मोटे लोगों के लिए कोरोना बहुत ज्यादा खतरनाक, टीका भी नहीं रहेगा बहुत असरकारी

मोटापा बहुत सारी स्वास्थ्य समस्याओं की जड़ है। इससे उच्च रक्तचाप, कार्डियोवैस्कुलर रोग, डायबिटीज और फेफड़े की समस्याएं उत्पन्न होती हैं और इसके बाद रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है। इसी कारण कोविड 19 ऐसे लोगों के लिए अधिक खतरनाक हो जाता है...

Update: 2020-08-30 12:12 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

कोविड 19 से ग्रस्त मोटे लोगों के मरने की संभावनाएं सामान्य लोगों की तुलना में लगभग डेढ़ गुनी अधिक रहती है। ऐसे लोगों पर कोविड 19 का यदि कोई टीका बना भी, तो अपेक्षाकृत कम असरदार रहेगा।

ओबेसिटी रिव्यु नामक जर्नल (https://onlinelibrary।wiley।com/doi/epdf/10।1111/obr।13128) के नवीनतम अंक में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार मोटे लोगों पर कोविड 19 के खतरे पहले जितने समझे गए थे, उसकी तुलना में बहुत अधिक हैं।

इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ नार्थ कैरोलिना के वैज्ञानिकों ने विश्व बैंक के लिए किया है। इस अध्ययन के अनुसार मोटे लोगों पर कोविड 19 के खतरे हरेक चरण में सामान्य से अधिक हैं। कोविड 19 के बाद ऐसे लोगों के कोविड 19 से संक्रमण की संभावनाएं 46 प्रतिशत, अस्पताल में भर्ती होने की संभावनाएं 113 प्रतिशत, आईसीयू ने भर्ती होने की संभावना 74 प्रतिशत और मरने की संभावना 48 प्रतिशत अधिक होती है।

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ नार्थ कैरोलिना के प्रोफ़ेसर बैरी पोप्किन के अनुसार जिन व्यक्तियों का बॉडी मास इंडेक्स 30 से अधिक रहता है, उनके लिए कोविड 19 से संक्रमित होने के बाद खतरे सामान्य वजन वाले लोगों की तुलना में बहुत बढ़ जाते हैं।

बॉडी मास इंडेक्स मनुष्य की लम्बाई और वजन का अनुपात होता है और सामान्य अवस्था में यह 22.1 से अधिक नहीं होना चाहिए। इस अध्ययन के लिए दुनियाभर में इस विषय पर किये गए 1733 अध्ययन हैं, जिसमें से चुनिन्दा 75 अध्ययनों का गहन विश्लेषण किया गया है। इन अध्ययनों में चीन, फ्रांस, स्पेन, इटली, अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों के आंकड़े सम्मिलित हैं।

दुनिया में सबसे अधिक मोटे लोगों की संख्या अमेरिका और इंग्लैंड में है। अनुमान है कि अमेरिका में लगभग 40 प्रतिशत वयस्क आबादी और इंग्लैंड में 27 प्रतिशत वयस्क आबादी मोटापे की चपेट में है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन स्वयं मोटे लोगों की श्रेणी में आते हैं और कोविड 19 से ग्रस्त भी हो चुके हैं, कोविड 19 से संक्रमित होने के बाद उनकी स्थिति गंभीर हो चली थी, और एक समय ऐसा भी आया था जब उनके बचने की उम्मीद भी धूमिल हो चली थी, शायद इसीलिए उन्होंने ब्रिटेन में मोटापा कम करने का एक राष्ट्रीय अभियान चलाया है।

एल्सेविएर द्वारा प्रकाशित जर्नल डायबिटीज एंड मेटाबोलिक सिंड्रोम के जनवरी - फरवरी 2019 के अंक (https://www।sciencedirect।com/science/article/abs/pii/S1871402118303655) में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग 1.9 अरब आबादी का वजन सामान्य से अधिक है और लगभग 65 करोड़ आबादी मोटापे की चपेट में है। मोटापे के कारण उत्पन्न समस्याओं के कारण दुनिया में प्रतिवर्ष लगभग 28 लाख मोटे लोगों की मृत्यु हो जाती है।

भारत में लगभग 13.5 करोड़ आबादी मोटापे की चपेट में है। भारत के हरेक क्षेत्र में आबादी मोटापे की समस्या से ग्रस्त है और इन क्षेत्रों में 11.8 प्रतिशत से लेकर 31.3 प्रतिशत तक आबादी इसकी चपेट में है। मोटापे की समस्या पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक है। मोटापे का मुख्य कारण बेतरतीब खानपान, शारीरिक श्रम का अभाव और एक जगह बैठ कर काम करने की मजबूरी है।

मोटापा बहुत सारी स्वास्थ्य समस्याओं की जड़ है। इससे उच्च रक्तचाप, कार्डियोवैस्कुलर रोग, डायबिटीज और फेफड़े की समस्याएं उत्पन्न होती हैं और इसके बाद रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ने लगती है। इसी कारण कोविड 19 ऐसे लोगों के लिए अधिक खतरनाक हो जाता है।

मोटापा विश्वव्यापी समस्या है, और कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां 20 प्रतिशत से अधिक आबादी मोटापा की चपेट में न हो। तमाम कोशिशों के बाद भी दुनिया में मोटे लोगों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है।

कुछ वर्ष पहले तक धारणा थी कि मोटापा अमीर लोगों का रोग है और यह समस्या केवल अमीर देशों तक सीमित है, पर वर्तमान में दुनिया में मोटे लोगों की कुल आबादी में से 70 प्रतिशत से अधिक गरीब और मध्यम आय वर्ग के देशों में है। मध्य-पूर्व और दक्षिणी अमेरका के देशों में इनकी संख्या सबसे अधिक है।

वैज्ञानिकों का सुझाव है कि दुनिया के सभी देश मोटापा कम करने के लिए नीतियाँ बनाकर उनका कार्यान्वयन करें, इससे स्वास्थ्य व्यवस्था का बोझ कुछ कम होगा। दूसरा सुझाव यह है कि मोटापा और कोविड 19 के संबंध में विस्तृत गहन अध्ययन किया जाए।

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