मोदी सरकार की दूसरी योजनाओं की तरह हवा हवाई साबित हो रही उज्ज्वला योजना
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मिट्टी के तेल और ठोस ईंधन का उपयोग करके गंदे स्टोव से निकलने वाले धुएं के घरेलू जोखिम के कारण दुनिया भर में 3.8 मिलियन लोग हर साल मरते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
देश भर के पेट्रोल पंपों पर पीएम मोदी की होर्डिंग देखी जा सकती है जिस पर लिखा रहता है-करोड़ों नारियों को दिलाया सम्मान। यह प्रचार उज्ज्वला योजना के लिए किया गया है। हकीकत यह है कि सिर्फ प्रचार को ही शासन मानने वाली मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना भी उसकी दूसरी योजना की तरह हवा हवाई साबित हुई है। मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना के तहत करीब 8 करोड़ कनेक्शन दिये जा चुके हैं। कोरोना के बीच सरकार ने प्रत्येक उज्ज्वला कनेक्शन धारक को तीन रिफिल मुफ्त देने की योजना बनाई थी ताकि तंगी से जूझ रहे गरीबों की मदद हो सके। लेकिन अप्रैल-दिसंबर 2020 के दौरान सिर्फ 14.17 करोड़ ही रिफिल हुए। यानी मुफ्त मिलने के बावजूद 10 करोड़ रिफिल नहीं भरवाये गए।
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अभी भी खाना बनाने के लिए लकड़ी जला रही हैं - क्योंकि रिफिलिंग की लागत बहुत अधिक है।
बलिया जिले के रतसर कलां गाँव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई, 2016 को उज्जवला योजना का शुभारंभ किया था। गाँव की दस महिलाओं ने मोदी से लॉन्च के दौरान एलपीजी कनेक्शन प्राप्त किया था। बाद में मीडिया ने पाया कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के गाँव के 150 से अधिक परिवारों को कनेक्शन मिल गया था, लेकिन 10 प्रतिशत परिवार भी इसका उपयोग नहीं कर रहे थे।
तीन बच्चों की मां सुनीता ने कहा कि उसने 1 मई 2016 से अब तक केवल तीन एलपीजी रिफिल का उपयोग किया है।
"एलपीजी का उपयोग करने के लिए हमारे सिलेंडर में गैस को फिर से भरने के लिए हमारे पास पैसा होना चाहिए। मुझे अपनी सारी बचत सिलेंडर की रिफिल करवाने में खर्च करनी पड़ी। हम इतनी महंगी रिफिल खरीद नहीं सकते, "उसने कहा।
"अगर लागत कम होती, तो मैं फिर से रिफिल खरीदने के बारे में सोच सकती थी, क्योंकि चूल्हे के सामने कोई भी बैठना पसंद नहीं करता।"
उज्जवला योजना के तहत एक साल में 12 सिलेंडर रिफिल किए जा सकते हैं। कनेक्शन लेने में सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं, हालांकि बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) परिवारों के लिए कोई विशेष सब्सिडी नहीं है। उज्ज्वला योजना के तहत एक नए एलपीजी कनेक्शन की लागत 1,750 रुपये है, जिसमें एक एलपीजी सिलेंडर, एक गैस स्टोव, एक रबर पाइप और एक रेगुलेटर शामिल है, जबकि एक सामान्य गैस कनेक्शन की लागत 2,950 रुपये है। उज्ज्वला कनेक्शन का लाभ उठाने के लिए, एक जन धन खाता होना चाहिए और एक सरल फॉर्म भरना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मिट्टी के तेल और ठोस ईंधन का उपयोग करके गंदे स्टोव से निकलने वाले धुएं के घरेलू जोखिम के कारण दुनिया भर में 3.8 मिलियन लोग हर साल मरते हैं।
जब मोदी सरकार ने राजीव गांधी ग्रामीण एलपीजी वितरण योजना बंद की थी तो उस समय तक देश के 1.01 करोड़ से अधिक गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों (बीपीएल) को मुफ्त गैस कनेक्शन बांटे जा चुके थे और इस योजना से सरकार पर कोई अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ रहा था। दरअसल, इस योजना के तहत तेल कंपनियां अपने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) खाते से बीपीएल परिवारों को मुफ्त कनेक्शन देती थीं। 31 मार्च, 2016 तक ओएनजीसी, गेल, ओआईएल, एचपीसीएल और बीपीसीएल कुल 69 लाख 32 हजार और इंडियन ऑयल लगभग 32.4 लाख कनेक्शन दे चुकी थीं।
मोदी सरकार ने राजीव गांधी एलपीजी वितरण योजना बंद कर दी और 1 मई, 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमएवाई) शुरू की। इसके तहत पहले बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन और 1600 रुपये दिए जाते हैं। ये 1600 रुपये किस्तों में वापस ले लिए जाते हैं। अब बीपीएल परिवारों के साथ-साथ अन्य गरीब परिवारों को भी इस योजना में शामिल कर लिया गया है।
इस योजना में 1 फरवरी, 2019 तक 6.31 करोड़ परिवारों को सिलेंडर दिए जा चुके हैं। हालांकि संसद में सरकार ने जवाब में बताया है कि 80 फीसदी लोग ही दोबारा सिलेंडर भरवा रहे हैं, यानी कि लगभग 1 करोड़ परिवारों ने सिलेंडर तो ले लिया, लेकिन उसे दोबारा भरवाया नहीं और अब भी चूल्हे पर ही खाना पका रहे हैं। इतना ही नहीं, जो 5.30 करोड़ लोग दोबारा सिलेंडर भरवा भी रहे हैं, वे भी इस गैस सिलेंडर का इस्तेमाल पूरी तरह कर रहे हैं, इस पर भी सवाल है।
संसद में ही दिए गए एक अन्य जवाब में सरकार ने कहा है कि जहां सामान्य उपभोक्ता साल भर में 7.3 बार सिलेंडर भरवाते हैं, वहीं पीएमएवाई उपभोक्ता 3.28 बार ही सिलेंडर भरवाते हैं। सरकार खुद मानती है कि गैस की अनुपलब्धता और एलपीजी की कीमतों के कारण पीएमएयू उपभोक्ता सिलेंडर नहीं भरवा रहे हैं। हालांकि जवाब देते वक्त सरकार यह भी जोड़ देती है कि इन लोगों की खाने और खाना बनाने की आदतों की वजह से सिलेंडर रिफिल नहीं हो रहे हैं।
उज्ज्वला योजना की विफलता के लिए मोदी सरकार की दूसरी नीतियां भी जिम्मेवार मानी जा सकती हैं। दरअसल, 10 मार्च, 2016 को सरकार ने गैस कीमतों पर सरकार का नियंत्रण समाप्त करने का निर्णय लिया। और तो और, सरकार ने सब्सिडी सीधे देने की बजाय बैंक खातों में देने का भी निर्णय लिया। इसका सीधा असर गरीब उपभोक्ताओं पर पड़ा। जब रसोई गैस की कीमत बाजार तय करने लगा तो गैस की कीमतें हर महीने बदलने लगी और नवंबर में तो पहली बार गैस की कीमत 1000 रुपये प्रति सिलेंडर तक पहुंच गई थी। जाहिर सी बात है, जो गरीब परिवार लगभग मुफ्त में लकड़ी या कोयले का इस्तेमाल करके अपना चूल्हा जला रहे हैं, उनके लिए 1000 रुपये का भुगतान करना आसान नहीं है।