विशेष लेख : जब काबिनी जंगल में 'करिया' नाम के अद्भुत काले चीते का दीदार कर मेरी खुशी का न रहा ठिकाना
पिछले कुछ हफ़्तों में करिया का बार-बार दिखाई देना सैलानियों और जंगली जानवरों की फोटोग्राफी करने वालों में हलचल पैदा कर गया है, दुनिया के हर कोने से ज़्यादा से ज़्यादा उत्साही जन काबिनी आने की योजना बना रहे हैं, इस उम्मीद के साथ कि वे अपने प्रिय करिया की एक झलक पाने में सफल रहेंगे....
सामाजिक कार्यकर्ता और अर्घ्यम की संस्थापक अध्यक्ष रोहिणी निलेकणी का लेख
अपनी साँस थामे नज़र गड़ाकर इंतज़ार कर रहे लोगों के लिए यह एक और सुन्दर क्षण था,लेकिन मेरे लिए तो यह एक यादगार क्षण था।
सालोंसाल मैं तीर्थ यात्रा पर इसलिए निकलती थी ताकि कर्नाटक के काबिनी जंगल में रहने वाले मायावी एवं अनूठे जानवर का दीदार कर सकूं। और यह जानवर था दुनियाभर में मशहूर काला चीता। स्थानीय भाषा में इसे करिया कहते हैं।
दरअसल महामारी के इस बीते साल के दौरान सौभाग्य से मुझे जंगल में कई हफ्ते गुजारने का मौका मिल गया था, लेकिन अनूठे जानवर करिया का कहीं अता-पता नहीं था।
अंतत: 13 दिसंबर को जा कर बेंगलुरु लिटरेचर फेस्टिवल में Romancing the Black Panther विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए मैंने अपने आनंदित करने वाले जूनून के बारे में लोगों को बताया। और देखिये अचानक बदकिस्मती का सिलसिला टूट गया।
अपनी खोज शुरू करने के ठीक पांच साल बाद और अपने व्याख्यान के ठीक पांच दिन बाद मुझे करिया के दर्शन हो गए।
वो वहां पर था, पेड़ से लिपटा हुआ,हमारी जीप से 30 फ़ीट की दूरी पर और ज़मीन से भी 30 फिट ऊपर, मेरी इंसानी नज़रों से काफी दूर लेकिन उसकी ओर केंद्रित शक्तिशाली कैमरा लैंसों से ठीक दूरी पर।
बहुत से लोगों ने मुझसे जानना चाहा कि दरअसल वो क्षण था कैसा? संकोच किये बिना इसे बता पाना मुश्किल है। जैसे ही मैंने अपने दूरबीन की मदद से काली छाया पर नज़र जमाई मेरी आँखों में आये खुशी के आंसुओं से दूरबीन के लैंस भीग चुके थे।
तब जाकर मैंने महसूस किया कि मेरे इर्द-गिर्द जमा हर कोई मुझे करिया पर नज़र गड़ाए हुए देख रहा था। मेरे चेहरे पर एक चौड़ी सी मुस्कान आ गई, मैंने हाथ जोड़कर नमस्कार किया और मैंने अपने दोनों हाथ के अंगूठे खड़े कर दिए। मैंने आसमान को निहारते हुए ऊपर वाले का धन्यवाद किया। मैंने जंगली जानवरों पर फिल्म बनाने वाले फिल्म निर्माता सन्देश कदूर और उन सभी लोगो का शुक्रिया किया, जिन्होंने इस क्षण तक पहुंचने में मेरी मदद की थी। मैंने अपने प्रिय जंगल को धन्यवाद कहा और मैंने धन्यवाद उस काले चीते को भी कहा जिसने धृष्टतापूर्वक हमें घूरने के लिए अपना सिर हमारी तरफ घुमा दिया था।
क्या क्षण था वो! मेरे लिए तो जैसे सारी खुशियां समा गयीं थीं उस क्षण में।
मेरी चाहत ने व्यक्तिगत स्तर पर मुझे धीरज और विनम्रता का सबक सिखाया है। इसने जंगलों के हमारे भविष्य के साथ जटिल रिश्ते की मेरी समझ को अधिक गहरा किया है। भारत की अद्भुत जैव-विविधता और संरक्षण की संस्कृति के उत्थान की दिशा में काम करने के अपने संकल्प को मैंने अधिक दृढ बनाया है।
मैं आभारी हूँ कि उस दिन काले चीते के साथ कुछ समय बिताने का मुझे मौका मिला। मैं बार-बार काबिनी के जंगल में लौट कर आती रही,और हर बार करिया भी मेरे साथ कदम ताल करते हुए आता रहा।
फिर 6 मार्च को हमने करिया और उसके दीर्घकालीन प्रतिद्वंद्वी तेंदुए (जिसे वन्यजीव फिल्म निर्माता शाज़ जंग ने स्कारफेस नाम दिया है) के बीच बहुचर्चित मुठभेड़ देखी। करिया ने उसे खुली चुनौती देने का निर्णय लिया, उस टीक वृक्ष के ऊपर जिसने काबिनी के शुष्क मौसम में अपने पत्ते गिरा दिए थे। यह सब दर्जनों जीप में बैठे सैलानियों को अद्भुत आनंद दे रहा था। चीता और तेंदुआ दोनों हरी-नीली आँखों वाली छोटे कद की मिस्ट नामक उस महिला तेंदुए का प्यार पाने के लिए आपस में भिड़ रहे थे, जो वहीं पास में खड़ी अपने गुमशुदा बच्चे के दुःख से द्रवित थी।
यह गाथा अभी शुरू ही हुई है। जैसे ही महिला तेंदुआ कामोत्तेजना में आएगी, कोई शक नहीं कि वैसे ही उसे सूँघते हुए बहुत से तेंदुए करिया के इलाके के आस-पास मंडराने लगेंगे और उसे अपना इलाक़ा बचाने के लिए मजबूर करेंगे। हो सकता है कि इस तरह के अनेक युद्धों से करिया को मिले घावों में बढ़ोत्तरी हो जाये। करिया समूह के अन्य सदस्य बेचैनी से इंतज़ार करेंगे कि वो एक बार फिर विजयी और सेहतमंद होकर वापिस लौटें।
पिछले कुछ हफ़्तों में करिया का बार-बार दिखाई देना सैलानियों और जंगली जानवरों की फोटोग्राफी करने वालों में हलचल पैदा कर गया है। दुनिया के हर कोने से ज़्यादा से ज़्यादा उत्साही जन काबिनी आने की योजना बना रहे हैं, इस उम्मीद के साथ कि वे अपने प्रिय करिया की एक झलक पाने में सफल रहेंगे। दुनिया में ये अकेला काला तेंदुआ है जिसका इलाक़ा सैलानियों के लिए चिन्हित इलाक़े को छूता है। वो केवल अपनी बढ़ रही भूख को मिटाने के लिए ही बाहर निकलता है। लेकिन करिया की उम्र 9 साल है, और तेंदुओं की औसत उम्र 12 वर्ष ही होती है। लाजिमी है कि हममें से बहुत सारे लोग उसकी एक झलक पाने की लालसा से बार-बार लौट कर आते हैं।
लेकिन काबिनी के जंगल में और भी बहुत कुछ देखने लायक है। साल के इस मौसम में जब पानी की उपलब्धता कम होती है और पतझड़ के चलते पूरा जंगल ही वीरान सा दिखता है तब जानवरों,खासकर बड़े-बड़े चीतों और तेंदुओं को देख पाना आसान हो जाता है।
बहुत से ऐसे लोग हैं, जो तेंदुए से ज़्यादा राजसी बाघ को देखना पसंद करते हैं। इस मौसम में वे मन भर कर ऐसा कर सकते हैं। काबिनी के जंगल में एक बाघिन है, जिसका परिवार शोधकर्ताओं और छायाकारों का ध्यान अपनी और खींचे हुए है। बांध के इर्द-गिर्द रहने वाली इस बाघिन ने पिछले तीन सालों में दो बार एक साथ तीन-तीन बच्चे जने हैं। पहले जन्म से पैदा हुआ इसका कोई न कोई बच्चा अक्सर माँ और तीन नवजात शिशुओं के साथ दिखाई दे जाता है।
यह नज़ारा The Baby-Sitters Club की तरह लगता है। ये सच है कि बाघिनें एक बार में 4 या उससे ज़्यादा बच्चे भी पैदा करती हैं,लेकिन सभी छौनों का जीवित बचे रहना दुर्लभ होता है। अगर आप वाकई भाग्यशाली रहे तो काबिनी के जंगल में पाँच बाघों को एक साथ देख भी सकते हैं। इनमें एक माँ होती है,उसके तीन एक साल की उम्र वाले बच्चे होते हैं और एक बच्चों की देख-भाल करने वाला(Baby-sitter) थोड़ा बड़ा बच्चा होता है।
पहले के जन्म से पैदा हुए बाघों का इस तरह अपने छोटे भाई-बहनों के साथ मिलजुल कर रहना या अपनी माँ के साथ शांतिपूर्वक रहना असाधारण बात है। काबिनी के इन बाघों को इस तरह एक साथ रहते हुए और परस्पर मेल-जोल बढ़ाते हुए देखना वाकई असाधारण है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि काबिनी में कड़ाके की धूप वाली गर्मी पड़ेगी, लेकिन फिर भी लोगों के झुंड के झुंड इस जंगल में और दूसरे जंगलों में उसकी खोज में ज़रूर जायेंगे, जिसे कवि Wendell Berry ने The Peace of Wild Things कहा है। ये जंगल हमें सचेत रहने, हमें क्षण विशेष को पूरी तरह जीने और अपनी मस्तिष्क सम्बन्धी अवधारणा को अधिक गहरा करने का मौका देते हैं। ऐसी शोधों का अंबार लग चुका है जो प्रकृति की गोद में बिताए गए समय और मनुष्य की भलाई के बीच आपसी रिश्ते होने की बात कहती हैं।
संरक्षककर्ता हमें आगाह करते हैं कि हम आकर्षक प्रजातियों के प्रति हमारे प्राकृतिक आकर्षण के चलते आवेश में न आयें। भोजन श्रेणी में शामिल अपने आप में खुद भी आकर्षक दिखने वाले छोटे से छोटे जीव की भूमिका के बग़ैर ये प्रजातियां जीवित नहीं रह सकती हैं। संभव है कि एक बहुत ही छोटे वायरस के महत्व को आत्मसात करने के बाद इस बार गर्मी के दौरान हम अपनी नज़रों को बड़े जानवरों के पार ले जाते हुए समग्र पारितंत्र (इको सिस्टम) पर गड़ा सकते हैं।
काबिनी में ऐसा कर पाना आसान है। दूसरे पार्कों से इतर काबिनी में दृश्य अवलोकन का प्रबंधन राज्य सरकार के जंगल लॉज़ेज़ और रिज़ॉर्ट के माध्यम से किया जाता है। एक समय पर जंगल में रहने वाले लोगों की संख्या अनुदार तरीके से तय की जाती है और जीपों की भीड़ नहीं लगती है। सैलानियों का व्यवहार ज़्यादातर संयमित रहता है और वन विभाग एवं अनेकों स्वैछिक समूहों के कड़े प्रयासों से अभ्यारण्य कूड़ारहित बना रहता है।
काबिनी एक जादुई जंगल से भी कहीं ज़्यादा है। हर बार यह आगंतुक के लिए एक नया ही आकर्षण पैदा करता है -यह ज़्यादातर जैव-विविधता का घर है, यह ऐसा जंगल है जिसके निर्माण में प्रकृति और मानव दोनों का योगदान है, यहां जंगली जानवरों की भरमार है तो काबिनी जलाशय में बहते पानी की चमक भी, इसीलिये इस स्वर्ग को बचा के रखना है।
सैलानियों को इसका ट्रस्टी बनना होगा, न कि केवल सफ़ारी यात्राओं का आनंद उठाने वाला एक उपभोक्ता। क्या हम उत्सुकता और विनम्रता के साथ जंगल में जा सकते हैं, और क्या हम इसकी शालीनता को अपनाते हुए लौट सकते हैं? हम एक ऐसी महामारी से उबरने की राह पर हैं, जिसने हमें ये सिखाया है कि किस तरह वन्यजीवों से हमारा अंतरंग रिश्ता है। हमारे लिए इससे बेहतर समय क्या हो सकता है ये सोचने के लिए कि कैसे जल्दी-जल्दी हम प्रकृति से टूट गए अपने रिश्तों को एक बार फिर जोड़ लें?
जहां तक मेरा सवाल है तो मैं ऐसी परवरिश की तमन्ना जारी रखूँगी। लोग मुझसे पूछते हैं कि करिया के दीदार हो जाने के बाद भी क्या मैं यहां नियमित रूप से आती रहूंगी? यहां आने का आकर्षण अगर कुछ है तो वो ये कि करिया मुझे इशारे से बुलाकर कुछ और भी दिखाना चाहता है, वो मुझसे इल्तज़ा करता है कि मैं उसके इतर भी जंगल की आत्मा में झाँकूँ, जहां निश्चित रूप से मानवीय दिल धड़कता मिलेगा।
(रोहिणी नीलेकणी जल के स्थायित्व और स्वच्छता के मुद्दों पर सक्रिय अर्घ्यम फाउंडेशन की फाउंडर अध्यक्ष हैं, उनका यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में पहले livemint.com में प्रकाशित।)