ग्राउंड रिपोर्ट: गंगा के सहारे गुजारा करने वाले 50 हजार लोगों का जीवन संकटग्रस्त

पप्पू कहता है जब हम 200-300 रुपये रोज कमा पाते हैं तो राशन कार्ड बनवाने के लिए 1500 रुपये कहां से दे पाएंगे। ये सरकार और सरकारी लोग समझते ही नहीं हमारी दिक्कतों को, सरकार तो सिर्फ ढकोसले की चल रही है...

Update: 2020-08-10 15:05 GMT

किसान ही नहीं बल्कि गंगा तीरे बैठकर कमाई करने वाले अन्य लोग भी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं (photo : janjwar)

कानपुर से मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार। कानपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर उन्नाव-शुक्लागंज की सीमा से सटे गंगाघाट, कटरी के तमाम मुहल्ले और क्षेत्र में रहने वाले किसान, मल्लाह, निषाद मछुआरे इत्यादि लोग मां गंगा के सहारे अपनी रोजी रोटी और बाल बच्चे पालते हैं।

इन दिनों गंगा जी के घटते बढ़ते जलस्तर से समुदाय विशेष का जीवन यापन अस्त-व्यस्त हो चुका है। गंगा जी से लगभग 50 से 60 हजार लोगों की चलने वाली रोजी रोटी सिर्फ यहां के लोगों की है, देश में यह संख्या करोड़ों में हो सकती है। जनज्वार ने गंगाघाट से लेकर कटरी तक लोगों की समस्याएं जानीं, सबने एक ही सुर में अपनी तमाम दिक्कतें बतायीं।

गंगा के किनारे पड़ने वाला क्षेत्र कभी फरारी काटते बदमाशों और माफियाओं की सेफ जगह हुआ करती थी। बड़े—बड़े पेड़ों और घने जंगलों से पटी इस जगह में गुनाहगार सबसे महफूज रहते थे। इसका कारण है कि इस जगह मोटर साइकिल तक जाने का रास्ता नहीं है। जनज्वार संवाददाता को भी इस जगह तक पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर की लंबी दूरी तय करनी पड़ी।

यहां पहुंचते ही किसानों ने तास के पत्तों की बिछी बिसात बंद कर दी, तो कुछ हमें घूरकर देख रहे थे। मानो कोई नया नया घूसखोर दरोगा आ गया हो। जब उनसे कहा कि खेलते रहिए बस हमें थोड़ा समय दीजिये, मैं पत्रकार हूँ और आपकी दिक्कतें सुनने आया हूँ, तब जाकर सभी सहज हुए। एक समस्या पूछने पर समस्या दर समस्या गिनाते गए।

गुट में बैठे किसान पप्पू बताते हैं, यहां के किसानों का मुख्य व्यवसाय गंगा की रेती में खीरे ककड़ी इत्यादि उगाकर बेचना रहता है। गंगा का घटता बढ़ता जलस्तर देखकर कोई फसल उगाने लगाने में मन भय खाता है। सिर्फ धान उग रखे हैं उसे पानी की समस्या नहीं होती इसलिए। बाकी हाल बड़े खराब हैं। कमाई धमाई कुछ है नहीं, खाली बैठे हैं। पप्पू के साथ बैठे एक दूसरे किसान बताते हैं, किसानी में बाल बच्चे नहीं पल पा रहे हैं। मजदूरी करने लगे हैं उसमें भी कभी काम मिलता है कभी नहीं। बस जिंदगी काट रहे हैं जैसे तैसे।

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एक अन्य किसान भूरी प्रसाद कहते हैं, भईया सब चांस का खेल है। आगे गंगा बैराज है एक दो गेट खुल गए तो सब फसल तहस नहस हो जाती है। काम धंधा मेहनत मजूरी भी नहीं है जो कमा खा लें, बाल बच्चे पाल लें। सरकार और सरकारी नुमाइंदे हमें चकमा देते हैं। राशन मिलता नहीं है। करें तो क्या करें, कैसे घर परिवार पालें। मतलब कुल मिलाकर जिंदगी से त्रस्त आ चुके हैं। सरकार अपना पेट भरने से फुर्सत नहीं पा रही है। सब नेता अभिनेता खाली ढोंग—ढकोसले और हवाई वादे करते फिर चले जाते हैं।

किसान पप्पू के एक साथी जो किसान हैं, कहते हैं यहां पश्चिमी गंगा घाट से लगाकर यहां तक लगभग 50—100 हजार किसान कमाता खाता था। राशन कार्ड और उससे मिलने वाले अन्न का कोई भरोसा नहीं है। कहते हैं आधार कार्ड हो तो राशन मिलेगा। आधार कार्ड दिखाओ तो कहते हैं 1500 रुपये दो। पप्पू कहता है जब हम 200-300 रुपये रोज कमा पाते हैं तो राशन कार्ड बनवाने के लिए 1500 रुपये कहां से दे पाएंगे। ये सरकार और सरकारी लोग समझते ही नहीं हमारी दिक्कतों को। सरकार तो सिवाय ढकोसले की चल रही है ये समझिए सिर्फ।

एक किसान ही नहीं बल्कि गंगा तीरे बैठकर कमाई करने वाले अन्य लोग भी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। यही के 94 वर्षीय कर्मकांडी पंडित रेवती प्रसाद द्विवेदी हमसे बताते हैं कि अब उनके कान भी ठीक तरह काम नहीं करते। पिछले 40 वर्षों से गंगा का किनारा उनकी रोजी रोटी और कमाई का एकमात्र सहारा रहा है। पहले वह रोज 4 से 500 रुपये रोज कमा लेते थे। अब कभी 50 तो कभी 70 रुपये रोज लेकर घर जाते हैं। घर में खाने वाले 6 लोग हैं जिनका रोज का खाना खर्च 300 रुपये के आसपास है। इस समय वो भगवान कृष्ण के मित्र सुदामा की तरह जीवन जी रहे हैं।

थोड़ा आगे बढ़ने पर नाविक व गोताखोर नफीस मिला। नफीस की सरकार से भयंकर चिढ़ है। अब तक हजारों लोगों की जिंदगी बचाने के बाद भी उसे आज तक सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई। कई बार आवेदन करने के बाद भी जुगाड़ न होने पर उसका आवेदन निरस्त हो गया। कई लाशें नदीं से निकाल चुका नफीस हमसे कल के अखबार में अपनी फोटो छापकर उसकी आवाज उठाने के लिए गुहार लगाता है।

3 बेटियों का बाप नफीस रोजी-रोटी के लिए रोज जद्दोजहद करता है। कमाई न होने पर अगल बगल से मांगकर खाता है और किसी तरह बाल बच्चे पाल रहा है। नफीस आगे कहता है कि यहां अधिकतर गोताखोर और नाविक ही परेशान हैं।

सबसे आखिर में हमने यहां के सभासद महेश निषाद से बात की। महेश यहां के किसान और मल्लाहों नाविकों के माईबाप हैं। महेश लगातार 20 सालों से यहां के पार्षद हैं। पार्षद महेश निषाद हमसे कहते हैं कि गंगा का जलस्तर बढ़ने के बाद यहां के रहने वालों पर मराही आ जाती है। गंगा की रेती पर ककड़ी खीरा इत्यादि उगाकर बसर करने वाले लोग सबसे अधिक परेशानी में जीवन जीते हैं। तमाम किसान लोग तो मजदूरी करने लगते हैं। अब कोरोना और लॉकडाउन के समय मजदूरी भी नहीं है। कुल मिलाकर हालत बहुत खराब हो जाती है।  

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