जन ज्वार स्पेशल : बिहार में पिछले 5 दिनों के भीतर जेलों से 80 फीसदी से ज्यादा एससी /एसटी - ओबीसी और अल्पसंख्यक रिहा
जाति विनाश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के बजाय जाति के खरपतवार को गढ्ढे में डालकर हमेशा के लिए सड़ा देने के बजाय कुछ लोग कबाड़ियों की तरह जाति के कूड़े कचरे/कबाड़ को इकठ्ठा करके अपना राजनीतिक व्यापार जारी रखना चाहते हैं....
ट्रेड यूनियन नेता डॉ. कमल उसरी की टिप्पणी
25 अप्रैल 2023 को बक्सर सेंट्रल जेल से बाहर निकलने पर बंदियों ने कहा कि. ‘हमें तो उम्मीद ही नहीं थी कि हम जेल से बाहर आएंगे। हमें लग रहा था कि हमारी मौत होने के बाद ही हम जेल से बाहर निकल पाएंगे, लेकिन अब हमारी रिहाई हो गई है। यह लगता है कि हमारा दूसरा जन्म हुआ है।’
बिहार सरकार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने कहा, आजीवन कारावास पाए कैदियों को छूट देने के संबंध में नियम हैं। 2012 के नए जेल मैनुअल के नियम में बताया गया है कि जो लोग आजीवन कारावास पाकर जेल गए, उनको कैसे और कब रिहा किया जायेगा। नियम कहता है कि जिन कैदियों का समय 14 वर्ष जेल समेत 20 वर्ष पूरा होगा, उनकी रिहाई पर विचार किया जाएगा। इसके लिए बिहार राज्य दंडादेश परिहार परिषद कैदियों की रिहाई पर विचार करती है। गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव इस परिषद के अध्यक्ष हैं।
पहले नियम था
पहले दुष्कर्म, दुष्कर्म के साथ हत्या, डकैती के साथ हत्या, दहेज के लिए हत्याए 14 वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे की हत्या, अनेक हत्या, कारागार में रहते हुए हत्या, पैरोल के दौरान हत्या, आतंकवादी घटना में हत्या, तस्करी करने में हत्या या काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या के दोषी की समय पूर्व रिहाई नहीं होती थी। इसमें से सरकारी सेवक की हत्या वाला क्लॉज हटाया गया है।
हमें याद रहना चाहिए कि भारतीय जेलों में सबसे अधिक संख्या में एससी/ एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बंद हैं, जिनमें से बहुत से कैदी विचाराधीन तो कई अपनी सज़ा पूरी कर चुके हैं, जिसकी चर्चा महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी भी कर चुकी हैं, लेकिन बात इस पर नही हो रही है।
बात वीरांगना फूलन देवी के हत्यारे पंकज सिंह उर्फ़ शेर सिंह राणा और राम रहीम जैसे सैकड़ों पैरोल पर रिहाई लेकर घूमने वालों पर भी नहीं हो रही है, बात बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई और उनके माल्यापर्ण के साथ स्वागत पर भी नहीं हो रही है, बात उनकी भी नहीं हो रही है जो मामूली अपराध में वर्षों से जेल में बंद बेबस लाचार गरीब हैं, जो न्यायालय के दरवाजों की पहुंच से भी बहुत दूर है या जो सत्ता शासन की गलत नीतियों की लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने मात्र से या अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर बात करने मात्र से हजारों मानवाधिकार/ सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धजीवी, नौजवान, किसान, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक वर्षो से जेलों में बंद हैं, बात फादर स्ट्रेंथ स्वामी जैसे उन हजारों लोग जो निर्दोष होते हुए भी जेलों में तड़प तड़प कर मर रहे हैं उनकी भी नहीं हो रही है। बात बड़े ज़ोर शोर से हो रही है तो संघियों के दबाब में कुछ वर्ष पूर्व बिहार की भाजपा समर्थित नीतीश सरकार ने जो जेल मैनुवल में संशोधन करते हुए एक क्लॉज जोड़ा था कि आजीवन सजा पाए हुए अपराधी को 14 साल के कारावास भोगने के बाद किया जा सकता है।
सीआरपीसी की धारा 433-ए के अनुसार आजीवन कारावास की घटी हुई अवधि 14 साल से कम नहीं हो सकती है, सजा 14, 20, 25 या 30 साल तक या आजीवन हो सकती है। लेकिन किसी भी हालात में 14 वर्ष से कम नहीं होगी और सजा प्राप्त कैदी को यह छूट उसके अच्छे आचरण के आधार पर मिलेगी, लेकिन यह छूट लोक सेवकों की हत्या के मामलों में नहीं मिलेगी।
बिहार एक अशांत राज्य रहा है, जहाँ दर्जनों बड़े सामंतों के नेतृत्व में निजी सेनाएं सक्रिय रही हैं, जिनके खिलाफ सामाजिक न्याय, मान, सम्मान, स्वाभिमान के लिए कई तीखे संघर्ष भी चले हैं, जहाँ नक्सलियों की अक्सर पुलिस से मुठभेड़ होती रहती थी। पुलिस अति वामपंथी विचारधारा के समर्थकों पर मुठभेड़ और लोकसेवकों की हत्या में शामिल होने के आरोप शंका के आधार पर लगते रहे हैं, जिनमें कुछ सही तो कुछ निर्दोष व्यक्ति भी सज़ा पाते रहे हैं।
उपरोक्त जेल मैनुवल का शिकार अधिकांश गरीब, भूमिहीन मजदूर, एससी/एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदाय के लोग या अति वामपंथी विचारधारा के लोग ही हुए हैं। आंनद मोहन सिंह तो एक अपवाद मात्र है।यह प्रश्न जगजाहिर है कि आज भी लोकसेवकों/भारतीय प्रशासनिक/ प्रादेशिक सेवा में किस वर्ग का कब्जा है?
डॉ भीमराव अंबेडकर के विचार के अनुसार जाति विनाश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के बजाय जाति के खरपतवार को गढ्ढे में डालकर हमेशा के लिए सड़ा देने के बजाय कुछ लोग कबाड़ियों की तरह जाति के कूड़े कचरे/कबाड़ को इकठ्ठा करके अपना राजनीतिक व्यापार जारी रखना चाहते हैं और सत्ता लोलुपता में व्यस्त लोग जो स्वयं जातीय और सामाजिक हिंसा से उत्पीड़ित हैं अपना कान देखने के बजाय कौआ कान ले गया सुनकर या यूं समझिए संघियों की योजनानुसार ही कौआ के पीछे दौड़ते हुए पूरे वंचित समाज को दौड़ाएं पड़े हैं।
25 अप्रैल 2023 से बिहार की जेलों से रिहा हो रहे कैदियों की सूची, जिसमें 80 फीसदी से ज्यादा एससी/एसटी, ओबीसी/अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं।
1-कलक्टर पासवान उर्फ़ घुरफेकन, आरा, 2- विष्णुदेव राय, बक्सर, 3- सुरेंद्र शर्मा, गया, 4- देवनंदन नोनिया, गया, 5- राम प्रवेश सिंह, गया, 6- विजय सिंह उर्फ़ मुन्ना सिंह, मुजफ्फरपुर, 7- रामाधार राम, बक्सर, 8- दस्तगीर खान, अररिया, 9- पप्पू सिंह उर्फ़ राजीव रंजन सिंह, मोतीहारी, 10- अशोक यादव, लखीसराय, 11- आंनद मोहन, सहरसा, 12- शिवा जी यादव, बेउर, 13- किरध यादव, भागलपुर, 14- राजबल्लभ यादव ऊर्फ़ बिजली यादव, बक्सर, 15- अलाउद्दीन अंसारी, भागलपुर, 16- मो हलीम अंसारी, भागलपुर 17- अख्तर अंसारी, भागलपुर 18- मो ख़ुदबुद्दीन, भागलपुर, 19- सिंकदर महतो, कटिहार,20- अवधेश मंडल, भागलपुर 21- पतिराम राय, बक्सर, (कुछ दिनों पूर्व ही जेल में 93 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो चूंकि है ) 22- हृदय नारायण शर्मा उर्फ बबुन शर्मा, गया, 23- मनोज प्रसाद, बेउर, 24- पंचा उर्फ़ पंचानंद पासवान, भागलपुर, 25- जितेंद्र सिंह, बक्सर, 26- चंदेश्वरी यादव, भागलपुर,27- खेलावन यादव, बिहारशरीफ
केंद्र सरकार ने देश में कैदियों के आंकड़े जारी करते हुए राज्यसभा में बताया था कि कुल 4 लाख 78 हजार से ज्यादा कैदी देश की जेलों में बंद हैं जिसमें 22% सजायाफ्ता और 77% विचारधीन कैदी बंद हैं।
देश की 1,306 जेलों में 145 सेंट्रल जेल, 413 जिला जेल, 565 उप जेल, 88 खुली जेल , 44 विशेष जेल, 29 महिला जेल, 19 बोरस्टल स्कूल और 3 अन्य जेल शामिल हैं। दिल्ली में केंद्रीय जेलों की संख्या सबसे अधिक हैं।जबकि उत्तर प्रदेश में जिला जेलों की संख्या सबसे अधिक है।