Ground report : दूसरों की खुशियों से जिन किन्नरों की चलती है रोटी, वो लॉकडाउन में हैं बदहाल
हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है, एक तो समाज पहले ही हमें अलग नजरों दे देखता है और अब इस कोरोना महामारी ने जीना मुहाल कर दिया है...
कांकेर से तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट
जनज्वार। मांगलिक कार्यों के दौरान लोगों के घरों में जा कर नाचने-गाने और आशीर्वाद देकर आजीविका कमाने वाले किन्नरों की तालियां लॉकडाउन में गुम हो गयी हैं। समाज की मुख्यधारा से अलग किन्नर समुदाय हमेशा दूसरों की खुशियों में महत्वपूर्ण हिस्सा बनता है, लेकिन आज जब उनके ऊपर संकट आया तो किसी ने मदद नहीं की। दूसरों की खुशियों में अपनी खुशी ढूंढ़ने वाले किन्नरों पर भी कोरोना ने कहर ढ़ाया है।
छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले में लॉकडाउन की वजह से किन्नरों का जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है। शादी एवं पारिवारिक कार्यक्रम न होने की वजह से गीत-संगीत का काम पूरी तरह से बंद है। काम बंद होने की वजह से आय का स्त्रोत पूरी तरह से शुन्य हो गया है।
किन्नर समुदाय से मुस्कान का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जमा-पूंजी 6 महीने के घर किराया में ख़त्म हो गया। राशन कार्ड न होने की वजह से दो वक़्त का भोजन तक नहीं मिलता। किसी ने मदद नहीं की। लोग कहते हैं, दो ताली मारने से पैसे मिल जाता है, आप लोगों को मदद की क्या जरुरत है। किन्नर मुस्कान कहती है कि जिसके भी घर जाते हैं, सभी कहते है की कोरोना महामारी चल रहा है आप बाद में आना।
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले पाखांजूर ब्लाक में रह रही मनीषा किन्नर कहती हैं, कोविड 19 के चलते आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब हो गयी है, मैंने कुछ बकरी, गाय भी पाली हैं। बकरी सस्ते में बेचकर गुजारा कर रही हूँ। एक किन्नर साथी के इलाज में हर महीने 12 हज़ार खर्च हो रहा है। 6 महीने से नियमित रूप से इलाज करवाने के कारण आर्थिक बोझ बढ़ गया है। किन्नरों के पास न तो स्मार्ट कार्ड है और न ही राशन कार्ड है, इसलिए सभी प्रकार कि सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं।
किन्नर एका व्यथित होकर कहती हैं, लॉकडाउन में प्रशासन के तरफ से सिर्फ 10 किलो चावल मिले थे, उसके बाद कुछ भी सरकार मदद अभी तक नहीं मिली है। एका बताती है चावल खाके मैं जिंदा थोड़ी न रहूंगी, साग-भाजी की भी जरूरत पड़ती है। मांगलिक कार्य में भी जाना बंद हो गया है। ऐसे ही रहा तो भुखमरी आ जाएगी। एका कहती है हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है। एक तो समाज पहले ही हमें अलग नजरों दे देखता है और अब इस कोविड 19 महामारी ने जीना मुहाल कर दिया है।
छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिले अंतर्गत पाखांजूर ब्लॉक में 20 किन्नर रहते हैं। पाखांजूर बंगाली बाहुल्य क्षेत्र है। 60 और 70 के दशक में बंगलादेशी यहां बसाए गए थे। किन्नर यहीं रहकर अपना जीवन यापन करते हैं।
इन किन्नरों में गुरु मां मनीषा किन्नर हैं। कोविड 19 महामारी के बीच आजीविका के संकट को लेकर मनीषा कहती हैं, मैं सब की गुरु मां तो हूं, लेकिन में सबको पालती नही हूं। सब अपना आजीविका चलाते हैं। किराये के घर में रहते हैं। मेरी स्थिति भी यही है। मैं इन्हें पालूं या अपना घर चलाऊं, फिर भी मैं इनकी थोड़ी—बहुत मदद करती हूं।
यह कहानी सिर्फ एक जगह की नहीं है, कमोबेश कोरोना लॉकडाउन में सभी जगह के किन्नरों का यही हाल है। किन्नर समुदाय की सुध लेने वाला कोई नहीं है। बातचीत के दौरान किन्नरों के बताया कि हमने अपनी हालत के बारे में अधिकारियों को भी बताया, लेकिन किसी ने भी हमारी पीड़ा पर ध्यान नहीं दिया। आज हमारी मदद करने वाला कोई भी नहीं है। यह कोरोना एवं लॉकडाउन कब तक चलेगा पता नहीं, लेकिन हमारी आर्थिक स्थिति तो बेहद ख़राब होते जा रही है। दो वक्त की रोटी का संकट गहरा रहा है।