खुश नहीं है मोदी जी का न्यू इंडिया, वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स के कुल 149 देशों में भारत का स्थान 139वां

हैप्पीनेस इंडेक्स में देशों के क्रम से स्पष्ट है कि जीवंत लोकतंत्र वाले देशों के नागरिक सबसे अधिक खुश हैं, पर हमारे देश में तो लोकतंत्र का जनाजा निकल चुका है। राज्यसभा में बजट सत्र के भाषण में प्रधानमंत्री जी ने लोकतंत्र पर खूब प्रवचन दिए, कहा भारत का लोकतंत्र तो दुनिया के लोकतंत्र की माँ है

Update: 2021-03-27 14:49 GMT

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित सस्टेनेबल डेवलपमेंट सौल्युशंस नेटवर्क हरेक वर्ष वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स प्रकाशित करता है और इसके 2021 के संस्करण में भारत का स्थान कुल 149 देशों में 139वां है, वर्ष 2020 में हमारा स्थान 144वां था और वर्ष 2019 में भारत 140वें स्थान पर था और इस सूची में कुल 156 देश शामिल थे।

वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स पिछले नौ वर्षों से प्रकाशित किया जा रहा है और भारत लगातार इस सूची में पिछड़ता जा रहा है।भारत का पिछड़ना इस लिए भी आश्चर्य का विषय है क्योकि यहाँ प्रचंड बहुमत वाली ऐसी सरकार है जो लगातार जनता की हरेक समस्या सुलझाने का दावा करती रही है, चीख-चीख कर बताती है कि 2014 के पहले की सरकारों ने जनता के लिए कुछ नहीं किया। सरकार के अनुसार उसने पानी, बिजली, कुकिंग गैस और इसी तरह की बुनियादी सुविधाएं हरेक घर में पहुंचा दी है, पर इंडेक्स तो यही बताता है कि दुनिया के सबसे दुखी देशों में हम शामिल हैं।

इस इंडेक्स में हमेशा की तरह यूरोप के नोर्डिक देश सबसे आगे हैं।सबसे खुश देशों में लगातार चौथी बार फिनलैंड प्रथम स्थान पर है, इसके बाद आइसलैंड, डेनमार्क, स्विट्ज़रलैंड, और नीदरलैंड हैं।जर्मनी सातवें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2020 में इसका स्थान 17वां था। इसी तरह की लम्बी छलांग लगाने वाल देश क्रोएशिया भी है जिसने एक वर्ष में ही 79वें स्थान से 23वें स्थान तक का सफ़र तय किया है।इंडेक्स में सबसे नीचे के स्थान पर अफ़ग़ानिस्तान है, पिछले वर्ष भी यह सबसे नीचे ही था।

इसके पहले क्रम से ज़िम्बाब्वे, रवांडा, बोट्सवाना, लोसेथो और मलावी हैं। भारत के पड़ोसी देशों में सबसे अच्छे स्थान पर चीन है, जो इंडेक्स में 84वें स्थान पर है।नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका इस इंडेक्स में क्रमशः 87, 101, 105, 126 और 129वें स्थान पर हैं।

इस इंडेक्स में अमेरिका 14वें स्थान पर है, जबकि 2020 में यह 18वें स्थान पर था। यूनाइटेड किंगडम 18वें, सऊदी अरब 26वें, रूस 76वें, और हांगकांग 77वें स्थान पर है।स्पष्ट है कि अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित रखने वाले, गृहयुद्ध की विभीषिका झेलते और लम्बे आन्दोलनों को झेलते देश के नागरिक भी हमसे अधिक खुश हैं।

हैप्पीनेस इंडेक्स 2021 पूरे कोविड 19 दौर का आकलन है, इससे स्पष्ट होता है कि इस महामारी ने भले ही दुनिया को परेशान किया हो पर लोगों की खुशी बरकरार है।वेश 2021 और 2020 के इंडेक्स में अधिक अंतर नहीं है।हैप्पीनेस इंडेक्स के लिए खुशी का आकलन देशों के प्रति व्यक्ति जीडीपी. स्वास्थ्य अनुमानित आयु, लागों से बातचीत, सामाजिक तानाबाना, अपने निर्णयों की आजादी, समाज में भ्रष्टाचार जैसे मानदंडों से किया जाता है।

कोविड 19 के दौर में कोविड का देश की आबादी पर प्रभाव, इससे निपटने के सरकारी तरीके और समाज की मदद के लिए सरकार द्वारा किया गए उपायों का भी आकलन किया गया था।जाहिर है, हमारा देश इन सारे मामलों में फिसड्डी रहा।

हैप्पीनेस इंडेक्स में देशों के क्रम से स्पष्ट है कि जीवंत लोकतंत्र वाले देशों के नागरिक सबसे अधिक खुश हैं, पर हमारे देश में तो लोकतंत्र का जनाजा निकल चुका है। राज्यसभा में बजट सत्र के भाषण में प्रधानमंत्री जी ने लोकतंत्र पर खूब प्रवचन दिए, कहा भारत का लोकतंत्र तो दुनिया के लोकतंत्र की माँ है।

इस भाषण के ठीक दो दिनों पहले ही द इकोनॉमिस्ट ग्रुप के इकोनॉमिक्स इंटेलिजेंस यूनिट ने डेमोक्रेसी इंडेक्स 2020 में दुनिया के 167 देशों के इंडेक्स में प्रधानमंत्री जी के लोकतंत्र की माँ को 53वें स्थान पर रखा है और इसे "दोषयुक्त लोकतंत्र" वाले देशों में वर्गीकृत किया है।

वर्ष 2014 में बीजेपी सरकार को जब जनता ने बहाल किया था तब इस इंडेक्स में भारत 27वें स्थान पर था।इसके बाद से प्रधानमंत्री जी ने लोकतंत्र का खूब डंका पीटा और हम गिरते हुए 53वें स्थान पर पहुँच गए।वर्ष 2014 में हमारा देश इस इंडेक्स में अब तक के सबसे ऊंचे स्थान पर था और इस वर्ष यह सबसे निचले स्थान पर है।

दरअसल वर्ष 2014 के बाद से देश में लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल दी गई है।सत्ताधारी और उनके समर्थक कुछ भी करने को आजाद हैं – वे अफवाह फैला सकते हैं, हिंसा फैला सकते हैं, ह्त्या कर सकते हैं और दंगें भी करा सकते हैं। दूसरी तरफ, सरकारी नीतियों का विरोध करने वाले चुटकियों में देशद्रोही ठहराए जा सकते हैं, जेल में बंद किये जा सकते हैं या फिर मारे जा सकते हैं। मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं और अधिकतर न्यायालय सरकार के विरोध की हर आवाज को कुचलने में व्यस्त हैं, इसके बाद भी लोकतंत्र से सम्बंधित इंडेक्स में 167 देशों में हम 167वें स्थान पर नहीं हैं तो यह चमत्कार ही है।

लोकतंत्र की सीढ़ियों पर फिसलने की भारत की आदत पड़ चुकी है, फ्रीडमहाउस के इंडेक्स में भी हमारा देश स्वतंत्र देशों की सूचि से बाहर हो चुका है और आंशिक स्वतंत्र देशों के साथ शामिल हो चुका है।भारत दुनिया का अकेला तथाकथित लोकतंत्र है, जहां अपराधी, आतंकवादी, प्रशासन, सरकार, मीडिया और पुलिस का चेहरा एक ही हो गया है।अब किसी के चहरे पर नकाब नहीं है और यह पता करना कठिन है कि इनमें से सबसे दुर्दांत या खतरनाक कौन है।

इस इंडेक्स से इतना तो स्पष्ट है की हमारे देश के लोग सरकार पर भले ही भरोसा करने का नाटक करते हों पर संतुष्ट नहीं हैं।पिछले कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, नौकरी से छटनी, आपसी वैमनस्व और असहिष्णुता जैसी समस्याएं विकराल स्वरुप में उभरीं हैं उसने पूरे समाज को प्रभावित किया है और समस्याओं से घिरा समाज कभी खुश नहीं रह सकता।

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