनिया ने की, पर हमारे संसद में जो होता है उसपर दुनिया खामोश रहती है और अपना सारा काम छोड़कर मंत्रियों की फ़ौज कई दिनों तक मीडिया के कमरे के सामने झूठ परोसने के लिए डट जाती है।

हमारे देश में ससाद एक मजाक से अधिक कुछ नहीं है| प्रधानमंत्री बार-बार बताते है कि विपक्ष संसद नहीं चलने देता। फिर उनकी पार्टी के नेता और मीडिया पूरी दुनिया तक यही बात पहुंचाता है। पर, इसी नहीं चलने वाली संसद में ताबड़तोड़ बिल पास कर दिए जाते हैं| अब तक प्रधानमंत्री ही आंसू बहाते थे, पर इस कड़ी में उपराष्ट्रपति भी शामिल हो गए हैं। कैमरे के सामने आंसू बहाना भी एक राष्ट्रीय पर्व बन गया है| उपराष्ट्रपति की आँखों में आंसू तब नहीं आते जब वे अपने आप को राज्यसभा का अध्यक्ष नहीं बल्कि बीजेपी का कार्यकर्ता समझते हैं।

हमारे देश की जनता ने इस तरह की गुलामी तो अंग्रेजों के समय भी नहीं झेली थी। कम से कम उस दौर में देश में जगह-जगह अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज तो उठती थी| इस दौर की गुलामी का एक बड़ा कारण हमारा स्मार्टफोन भी है जो हमें निकम्मा कर चुका है, हमारे सोचने की शक्ति छीन चुका है और हमें सडकों से दूर कर रहा है। दुनियाभर में हरेक बड़े आन्दोलन आज भी सड़क पर ही किये जा रहे हैं, पर हमारे देश में आन्दोलन का मतलब ट्विटर हो गया है।

ट्विटर की खासियत यह है कि कभी-कभी यह सरकार का विरोधकर जनता को बताता है कि निष्पक्ष है, पर भारत का बड़ा बाजार और भारी मुनाफा देखते हुए पूरी तरह से सरकारी प्रचार में लीं है। सरकार के विरुद्ध सख्त शब्दों से ट्विटर को भी सरकार जैसी ही चिढ है तभी उसे तुरंत ब्लाक कर दिया जाता है जबकि सरकारी तंत्र की तरफ से या समर्थकों की तरह से हिंसक भाषा वाले ट्वीट पर कोई कार्यवाही नहीं होती।

प्रश्न यह उठता है कि क्या हम कभी इस गुलामी से बाहर आ सकेंगें, जिसमें एक मुख्यमंत्री या कोई भी जन-प्रतिनिधि हमारे सामने आकर गर्व से ऐलान करने की हिम्मत कर सके कि आजादी शब्द का मतलब राजद्रोह है। इसका उत्तर हमारे ऊपर निर्भर करता है।

 यदि हमने आज की परिस्थितियों का निष्पक्ष होकर विश्लेषण और आवाज बुलंद करना नहीं शुरू किया तो स्थिति और बदतर होती जायेगी। जो सरकार आज 5 किलो अनाज देने का उत्सव मना रही है, वही सरकार कल आधा किलो अनाज देकर और भी भव्य उत्सव आयोजित करेगी और भूखे पेट भी आपको तालियाँ बजानी पड़ेगीं, मीडिया के कैमरा से आँख मिलाकर मुस्कराना पड़ेगा| यदि एक गुलाम देश की जश्ने आजादी के बदले सही मायने में आजादी चाहते है तो जागिये, सोचिये, कुछ कीजिये – सही मायने में आजादी अपने आप में एक जश्न है।

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