DELHI MCD Election: सत्येंद्र जैन के मसाज पर महाभारत करा BJP की जीत के लिए मैदान साफ रही मीडिया

DELHI MCD Election: देश की राजधानी दिल्ली शहर में इन दिनों हर गली नुक्कड़ पर शहर की छोटी सरकार की चर्चा है। आने वाले चार दिसंबर को दिल्ली शहर के करीब 1.46 करोड़ वोटर्स अपनी इस छोटी सरकार के 250 प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे।

Update: 2022-11-22 11:53 GMT

सलीम मलिक की रिपोर्ट

DELHI MCD Election: देश की राजधानी दिल्ली शहर में इन दिनों हर गली नुक्कड़ पर शहर की छोटी सरकार की चर्चा है। आने वाले चार दिसंबर को दिल्ली शहर के करीब 1.46 करोड़ वोटर्स अपनी इस छोटी सरकार के 250 प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। छोटी सरकार से आशय यहां नगर निगम से और प्रतिनिधियों का अर्थ निगम पार्षद से है। आम आदमी का सीधे बहुत ज्यादा वास्ता विधानसभा या संसद से नहीं होता। लेकिन उसकी रोजमर्रा की जिंदगी को उसके गली मुहल्ले की यही छोटी सरकार बहुत प्रभावित करती है। जाहिर है कि लोगों की दिलचस्पी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने वाले निगम चुनाव में अधिक ही होगी। ऐसा ही दिल्ली नगर निगम चुनाव में भी है।

लोग अपनी जिंदगी से जुड़े तमाम मुद्दों को इन चुनावों के लिए हो रही बहस के केंद्र में लाकर उनके समाधान की आकांक्षा पाले हुए हैं। लेकिन पिछले तीन बार से इन नगर निगम की सत्ता संभाले भारतीय जनता पार्टी गलती से भी इन मुद्दों को बहस का केंद्र नहीं बनने दे रही है। केंद्रीय सांसद व विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं के लिए होने वाले चुनावों की तरह भाजपा की इन चुनावों में भी पुरजोर कोशिश है कि चुनाव का सरलीकरण कर इसे हिंदू मुसलमान या व्यक्ति विशेष तक ही सीमित कर दिया जाए। इसके लिए इसका प्रिय मुद्दा दिल्ली का आफताब श्रद्धा कांड और आम आदमी पार्टी के जेल में बंद मंत्री सत्येंद्र जैन द्वारा जेल में हो रही मालिश का वीडियो बना हुआ है। लोग इस बात पर हैरान हैं कि पन्द्रह साल से नगर निगम की सत्ता पर काबिज और आठ साल से ढाई इंजन की सरकार के बाद भी भारतीय जनता पार्टी के पास इस चुनाव में लोगों के जनजीवन से जुड़े किसी मुद्दे पर कोई ऐसी एक भी उपलब्धि नहीं है, जिससे वह निगम चुनाव की वैतरणी को पार करने का साहस दिखा सके।

नगर निगम की राजनैतिक ताकत

दिल्ली शहर की एक खास बात यह है कि भारत की राजधानी होने के कारण यह अपने आप में देश की तीन प्रमुख सत्ताओं का मिक्स कॉकटेल है। यहां देश की केंद्रीय सत्ता का भी दखल है तो दिल्ली प्रदेश की विधानसभा जिसके मुखिया इन दिनों आम आदमी पार्टी चीफ अरविंद केजरीवाल है, का भी दखल है। तीसरा दखल नगर निगम का स्वाभाविक है ही। आगे बढ़ने से पहले इन तीनों सत्ताओं के दिल्ली पर दखल को परिभाषित करते हुए बता दे कि पहले दिल्ली में एक ही नगर निगम हुआ करता था, लेकिन 2012 में तब की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस नगर निगम को तीन हिस्सों में बांट दिया था। 272 वार्ड वाले दिल्ली के इन तीन नगर निगम में 104-104 वार्ड साउथ और नॉर्थ दिल्ली में थे, जबकि 64 वार्ड ईस्ट दिल्ली में थे। लेकिन अब इन सब को मिलाकर 250 वार्ड का एक ही नगर निगम बना दिया गया है।

दिल्ली का 97 फीसदी इलाका एमसीडी के अंडर में आता है। बाकी का तीन फीसदी इलाका नई दिल्ली नगर परिषद और दिल्ली कंटेन्मेंट बोर्ड के पास है। राष्ट्रीय राजधानी होने के चलते यहां केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकार और नगर निगम का दखल होने की वजह से यहां राजनैतिक ताकत को लेकर भी एक जंग हमेशा चलती रहती है। माना यह भी जाता है कि शीला दीक्षित ने दिल्ली को एक मेयर की जगह तीन मेयर देने का यह फैसला मुख्यमंत्री के बरअक्स मेयर की राजनैतिक ताकत को कम करने के लिए किया था।

नगर निगम के अधिकार

अधिकारों की बात करें तो दिल्ली की जमीन, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था पर केंद्र सरकार का अधिकार है। बाकी सारे काम दिल्ली सरकार के अधीन है। जबकि और दूसरे कामकाज नगर निगम के पास आते हैं। आसान भाषा में कहें तो दिल्ली में एम्स और सफदरजंग अस्पताल केंद्र सरकार के अधीन है, जबकि कुछ अस्पताल दिल्ली सरकार के अधीन है और कुछ अस्पताल या डिस्पेंसरी का जिम्मा नगर निगम के पास है। आम लोगों से जुड़े लगभग सभी मुद्दे दिल्ली नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। कुल मिलाकर दिल्ली के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी कैसी होगी, इसको प्रमुख तौर पर दिल्ली नगर निगम ही तय करता है।

नगर निगम की जिम्मेदारियां

निगम की कुछ जिम्मेदारियों पर सरसरी तौर पर चर्चा करें तो हर नगर पालिका की तरह इसके जिम्मे सफाई जैसा प्रमुख काम है। दिल्ली की कॉलोनियों और सड़कों पर साफ-सफाई करने, कूड़ा इकट्ठा करने और उसका निपटारा करने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। घरों से कूड़ा इकट्ठा करना और उसको निपटाना नगर निगम के जिम्मे है। प्राइमरी शिक्षा के लिए स्कूल, डिस्पेंसरी और कुछ अस्पतालों का जिम्मा भी नगर निगम के पास होता है। निगम की आय की बात करें तो दिल्ली में लगभग 50 लाख संपत्तियां हैं।

इन पर लगने वाला प्रॉपर्टी टैक्स नगर निगम ही वसूलती है। इसके अलावा टोल टैक्स भी नगर निगम ही लेती है। दिल्ली में अगर कोई घर बनाना है या बिल्डिंग बनानी है तो उसका नक्शा एमसीडी ही पास करती है। बिल्डिंग अवैध बनी है और उसे तोड़ना है तो उसका काम भी नगर निगम ही करती है। सड़कों से अवैध अतिक्रमण हटाना भी इसी की जिम्मेदारी में आता है। इसके साथ ही नगर निगम के पास सड़कों की साफ-सफाई और स्ट्रीट लाइट का जिम्मा भी है। दिल्ली के पार्कों का रखरखाव का काम भी नगर निगम ही संभालती है। कुछ और कामों में रहवासी इमारतों का रिकॉर्ड रखना, जन्म और मौत का रिकॉर्ड रखना, श्मशान और कब्रिस्तान को मैनेज करना और रेस्टोरेंट वगैरह के लिए लाइसेंस देना भी नगर निगम का ही काम है।

निगम की आर्थिक ताकत

नगर निगम के हर पार्षद के पास केवल अपने इलाके या वार्ड की ही जिम्मेदारी होती है। पार्षद को अपने इलाके में विकास कार्य के लिए हर साल एक करोड़ रुपए दिए जाते हैं। जबकि दिल्ली के सभी 70 विधायकों को 10-10 करोड़ रुपये और सांसदों को 5-5 करोड़ रुपये की सांसद निधि मिलती है। कुल मिलाकर हर साल दिल्ली की हालत सुधारने के लिए यह करीब एक हजार करोड़ का बजट इसके जनप्रतिनिधियों के माध्यम से आवंटित होता है। केंद्र और राज्य का विभिन्न योजनाओं का बजट इससे अलग है।

निगम में पंद्रह साल भाजपा के

मौजूदा दिल्ली निगम चुनाव पर आने से पहले बता दें कि दिल्ली नगर निगम में पिछले पन्द्रह साल से भारतीय जनता पार्टी काबिज रही है। अब तक दिल्ली में नॉर्थ दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और साउथ दिल्ली नगर निगम थे। इन तीनों ही निगम में फिलहाल भाजपा ही सत्तारूढ़ है। तीनों निगम के लिए हुए पिछली बार के चुनाव में 272 वार्ड में से 181 (दो तिहाई वार्ड) पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। जबकि आम आदमी पार्टी 48 और कांग्रेस केवल 27 वार्ड पर ही सिमट कर रह गए थे।

एमसीडी चुनाव के मुद्दे

दिल्ली नगर निगम के प्रस्तावित चुनाव अपने तय वक्त से करीब छः महीने की देरी से हो रहे हैं। देरी की वजह भारतीय जनता पार्टी वार्डों के परिसीमन को बताती है तो आम आदमी पार्टी निगम चुनावों से भाजपा के खौफ के तौर पर प्रचारित कर रही है। दिल्ली में साफ सफाई एक बड़ा मुद्दा है। बीते पंद्रह सालों से सफाई के लिए जिम्मेदार नगर निगमों में काबिज भाजपा इस मुद्दे से मुंह चुराने को मजबूर है तो दिल्ली नगर निगम के चुनावों में आम आदमी पार्टी दिल्ली में कूड़े के निस्तारण को लेकर मैदान में उतरी है। दिल्ली में कूड़े की समस्या इतनी बड़ी है कि यहां भलस्वा, गाजीपुर और ओखला में कूड़े के पहाड़ खड़े हो गए हैं। इस मुद्दे की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आम आदमी पार्टी ने 20 नवंबर तक बूथ स्तर पर "कूड़े पर चर्चा" नाम से ही कार्यक्रमों का आयोजन किया है।

दिल्ली का करीब रोजाना 11 हजार मीट्रिक टन कूड़ा ढोने के लिए 4500 टिप्पर लगे हैं लेकिन इसके बाद भी लोग सड़कों पर कूड़ा फेंके जाने से परेशान हैं। अभी इस कूड़े का आधा पार्ट ही प्रोसेस हो पाता है। एक मॉडल वार्ड कहे जाने वाले रोहिणी में 2018 में दिल्ली एमसीडी द्वारा कूड़े के निस्तारण को लेकर यन्त्र लगाया गया था। लेकिन यहां पार्कों के बाहर की गंदगी निगम की पोल खोलने के लिए काफी है। सड़कों का अतिक्रमण, प्रदूषण, बिजली पानी, कॉलोनियों की सड़कें, कॉलोनियों की साफ सफाई यह भाजपा नेतृत्व में चलने वाले तीनों नगर निगम से सीधे जुड़े कुछ ऐसे मामले हैं जिनसे लोग बुरी तरह त्रस्त हैं, लेकिन भाजपा इन मामलों पर बात करने की जगह हर चुनावी अभियान की तरह इनको लेकर लोगों को भविष्य के सब्जबाग दिखाने लगती है।

इसी रणनीति के तहत इस बार उसके यही कहना है कि वह 2024 से पहले दिल्ली को कूड़ा मुक्त कर देगी। भाजपा भूलकर भी इस पर बात नहीं करती कि पिछले एमसीडी चुनाव के दौरान उसके तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष तिवारी ने लोगों से अगले ढाई साल में (2020 तक) दिल्ली से कूड़े के पहाड़ हटाने का जो वायदा किया था, वह आज तक पूरा क्यों नहीं हुआ ?

पटाखों में गांव लूटने की योजना के साथ चुनावी समर में भाजपा ?

एक कहावत है, पटाखों में गांव लूटना। इसका प्रयोग उस समय किया जाता है जब आश्वासनों के सहारे ही दूसरे से सब कुछ ले लिया जाए। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में पिछले तीन कार्यकाल से दिल्ली के तीनों निगमों की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के पास लोगों को बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। यही वजह है कि वह "हमने यह किया" बताने की जगह विपक्षी पार्टियों की तरह "हम यह करेंगे" का आश्वासनी ढोल ही पीट रही है। यह इसी कहावत को प्रतिबिंबित करता है। भारतीय जनता पार्टी के लिए इस चुनाव में एक और मुसीबत यह है कि इस चुनाव में उसका प्रिय हिंदू मुसलमान मुद्दे जैसा एंगल भी नहीं बन पा रहा है।आफताब श्रद्धा हत्याकांड को वह टटोलकर देख चुकी है, लेकिन यह मुद्दा दिल्ली के कूड़े के पहाड़ों के मुकाबले राई बनता देख भाजपा इससे किनारा करने लगी।

ऐसे में भाजपा थिंक टैंक का सारा जोर "हम बुरे हैं तो दूसरा कैसे अच्छा है" वाली थीम पर फोकस हो गया है। आम आदमी पार्टी के जेल में बंद मंत्री सत्येंद्र जैन की जेल में होती मालिश को भाजपा मुद्दा बनाने को आतुर है। जैन की आड़ में आम आदमी पार्टी पर हमलावर भाजपा की पूरी कोशिश है कि इस एक व्यक्ति के बहाने दिल्ली के डेढ़ करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़े सभी मुद्दों को नेपथ्य में डालकर एक बार फिर दिल्ली नगर निगम पर कब्जा किया जाए। कुल मिलाकर पंद्रह सालों से तीनों निगम की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी के पास इस निगम चुनाव में जनता को बताने के लिए कोई इकलौती उपलब्धि नहीं है, जिसके दम पर वह अगले पांच सालों का जनादेश मांग सके।

एक सत्येंद्र जैन के बहाने वह अपने पंद्रह साल के कामकाज के धब्बों को धोने का प्रयास कर रही है। देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस चुनाव को "एक आदमी बनाम डेढ़ करोड़ आदमी" बनाकर चुनावी वैतरणी पार कर सकेगी, या उसे मुंह की खानी पड़ेगी ?

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