Hijab Row: देश की 10 चर्चित महिला एक्टिविस्टों ने हिजाब के विरोध में चल रहे आंदोलन पर क्या कहा?
Iran Hijab Row : ईरान में हिजाब विवाद ने इन दिनों काफी तूल पकड़ा हुआ है। महसा अमिनी की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद से ईरान में हिजाब ईरान में हिजाब के खिलाफ जारी प्रदर्शन न केवल हिंसक हुआ बल्कि 40 महिला प्रदर्शनकारियों की मौत होने की खबर भी सामने आई।
मनीष दुबे की रिपोर्ट
Iran Hijab Row : ईरान में हिजाब विवाद ने इन दिनों काफी तूल पकड़ा हुआ है। महसा अमिनी की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद से ईरान में हिजाब ईरान में हिजाब के खिलाफ जारी प्रदर्शन न केवल हिंसक हुआ बल्कि 40 महिला प्रदर्शनकारियों की मौत होने की खबर भी सामने आई। उग्र होते प्रदर्शनों को देखते हुए सरकार ने इंटरनेट पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही ईरान के खूफिया मंत्रालय ने गुरुवार 22 सितंबर को चेतावनी दी कि विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना अवैध है और प्रदर्शनकारियों पर केस चलाया जाएगा।
भारत के कर्नाटक में भी हिजाब को लेकर विवाद हुआ। कर्नाटक में हिजाब को लेकर मामला तब सामने आया जब एक कॉलेज में हिजाब पहनी छात्राओं को कक्षाओं में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली। बाद में 5 फरवरी 2022 को कर्नाटक सरकार द्वारा कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया गया। कर्नाटक के कुछ कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक लगाने के बाद कर्नाटक के उच्च न्यायालय में भी दो याचिकाएं दायर की गई हैं। 8 फरवरी 2022 को कर्नाटक में मुसलमान छात्त्राओं द्वारा हिजाब पहनने के विवाद तेज हो गया, जिसके बाद राज्य सरकार ने अगले तीन दिनों के लिए हाई स्कूल और कॉलेज बंद करने की घोषणा की।
इसके अलावा भी कुछ राज्यों और शहरों में हिजाब के लिए कंट्रोवर्सी सामने आई और आती रह रही है। इस मुद्दे को लेकर जनज्वार ने देश की 10 चर्चित महिला एक्टिविस्टों से बात की और हिजाब विवाद को लेकर उनका क्या कहना, मानना है, उनका पक्ष जाना। सभी ने इसे लेकर अपने अलग-अलग विचार और तर्क रखे। जानिए जनज्वार से बातचीत में हिजाब को लेकर किसने क्या कुछ कहा है....
सुभाषिनी अली
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली ने हमसे बात करते हुए कहा कि, 'इस समय देश के बीतर काफी सारे विवाद चल रहे हैं। इस वक्त मैं राजस्थान में हूँ। यहां तो हर महिला इतना लंबा-चौड़ा घूंघट ओढ़कर रहती है। जो उसे कराया जाता है। यहां तक की पढ़ाई- लिखाई से दूर रखा जाता है। हमारे देश में कुछ नहीं बस बातों का बतंगड़ बनाया जाता है। कोई हिजाब पहने न पहने मूल बात ये नहीं है, पहले देश की तरक्की और हर इंसान को दो वक्त का निवाला कैसे मिले इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है।'
रूपरेखा वर्मा
लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कार्यवाहक वाइस चांसलर और 79 वर्षीय फेमिनिस्ट कार्यकर्ता रूप रेखा वर्मा ने हिजाब पर विवाद को लेकर हमसे कहा कि, 'हम हिजाब को लेकर सवाल करते हैं, विवाद खड़ा कर रहे, लेकिन घूंघट को लेकर क्यों विरोध नहीं करते? घूंघट पर ना बोलें और हिजाब पर बोलें तो ये गलत बात है। हमें याद है कि आजादी के बाद देश में प्रौढ़ शिक्षा अभियान जो चलाया गया था, वो कारगर साबित हुआ। उस समय ज्यादातर महिलाएं घूंघट में जाती थीं, अगर उनसे कहा जाता कि घूंघट में ना आएं तो क्या उस समय शिक्षा, जो दी जा रही थी, इतनी कारगर रहती? कर्नाटक सरकार ने जो कुछ किया उसकी मैं कड़ी निंदा करती हूँ। और सबसे बड़ी बात इस वक्त देश में जहां-जहां भाजपा की सरकारें है, वहां तो इस तरह के विवादों को लेकर बिल्कुल हदें ही पार की जा रही हैं। मैं इस तरह के विवादों की कड़ी निंदा करती हूँ।'
नूतन ठाकुर
वरिष्ठ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने जनज्वार से कहा कि, 'हिजाब को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। क्योंकि कुछ चीजें पर्सनल होती हैं। कोई क्या खायेगा, कोई क्या पहनेगा, ये उसकी मर्जी पर निर्भर करता है। रही बात कमेंटबाजी और छेड़खानी करने की तो पुलिस का रोमियो स्क्वॉड अपना काम ठीक तरह से नहीं कर रहा है। 15 दिन तेजी दिखाता है और फिर भूल जाता है। चिन्हित लड़कों के खिलाफ अभियान चलाया, लेकिन उन्हें भी पकड़ लिया जो इस तरह के काम नहीं कर रहे होते हैं। हिजाब विवाद की कोई जड़ नहीं है, ये पूरी तरह से सिस्टम और पुलिसिंग का फेल्योर है।'
मीना सिंह
सामाजिक कार्यकर्ता और लखनऊ AIPWA प्रभारी मीना सिंह कती हैं, 'हिजाब को लेकर जो विवाद चल रहा है, पहले कर्नाटक फिर ईरान। इसे इंडिया पर थोपने की भी कोशिश की गई। लेकिन इस सबसे पहले एक महिला होने के नाते हमारी अपनी स्वतंत्रता है। जो पहनना चाहे, जिसे नहीं पहनना ना पहने, लेकिन किसी पर कोई चीज थोपी नहीं जानी चाहिए। ईरान में जो विरोध चल रहा है वह स्वागत योग्य है। कट्टरता चाहें भारत की हो अथवा किसी भी दूसरे मुल्क की, वह इसका विरोध करती हैं। मैं ईरान की महिलाओं के साथ हूँ। उनका सपोर्ट करती हूँ। किसी महिला पर कोई चीज जबरन थोपी जाए तो हम इस तरह की मूवमेंट का साथ देंगे।'
नाइश हसन
सामाजिक कार्यकर्ता नाइश हसन कहती हैं, 'ईरान के संविधान में कहीं भी हिजाब शब्द का जिक्र नहीं है। इसके अनुच्छेद 19 का अध्याय 3 कहता है कि ईरान के सभी लोगों को बराबरी का अधिकार है। अनुच्छेद 20 भी भी महिला पुरूष को कानून में बराबर संरक्षण दिये जाने की बात कहता है। इसी अनुच्छेद में इस बात के बाद यह शब्द आ गया है कि, इन-कर्फॉमिटी विद इस्लामिक क्राइटेरिया। बस इसी शब्द ने ईरानी समाज के पितृसत्तात्मक तत्वों को स्वछंद बना दिया है। इसी शब्द के दम पर ईरान में औरतों पर जुल्म पर जुल्म किये जा रहे हैं। वह इसके बिल्कुल खिलाफ हैं।'
कहकशां परवीन
सामाजिक कार्यकर्ता कहकशां परवीन ने जनज्वार से बात करते हुए कहा कि, 'पर्सनली देखा जाए तो हिजाब के खिलाफ हूँ। लेकिन कर्नाटक के बाद लड़कियों के साथ जो छोटा-मोटा क्राइम होता रहता है, वह नहीं होना चाहिए। भारत के हिसाब से देखा जाए तो हमारा मौलिक अधिकार, ह्यूमन राइट्स और देश का संविधान कहता है कि सभी को समानता का अधिकार मिले। अब योगी जी जो पहनकर आते हैं, वो धार्मिक ही तो है। हमारे मन में नेता की छवि सफेद कुर्ता-पाजामा की है। किसी की पहचान जनेऊ, माथे पर टीका, चंदन लगाने से होती है। बशर्ते हमारा ऑफिस, कार्यस्थल और पढ़ाई का संस्थान समानता के साथ आगे बढ़े। सरकार की नियत साफ नहीं है वह नहीं चाहती कि मुस्लिम लड़कियां आगे बढ़ें। जबकि सभी को समानता के साथ संवैधानिक तरीके से प्रमोट करना चाहिए ना कि हिजाब अथवा किसी अन्य तरह के मुद्दे को उछालना चाहिए।
अरूंधती दुरू
सामाजिक कार्यकर्ता अरूंधति दुरू कहती हैं कि, 'अगर हिजाब को लेकर सवाल करें तो फिर पगड़ी और कृपाण पर भी सवाल उठता है। ये क्यों अलॉउड है। मुझे नहीं लगता कि ये हिंदू और मुस्लिम से अधिक का कोई मुद्दा है। जब हिंदू महिलाएं सिर ढ़क रही हैं तो मुस्लिम महिलाओं को भी ढ़कने ना ढ़कने देने पर सवाल नहीं करना चाहिए। इस तरह के विवादों से मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। और फिर जिस देश की पार्लियामेंट में भगवा कपड़ा अलाऊ है वहां इस तरह के विवादों को हवा नहीं देना चाहिए। कोई सिर ढ़कना चाहता है कोई नहीं ढ़कना चाहता है, अगर नियम बनाइये तो सड़क से संसद तक सभी के लिए एक ड्रेस कोड लागू हो।'
कांति मिश्रा
भारतीय महिला फेडरेशन की स्टेट सेक्रेटरी कांति मिश्रा ने जनज्वार से बातचीत करते हुए कहा, 'कोई कुछ पहनता है, कोई कुछ खाता है, कोई अपनी मर्जी से अपना जीवनसाथी चुनता है। इन चीजों का उसे अधिकार है और होना चाहिए। इसमें किसी को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हमारी जो गवर्नमेंट है वो धर्म को लेकर आस्था को लेकर फसाद करवाने का काम कर रही है। हमारा मानना है कि, जिसे जो पहनना है वह पहनने दीजिए। मुझे याद है कि जब मैं कॉलेज जाती थी तो कुछ लड़कियां रास्ते में चेहरा ढ़क कर कॉलेज आती थी, और क्लास में आती थी तो उतार लेती थीं। घर जाते समय रास्ते में फिर पहन लेती थीं। इसमें क्या दिक्कत है।'
कुमुदिनी पति
इलाहाबाद छात्रसंघ की पूर्व उपाध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता कुमुदिनी पति ने हिजाब के मसले पर बोलते हुए कहा कि, 'महिलाओं पर किसी भी तरह की जबरदस्ती की जाए वह गलत है। किसी भी मामले में किसी भी तरह का इंपोजीशन नहीं होना चाहिए। महिलाओं को जो सही लगता है, उन्हें जो पहना है, नहीं पहनना है। हिजाब पहने की नहीं पहने यह उनपर ही छोड़ देना चाहिए। और सबसे बड़ी बात ये कि यह किसी एक के करने से नहीं होगा। महिला संगठनों को एकजुट होकर इसके लिए आवाजा उठाने की जरूरत है। अन्यथा मुझे नहीं लगता कि कल को परिस्थियां और भी अधिक दुखद हो जाएं तो हमें किसी तरह का खेद प्रकट करना चाहिए। महज उन्हें सहने के और झेलने के।'
वंदना मिश्रा
सामाजिक कार्यकर्ता वंदना मिश्रा कहती हैं कि, 'पहले तो ईरान में एक प्रोग्रेसिव वर्ग रहता था। खुलापन था। उनकी पीढ़ियों ने भी यही सब देखा तो वे क्यों अब जबरन थोपा जा रहा हिजाब स्वीकार करें? पहले आजादी थी अब दबाव डाला जा रहा है। यहां हमारे देश का मामला बिल्कुल अलग है। अगर आप एक धर्म को किसी बात की छूट दे रहे हैं तो सवाल है कि दूसरे धर्म पर पाबंदी क्यों लगाई जाए? उसे भी अपने धर्म के अनुसार रहने, जीने का अधिकार है। आप हिजाब पर पाबंदी लगाएं तो दूसरे धर्मों के पहनावे-उढ़ावे पर पाबंदी लगाएं तब तो बात बराबर की होती है। मेरा एक फंडामेंटल सवाल है कि अगर सिखों को पगड़ी पहनने का अदिकार है तो मुस्लिम महिलाओं को बुरका पहनने की आजादी क्यों नहीं होनी चाहिए? पूरी कम्यूनिटी के अंदर ये बात उठनी चाहिए। ये एक बेहद काम्प्लिकेटेड मामला है, इसपर सभी को संवेदनात्मक और बिना किसी पक्षपात वाले नजरिए से सुलझाना चाहिए ना कि इसपर राजनीति होनी चाहिए।'