मशहूर गीतकार शैलेंद्र की 'मेरा जूता है जापानी' से लेकर हर जोर जुर्म के टक्कर में संघर्ष हमारा...तक की यात्रा

हिंदी फ़िल्मी गानों में किसी भी मूड के गानों में आप तलाश करें, शैलेन्द्र हरेक जगह सबसे ऊपर नजर आयेंगे, उन्होंने शायद ही किसी गाने में भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग किया हो और शायद ही अस्पष्ट से उपमा-अलंकारों से अपने गाने को सजाया हो...

Update: 2021-08-30 15:16 GMT

(शैलेन्द्र की लेखनी जितने आजाद थी, उतने की आजाद स्वभाव के वो भी थे)

मशहूर गीतकार शैलेंद्र को उनके जन्मदिन पर याद कर रहे हैं महेंद्र पांडेय

जनज्वार। राजकपूर की फिल्म का एक प्रचलित गाना है, "मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिश्तानी"। यह गाना शैलेन्द्र ने लिखा है और हिंदी फ़िल्मी गीतों में सबसे प्रचलित गानों में से एक है। वैसे तो यह एक साधारण और हल्का फुल्का गाना लगता है, पर जब आप इसे ध्यान से सुनेगें तो इसमें भी साम्यवाद की झलक आपको दिखाई पड़ेगी। इस गाने का एक अंतरा है, "होंगे राजे राजकुंवर हम बिगड़े दिल शहजादे, सिंघासन पर जा बैठें जब-जब करें इरादे"। यह एक उदाहरण है जिससे पता चलता है कि किस तरह अपनी विचारधारा को आगे रखते हुए भी खूबसूरत गाने लिखे जा सकते हैं।

शैलेन्द्र को हम राजकपूर और शंकर-जयकिशन के साथ ही जोड़कर देखते हैं, जो एक महान कवि के साथ सरासर अन्याय है। शैलेन्द्र इप्टा से और प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन के सदस्य थे, जाहिर है साम्यवादी विचारधारा के हिमायती भी। कहा जाता है कि हड़तालों के दौरान सबसे प्रचलित नारा, "हर जोर जुर्म के टक्कर में हड़ताल/संघर्ष हमारा नारा है" भी शैलेन्द्र की ही देन है। वर्ष 1952 की एक फिल्म थी, अनहोनी। इसमें तलत महमूद का गाया और शैलेंद्र का लिखा एक गाना था, मैं दिल हूँ एक अरमान भरा, तू आ के मुझे पहचान जरा। इसमें भी अंतिम अंतरा की लाइनें हैं, दौलत के नशे में डूबे हुए, ये राग रंग मिट जायेंगे।

हिंदी फ़िल्मी गानों में किसी भी मूड के गानों में आप तलाश करें, शैलेन्द्र हरेक जगह सबसे ऊपर नजर आयेंगे। उन्होंने, शायद ही किसी गाने में भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग किया हो, और शायद ही अस्पष्ट से उपमा-अलंकारों से अपने गाने को सजाया हो। सीधे-सादे, आम बोलचाल की भाषा में लिखे गानों में भी एक अजीब सी कशिश होती थी। बंदिनी में सचिन देव वर्मन के संगीत में मुकेश की आवाज में गाना याद कीजिये, ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना – ये घाट टू ये बाट भूल न जाना।

बंदिनी फिल्म से ही गुलजार साहब की भी हिंदी फिल्मों में एंट्री हुई थी, पर इसी फिल्म का एक दूसरा गाना, जिसे शैलेन्द्र ने लिखा था, अब के बरस भेज भैया को बाबुल, सावन में लीजो बुलाय ले, लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ, दीजो संदेसा भिजाय रे। बहनों की पीड़ा और संवेदना पर सैकड़ों गाने हिंदी फिल्मों में लिखे गए होंगें पर जो संवेदना शैलेन्द्र के गाने में है, उसे आज तक दुहराया नहीं जा सका है।

देवानंद की सदाबहार फिल्म गाइड के साथ बहुत सारे किस्से जुड़े हैं। इस फिल्म की रूपरेखा बनाते समय देवानद ने केवल इतना तय किया था कि वे इसके नायक होंगें, संगीत सचिन देव बर्मन देंगें और गाने हसरत जयपुरी लिखेंगें। इस फिल्म की योजना बन ही रही थी और सचिन देव बर्मन की अचानक तबीयत खराब हो गयी। सचिन देव बर्मन ने देवानद से कहा कि वे कोई और संगीतकार से काम करा लें, पर देवानद ने अपनी फिल्म पर काम तभी शुरू किया, जब लगभग दो वर्ष बाद सचिन देव बर्मन पूरी तरह स्वस्थ होकर काम करने लगे।

सचिन देव बर्मन ने आने के बाद फिल्म की कहानी सुनाने के बाद देवानंद से कहा कि वह तभी आगे काम करेंगें जब इस फिल्म के गीतकार शैलेन्द्र होंगें। देवानंद ने हसरत जयपुरी की जिद छोड़कर शैलेन्द्र के गीतकार के तौर पर अपनी फिल्म में रखा। नतीजा सबके सामने है, गाइड के हरेक गाने आज भी उतने ही तरोताजा लगते हैं, जितना इसे बनाने के समय लगे होंगें। गाइड में लता मंगेशकर का गाया एक अनेक अन्तर वाला गाना है, पिया तोसे नैना लागे रे, जाने क्या हो अब आगे रे। यह गाना, हिंदी फिल्मों के इतिहास में पहला गाना है जो मुखड़ा से नहीं बल्कि अन्तर से शुरू होता है। ऐसा करने का सुझाव भी शैलेन्द्र ने ही सचिन देव बर्मन को दिया था। यह इस लिए भी असाधारण है, क्योंकि सचिन देव बर्मन अपने किसी भी काम में किसी का हस्तक्षेप या सुझाव बर्दाश्त नहीं करते थे।

शैलेन्द्र की लेखनी जितने आजाद थी, उतने की आजाद स्वभाव के वो भी थे। तभी लम्बे समय तक फिल्म जगत में रहते हुए और राजकपूर और शंकर-जयकिशन का लगातार साथ देते हुए भी वे किसी गुट में नहीं बंधे। उन्होंने देवानद, दिलीप कुमार, भारत भूषण और अशोक कुमार के लिए भी उतने की सदबहार गाने लिखे और हरेक गाने आज भी उतने की लोकप्रिय हैं।

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