Sunil Rathi : सुनील राठी, वो गैंगस्टर जो मुन्ना बजरंगी को मारकर कहलाता है डॉन नं वन, पूरे 5 राज्यों में है नाम का आतंक
Sunil Rathi: राठी के कारनामों की फाइल मोटी होती रही, लेकिन वह पुलिस गिरफ्त से बाहर ही रहा। साल 2001 में राठी पुलिस के हत्थे चढ़ा। उसके पास से उस जमाने में हैंड ग्रेनेट बरामद हुआ था...
मनीष दुबे की रिपोर्ट
Sunil Rathi: सुनील राठी वो गैंगस्टर जिसके बारे में कहावत चलती है कि वह जिस किसी जेल में 90 दिन रह जाए फिर 91वें दिन से वहां उसकी हुकूमत चलने लगती है। ये किसी फिल्म का डायलॉग लग सकता है, लेकिन, ये एक बेहद खतरनाक गैंगस्टर (Gangster) का स्टेटमेंट है। और वह यह बात किसी और से नहीं बल्कि जेल के अधिकारियों तथा वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों को बताता है। यहां तक कि देश की सबसे हाईप्रोफ़ाइल जेल 'तिहाड़' तक में भी बंद रहने के दौरान वह अपना नेटवर्क चलाता रहा। राठी को लगातार 18 साल जेल में रहते हो गए, लेकिन उसके नेटवर्क को तोड़ा नहीं जा सका।
पिता की मौत ने दिखाया जरायम का रास्ता
कुख्यात राठी के जरायम की शुरूआत अपने पिता की हत्या के बाद हुई। बताया जाता है कि ज़रायम की दुनिया में आए इस बाहुबली किसी दूसरे का नहीं बल्कि अपनी ही मां का साथ मिला था। उसकी मां पर भी एक फिरौती के मामले में केस दर्ज है और वह जेल भी जा चुकी हैं। हालांकि, जरायम की दुनिया की कालिख को सफेद करने के लिए उसने खादी पहनने की योजना बनाई और अपनी मां को विधानसभा का चुनाव भी लड़ाया। लेकिन, उसे जनता का साथ नहीं मिला।
देखते ही देखते सुनील राठी पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड में 'डॉन नंबर-1' कहा जाने लगा। सुनील राठी वह शख्स है, जिसकी क्राइम हिस्ट्री पर सरकारों के बदलने का भी कभी कोई फर्क नहीं पड़ा। सरकारें आती जाती रहीं, लेकिन, सुनील राठी अपने वर्चस्व और दबदबे को बनाए रखने में कामयाब रहा। चाहें वह जेल के अंदर हो या फिर जेल से बाहर।
राठी का प्रोफाइल
पश्चिमी यूपी का जिला बागपत, जिसे किसानों के लिए जाना जाता रहा है। तमाम किसान आंदोलनों में यहां के किसानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कभी बागपत नें देश भर के किसानों का नेतृत्व किया। लेकिन, धीरे-धीरे इस बेल्ट में अपराधियों ने अपना वर्चस्व जमाना शुरू कर दिया। फिर धीरे-धीरे इन अपराधियों में राजनीतिकरण होने के साथ ही गैंगवार की घटनाएं बढ़ने लगीं।
90 का दशक था। देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश तब और बड़ा हुआ करता था। मतलब उत्तराखंड इससे अलग नहीं हुआ था। सुनील राठी के पिता नरेश राठी राजनैतिक व्यक्ति थे और टिकरी के चेयरमैन बने थे। लेकिन, पारिवारिक रंजीश में साल 1999 में उनकी हत्या कर दी गई। कहा जाता है कि ये चुनावी रंजिश थी। इसके आरोपी साहब सिंह राठी और मोहकम सिंह राठी थे। ये एक ऐसी घटना थी, जिसने एक राजनैतिक परिवार के लड़के को बाहुबली बना दिया।
एक साथ 4 हत्याओं से दहल गया था यूपी
कहा जाता है कि पिता की हत्या का बदला लेने के लिए राठी ने एक गैंग बनाया और एक साल के बाद ही साल 2000 में पिता के हत्यारों से बदला ले लिया। उसपर एक के बाद एक 4 हत्याओं का आरोप है। इस चौहरे हत्याकांड की पूरे प्रदेश में चर्चा हुई थी। इसके बाद वह बागपत से फरार हो गया। बागपत से भागकर वह दिल्ली में छिप गया। लेकिन, वह चुप बैठने वाला नहीं था। उसने दिल्ली के ही एक शोरूम में डकैती डाली और अपने साथियों के साथ वहां के तीन लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद दिल्ली भी उसका सुरक्षित ठिकाना नहीं रह गया था। हरिद्वार उन दिनों यूपी का ही हिस्सा हुआ करता था। राठी हरिद्वार चला गया और कुछ दिनों तक वहीं छिपा रहा।
लेकिन, कहा जाता है कि खून एक बार हाथ में लग जाने के बाद जरायम की दुनिया से लौटना मुश्किल होता है तो राठी ने उसी दुनिया में आगे बढ़ने का निर्णय ले लिया। उसने हरिद्वार से ही पूरा नेटवर्क खड़ा किया। इस दौरान समय-समय पर उसका नेटवर्क उत्तराखंड से दिल्ली और यूपी तक मिलता रहा।
गिरफ्तारी में बरामद हुआ हैंड ग्रेनेट
पश्चिम यूपी में राठी को जानने वाले एक सख्श नाम न छापने की शर्त पर जनज्वार को बताते हैं कि, उन दिनों एक तरफ़ उत्तराखंड यूपी से अलग हो रहा था तो दूसरी तरफ़ राठी अपराध को उद्योग बना रहा था। राज्य विभाजन में जहां पूरा प्रशासनिक अमला व्यवस्थित था, वहीं राठी पूरा उत्तराखंड और पश्चिम यूपी में अपना एक सिंडिकेट खड़ा कर रहा था। इस दौरान सुरेश आहूजा के माता-पिता के मर्डर में उसका नाम सामने आया था। राठी ने ये हत्या भी जमीन को लेकर की थी।
सूत्र के मुताबिक़, राठी ने रंगदारी और विवादित भूमि के मामलों में दखल देना शुरू कर दिया था। उन्होने बताया कि कई बार वह प्रॉपर्टी पर अपने आदमियों को भिजवाकर 'राठी' लिखवा देता था। इससे वह यह संकेत दे देता था कि उसी प्रॉपर्टी पर अब उसका अधिकार है। कहा जाता है कि इसने इसे उद्योग की तरह बढ़ाया। इस दौरान उसके राजनैतिक संपर्क भी बने और वह इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया। राठी के कारनामों की फाइल मोटी होती रही, लेकिन वह पुलिस गिरफ्त से बाहर ही रहा। साल 2001 में राठी पुलिस के हत्थे चढ़ा। उसके पास से उस जमाने में हैंड ग्रेनेट बरामद हुआ था।
माफियाओं में अलग पहचान रखता है राठी
उस दौरान पूर्वी यूपी में एक के बाद एक गैंग तैयार हो रहे थे। मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, मुन्ना बजंरगी ये ऐसे नाम थे जो पूर्वी यूपी के शहरों से निकलकर प्रदेश और फिर दूसरे राज्यों तक में अपना आतंक मचा रहे थे। लेकिन, इन सबके बीच राठी अपनी चाल अपने तरीके से चल रहा था। वह जेल की ऊंची-ऊंची चहारदिवारियों में कैद रहते हुए भी पूरा नेटवर्क संभाले रहता था। इस दौरान पूर्वी यूपी से लेकर दिल्ली, हरियाणा और पंजाब तक के अपराधियों में उसकी पैठ हो चुकी थी।
चीनू पंडित से दुश्मनी
कहा जाता है कि अपराध की दुनिया में चलाई गई गोली लौट कर जरूर आती है। सुनील राठी के पिता के हत्यारों की आंच राठी तक पहुँचने लगी थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का ही एक दूसरा अपराधी चीनू पंडित से सुनील राठी की अदावत चलने लगी। दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे रहने लगे और एक दूसरे पर हमले की ताक में लगे रहते। लेकिन, यहां भी काफी हद तक किस्मत राठी का ही साथ देती।
राठी और चीनू पंडित दोनों ही जेल में थे। दोनों का नेटवर्क वहीं से चल रहा था और दोनों की दुश्मनी हर दिन गहरी होती जा रही थी। इस बीच अगस्त 2014 में चीनू पंडित को जमानत मिल गई। वह जेल से रिहा हो रहा था। राठी को ये बात नागवार गुजरी और उसे मौका भी मिल गया। राठी के गुर्गों ने चीनू पंडित पर एक-47 से हमला कर दिया। ये वह समय था जब कम ही अपराधियों के पास एक-47 हुआ करती था। इस अंधाधुंध फायरिंग में 3 लोगों की मौत हुई और 7 लोग घायल हुए। लेकिन, चीनू पंडित बच निकला।
चीनू ने इसके बाद सुनील राठी, सुशील राठी, सतीश राणा सहित कई लोगों को नामजद किया। इसके बाद से चीनू और सुनील राठी एक दूसरे पर लगातार आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहें। कहा तो ये भी जाता रहा है कि दोनों एक दूसरे की हत्या की साजिशें लगातार रचते रहते हैं।
उत्तराखंड में राठी की मजबूत पकड़
कहा जाता है कि हरिद्वार में रहने के दौरान सुनील राठी का वहां के सफेदपोश नेताओं से संपर्क हो गया। इसका फायदा उसे मिलने लगा। वे हर मुश्किल में इसकी मदद करते और इसके गुर्गे उन नेताओं की। कई जमीन के केस में सुनील राठी की मदद से दोनों नेताओं ने खूब पैसे कमाए और उनकी सियासत भी ऊंची होती गई.
राजनीति में उतरी मां
सुनील राठी की मां राजबाला अपने पति की सीट से टिकरी कस्बे से ही नगर पंचायत की चेयरमैन बन गईं। इसके साथ ही परिवार की एक बार फिर राजनीति में एंट्री हो गई। उत्तराखंड के नेताओं की मदद से सुनील राठी अपनी मां के लिए राजनीति की जमीन तैयार करने लगा। उसकी मां विधानसभा का भी चुनाव लड़ीं। लेकिन, उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
रंगदारी में मां भी हुई थी गिरफ्तार
साल 2017 में रुड़की के एक डॉक्टर एनडी अरोड़ा से सुनील राठी ने 50 लाख रुपये की रंगदारी मांगी थी। उसने जेल से ही डॉक्टर को कहा था कि वह उसकी मां तक ये पैसे पहुंचा दे। इसके बाद रुढ़की पुलिस ने राठी को रिमांड पर लिया था। वहीं, राठी की मां राजबाला राठी को भी गिरफ्तार किया गया था।
मुन्ना बजरंगी की हत्या
साल 2018 में एक बार फिर राठी का नाम पूरे देश में चर्चा में आ गया। इसके पीछी के वजह ये थी कि यूपी के डॉन नंबर-1 कहे जाने वाले मुन्ना बजरंगी की हत्या में सुनील राठी का नाम सामने आया था। हरिद्वार से पेशी पर बागपत जेल में लाए गये मुन्ना बजरंगी को सुनील राठी ने गोलियां मारकर हत्या कर दी थी। बताया जाता है कि बजरंगी की हत्या से एक रात पहले ही राठी, बजरंगी और एक अन्य कैदी वहां बैठकर शराब पिए थे। इसके बाद अगली सुबह 6.15 बजे बजरंगी को उसकी बैरक में घुसकर मार दिया गया। बजरंगी की हत्या में राठी मुख्य आरोपी है।
9 जुलाई को हुई इस वारदात ने एक बार फिर पूरे यूपी में गैंगवार की आशंका को बढ़ा दिया था। जेलर ने राठी के खिलाफ़ हत्या की धाराओं में मुकदाम दर्ज लिया था। पुलिस ने हत्या की समीक्षा की, लेकिन बजरंगी की पत्नी जांच से संतुष्ट नहीं हैं। अब बजरंगी की हत्या की जांच सीबीआई कर रही है।
पैरोल के दौरान अपहरण की अफ़वाह
1 जून 2019 को सुनील राठी को पैरोल मिली। उसे ये पैरोल 7 घंटे के लिए मिली, जिसके लिए दिल्ली पुलिस तिहाड़ जेल से सुरक्षा में लेकर उसके गांव के लिए निकली थी। लेकिन, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे पर उसकी गाड़ी के पीछे 5 गाड़ियां लग गईं। शक होने पर एसपी ने चेकिंग के आदेश दिए।
सुबह 10 से शाम 7 बजे तक पैरोल पर रहने के बाद वह एक बार फिर जेल की चारदिवारियों में कैद हो गया। लेकिन, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि सुनील राठी के नेटवर्क पर अभी भी कोई प्रभाव पड़ा है। वह अपना पूरा गैंग उसी तरह चला रहा है, जैसे पिछले कई सालों से चला रहा है।