कट्टरता में नस्ल और देश से बड़ा धर्म, गैर इस्लामिकों को पाकिस्तान नहीं मुसलमान से समस्या

हमारे देश में धार्मिक कट्टरता के सबसे पहले सरकार या फिर नेता हवा देते हैं, और इसके बाद मीडिया हफ़्तों प्रचारित कर सही साबित करने की कोशिश करता है, अब तो न्यायालय भी इसी श्रेणी में आ गए हैं, जहां भड़काऊ अफवाहों को खुलेआम “ऑन कैमरा” प्रचारित करने वाले पत्रकार करार दिए जाते हैं....

Update: 2020-11-16 11:05 GMT

Lucknow News : पुलिस की निगरानी में अदा की जाएगी जुमे की नमाज, खुफिया विभाग ने जताई विवाद की आशंका

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। व्यक्तिगत पूर्वाग्रह से सन्दर्भ में पहला स्थान धर्म का है, और इसके बाद नस्ल या देश आता है, यानी कट्टरता के सन्दर्भ में हम नस्ल या देश की तुलना में धर्म के मामले में अधिक कट्टर होते हैं।

ब्रिटेन के वूल्फ इंस्टीट्यूट ने दो वर्ष के अध्ययन के बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, हाउ वी गेट अलोंग। इस अध्ययन के लिए इंग्लैंड और वेल्स में 11700 एशियाई लोगों का सर्वेक्षण किया गया, और उनसे मुख्य तौर पर प्रश्न पूछा गया था कि उनका कोई निकट का दूसरे धर्म, विशेष तौर पर इस्लाम में शादी कर ले तो वे कैसा महसूस करेंगे। लगभग तीन-चौथाई श्वेत और एशियाई लोगों के अनुसार यदि उनके निकट के लोग अश्वेत या एशिया के दूसरे देशों के लोगों से शादी करें तो उन्हें कोई समस्या नहीं होगी, पर 43 प्रतिशत लोगों को मुस्लिम लोगों से समस्या थी। पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है, अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि गैर-इस्लामी लोगों को पाकिस्तान से कोई समस्या नहीं है, पर मुस्लिम से समस्या है।

अध्ययन से इतना स्पष्ट है कि दूसरे धर्मों के लोगों में इस्लाम के प्रति बहुत सारे पूर्वाग्रह है। दूसरी तरफ मुस्लिम लोग भी दूसरे धर्मों के बारें में पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। ऐसी धारणा 75 की उम्र पार कर चुके लोगों, कम पढ़े-लिखे लोगों, गैर एशियाई अल्पसंख्यक समुदाय और कट्टर ईसाईयों में बहुत गहरी है।

अध्ययन से यह भी स्पष्ट होता है कि धर्म के प्रति कट्टरता महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा अधिक है। उदारवादी क्रिश्चियनों में धर्म के प्रति कट्टरता हिन्दू, सिख, यहूदी, बौद्ध और नास्तिकों की तुलना में बहुत कम है। लगभग 40 प्रतिशत मुस्लिम लोगों को भी क्रिश्चियन समुदाय से रिश्ते बनाने में कोई आपत्ति नहीं है।

हमारे देश में तो धार्मिक कट्टरता को सरकारें और नेता की बढ़ाते हैं, जाहिर है यह लगातार बढ़ता जा रहा है। ओपन डोर्स अमेरिका की एक संस्था है जो दुनियाभर में क्रिश्चियनों पर हमले या भेदभाव का आकलन करती है। इस सन्दर्भ में वर्ष 2014 तक भारत 28वें स्थान पर था, पर इसके बाद देश क्रिश्चियनों के सन्दर्भ में पहले से अधिक असिह्ष्णु होने लगा और हम अब 10वें स्थान पर हैं। अमेरिका की कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस ने अपनी रिपोर्ट में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के हनन पर गभीर चिंता जाहिर की है।

वर्ष 2017 में प्यु रिसर्च सेंटर के आकलन के अनुसार कुल 198 देशों में भारत धार्मिक स्वतंत्रता के हनन के सन्दर्भ में दुनिया में चौथा सबसे खराब देश है – इससे ऊपर केवल सीरिया, नाइजीरिया और इराक ही हैं। अमेरिका के ही कमीशन ऑन इन्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम की रिपोर्ट पिछले कुछ वर्षों से भारत में धार्मिक कट्टरता का मुद्दा उठाती रही हैं और अपनी आदत से मजबूर केंद्र सरकार हरेक रिपोर्ट को खारिज करते हुए आंतरिक मामलों में दखल की दुहाई देती है।

बाबरी मस्जिद को तोड़ना देश में किसी इमारत की लिंचिंग की घटना थी, तोड़कर एक विशेष रुझान वाले समूह को लिंचिंग की आदत पड़ गई है और नेताओं को लिंचिंग को भड़काने की। इमारत की लिंचिंग के बाद सरकार की नज़रों में प्रतिष्ठित यह समूह जनता की खुलेआम लिंचिंग करता जा रहा है। जैसे पुलिस में निर्दोष के तथाकथित एनकाउंटर के बाद आउट-ऑफ़-टर्न प्रमोशन पक्का हो जाता है, वैसे ही लिंचिंग के बाद राजनीति में प्रवेश का द्वार खुल जाता है।

राजनीति में लोग गिरते तो पहले भी थे, पर राजनीति में अंधे होते हुए नेता पहली बार नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री भी बार-बार साबित कर जाते हैं कि उनकी सरकार को आमजन से कोई मतलब नहीं है, और अल्पसंख्यकों से तो कतई नहीं। उनका एजेंडा स्पष्ट है, यदि इस एजेंडा पर कभी धूल जमती भी है, तो उसे तुरंत साफ़ कर दिया जाता है।

हमारे देश में धार्मिक कट्टरता के सबसे पहले सरकार या फिर नेता हवा देते हैं, और इसके बाद मीडिया हफ़्तों इसे प्रचारित करता है और सही साबित करने की कोशिश करता है। अब तो न्यायालय भी इसी श्रेणी में आ गए हैं, जहां भड़काऊ अफवाहों को खुलेआम "ऑन कैमरा" प्रचारित करने वाले पत्रकार करार दिए जाते हैं और फिर न्यायालयों को इनकी अभिव्यक्ति की आजादी नजर आने लगती है। दूसरी तरफ समाज में भाईचारा का प्रसार करने वाले सभी आतंकी करार दिए जाते हैं।

न्यायालयों ने बार-बार साबित किया है कि आज के दौर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केवल समाज को बांटने वालों के लिए ही है। आखिर "न्यू इंडिया" को भारत या इंडिया से महान बनाना है।

Tags:    

Similar News