जनपक्षधर पत्रकारों की जुबान सिल देना चाहती है मोदी सरकार, दमन के लिए झोंकी पुलिस मशीनरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में एक भी प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित नहीं किया है। निर्भीक पत्रकारों से मोदी को डर लगता है।

Update: 2021-01-31 14:54 GMT

[ Photo Edited By Nirmal Kant ]

जनज्वार। किसान आंदोलन को रौंदने के लिए मोदी सरकार ने प्रायोजित हिंसा और लाल किले पर जो झंडे के नाटक का सहारा लिया, उसका पर्दाफाश हो जाने और किसान आंदोलन में नए सिरे से ऊर्जा का संचार होने के बाद मोदी सरकार की हालत खिसियानी बिल्ली जैसी हो गई है। वह संघ के गुंडों को हमले करने के लिए भेज रही है और जो जनपक्षधर पत्रकार उसकी साजिश को देश-दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, उनके खिलाफ अनाप-शनाप धाराएं लगाकर उनको गिरफ्तार कर रही है। वह दमन के ऐसे तमाम हथकंडों को आजमा रही है जो किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्म की बात हो सकती है।

न्यूज एंकर राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड की वरिष्ठ संपादकीय सलाहकार और लेखिका मृणाल पाण्डेय,कौमी आवाज़ के संपादक जफर आगा, कारवां पत्रिका के मुख्य संपादक परेश नाथ और कार्यकारी संपादक विनोद जोस पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। वरिष्ठ पत्रकार व द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस ने केस दर्ज कर दिया है। दो महीने से किसान आंदोलन की जमीनी रिपोर्ट कर रहे स्वतंत्र युवा पत्रकार मनदीप पुनिया और स्वतंत्र पत्रकार धर्मेन्द्र सिंह को गिरफ्तार किया गया।

फ्रीलांस पत्रकार मनदीप पुनिया ने दिल्ली पुलिस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच कथित सांठगांठ का खुलासा करने के लिए फेसबुक पर लाइव किया था, और बताया था कि शुक्रवार को किसानों के विरोध स्थल पर बड़े पैमाने पर हिंसा कैसे हुई थी। द कारवां के लिए काम कर रहे पुनिया ने शुक्रवार को सत्तारूढ़ भाजपा के साथ हिंसा के लिए दोषी अपराधियों के बीच संबंध स्थापित करने वाले साक्ष्य साझा किए थे।

पुनिया ने कहा कि वह शुक्रवार को हिंसा भड़कने पर विरोध स्थल पर मौजूद थे, उन्होंने कहा था, "50-60 लोगों की भीड़ तिरंगा लेकर पहुंची थी। वे किसानों को गाली देने लगे और उन्हें सबक सिखाने की धमकी देने लगे। जल्द ही, उन्होंने पथराव शुरू कर दिया।"

पुनिया ने कहा कि भीड़ में केवल 50-60 लोग शामिल थे, वहां मौजूद पुलिस कर्मियों की संख्या लगभग 4000-5000 थी। "2,000 पुलिस कर्मी सिर्फ उन्हें बैक-अप प्रदान कर रहे थे।" पुनिया ने अपने फेसबुक लाइव में कहा, जब दिल्ली पुलिस ने उन्हें बैक-अप मुहैया कराया तो उन्होंने (भीड़) पथराव किया। उन्होंने पेट्रोल बम भी फेंका और तंबू जलाने का प्रयास किया।

पुनिया ने हिंसा में शामिल लोगों और भाजपा के संबंध स्थापित करने की तस्वीरें भी दिखाईं। उनको साहसिक रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता है। उन्होंने शुक्रवार की हिंसा की सही रिपोर्टिंग नहीं करने के लिए अपनी बिरादरी पर निराशा व्यक्त की थी। "जिस तरह से मीडिया ने इस (हिंसा) की सूचना दी, उससे मुझे बहुत दुख होता है। यह पहली बार है कि मीडिया में रिपोर्टिंग उस तथ्य से पूरी तरह से विपरीत है जो वास्तव में हुआ था। उनमें से कुछ वास्तव में अच्छे पत्रकार हैं, जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। उन्होंने भी गलत रिपोर्टिंग की है।'

दिल्ली पुलिस ने शनिवार रात पुनिया और एक अन्य पत्रकार धर्मेंद्र सिंह को हिरासत में लिया था। जबकि सिंह को तुरंत रिहा कर दिया गया था, लेकिन दिल्ली पुलिस ने पुनिया को रिहा नहीं किया। द कारवां के हरतोष सिंह बल ने कहा कि अलीपुर पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मियों ने उन्हें पुनिया के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज करने की सूचना दी थी। उन्होंने लिखा है, "हमें ऐडसीएल डीसीपी जे. मीना द्वारा सूचित किया गया है कि एफआईआर 52/21 पीएस अलीपुर को 186, 332, 353 आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज किया गया है, हम जो भी कानूनी सहारा लेना चाहते हैं, ले लेंगे। हम जानते हैं कि मनदीप ने सुबह का समय बीजेपी के उन लोगों को ट्रैक करने की कोशिश में बिताया है, जो सिंघु में 'स्थानीय' होने का दावा करते हैं।"

यह सभी जानते हैं कि मोदी सरकार झूठ, दुष्प्रचार और साजिश के सहारे ही सत्ता तक पहुंची है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में एक भी प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित नहीं किया है। निर्भीक पत्रकारों से मोदी को डर लगता है। उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी प्रचारित होता रहा है जिसमें गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में प्रसिद्ध पत्रकार करण थापर को इंटरव्यू देते हुए वह उस वक़्त हकलाने लगे थे जब उनसे गुजरात दंगे के बारे में सवाल पूछा गया था। उस समय उनका हलक सूख गया था और पानी पीने के बाद उन्होंने इंटरव्यू को बीच में ही छोड़ दिया था।

मोदी ने सुधीर चौधरी, अंजाना ओम कश्यप, रजत शर्मा आदि पत्रकारों को अपना दास बनाकर देश की मीडिया को वफादार श्वान बनाकर रख दिया है। ऐसे श्वान सिर्फ अपने मालिक के लिए भौंकना ही अपना फर्ज समझते हैं। बदले में उनको मुंहमांगी कीमत दी जाती है। दूसरी तरफ पुनिया जैसे निष्पक्ष,निर्भीक और जनपक्षधर पत्रकारों का एक वर्ग ऐसा भी बचा हुआ है जो गणेश शंकर विद्यार्थी और भगत सिंह को अपना आदर्श मानकर पत्रकारिता धर्म का निर्वाह कर रहा है। मोदी को ऐसे ही पत्रकारों से सबसे अधिक डर लगता है और इसीलिए ऐसे साहसी पत्रकारों का दमन करने के लिए अदालत, पुलिस आदि तमाम मशीनरी को अब झोंक दिया गया है।

मोदी सरकार को स्वतंत्र मीडिया एक खतरे की तरह महसूस होती है। वह प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया को खरीद चुकी है जो केवल हिज मास्टर्स व्याइस की भूमिका निभा रही है। प्रोपगंडा मशीन में तब्दील हो चुकी मीडिया मोदी सरकार के जुल्म को विकास कहकर प्रचारित करती रही है। प्रोपगंडा मशीन के रास्ते में ऐसे पत्रकार आज भी रुकावट बनकर खड़े हैं, जिनकी रीढ़ की हड्डी अभी भी सलामत है और जो वैकल्पिक माध्यमों को अपनाकर और जान खतरे में डालकर भी वास्तविक खबरें आम जनता तक पहुंचा रहे है।

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