What are unparliamentary words : संसद ने 'असंसदीय' कहकर जिन पर लगायी लगाम, प्रतिरोध की संस्कृति से जुड़े हैं अधिकांश शब्दों के मायने

माननीय सदस्यों द्वारा अपने शब्दों के वाण से राजनीतिक विरोधियों को घायल करने की कोशिश पर भी अब लगाम लगाने का फैसला किया गया है, कल तक वे बहुतेरे शब्द जो सत्ता से लेकर विपक्ष तक के जुबान पर होते थे, अब ये शब्द नियमानुसार असंसदीय कहलाएंगे...

Update: 2022-07-15 05:24 GMT

What are unparliamentary words : संसद ने 'असंसदीय' कहकर जिन पर लगायी लगाम, प्रतिरोध की संस्कृति से जुड़े हैं अधिकांश शब्दों के मायने

जितेंद्र उपाध्याय की टिप्पणी

What are unparliamentary words : लोकतंत्र में प्रतिरोध की संस्कृति को कुंद करने की लगातार हो रही कोशिश का असर अब संसद में भी दिखाई पड़ेगी। माननीय सदस्यों द्वारा अपने शब्दों के वाण से राजनीतिक विरोधियों को घायल करने की कोशिश पर भी अब लगाम लगाने का फैसला किया गया है। कल तक वे बहुतेरे शब्द जो सत्ता से लेकर विपक्ष तक के जुबान पर होते थे, अब ये शब्द नियमानुसार असंसदीय कहलाएंगे। इन शब्दों को लेकर सरकार के तरफ से जारी गाइड लाईन पर एतराज जताते हुए विपक्षी सदस्य हमला बोलना शुरू कर दिए हैं। ऐसे में इन शब्दों का विश्लेषण करना जरूरी हो जाता है।

राजनीति में समय के साथ कुछ ऐसे शब्द चर्चा में आ जाते हैं, जिसका नाम लेते ही संबंधित सदस्य या दल का अनायास ही बोध होने लगता है। फिलहाल जारी गाइडलाइन के मुताबिक जो शब्द शामिल किए गए हैं, उनमें से एक है जुमलाजीवी। इसके अलावा अन्य प्रतिबंधित शब्दों का हम यहां विश्लेषण करने की कोशिश कर रहे हैं।

जुमलाजीवी : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछ लेदिनों गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस ने गरीबी दूर करने के लिए केवल जुमलेबाजी की और गरीबी हटाओ का उसका चर्चित नारा परिणाम देने में विफल रहा। अब सवाल उठता है कि ये शब्द जुमलाजीवी के रूप में सदन में गृह मंत्री नहीं कह पाएंगे।

हालांकि इस शब्द को सर्वाधिक चर्चा मिली केंद्र में भाजपा सरकार के गठन के बाद। विरोधी दलों का कहना है कि सरकार गठन के पूर्व सभाओं में ये काला धन जब्त कर लोगों के खाते में पंद्रह लाख रुपये देने की बात कर रहे थे। इसके बाद नोटबंदी, प्रत्येक वर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार जैसी घोषणाएं कीं, जिस पर बोलने के बजाए सरकार व उनके लोग चुप हो गए। यहां तक की संसद में बतौर गृह मंत्री अमित शाह ने इसे मात्र जुमला करार दिया। इसके बाद से कांग्रेस समेत अन्य विरोधी दल भाजपा नेताओं पर हमला करते हुए उसे जुमलाजीवी कहने लगे हैं। सरकार पर इसी बहाने विपक्ष के हमले की कोशिश कमजोर पड़ती नजर आएगी।

घड़ियाली आंसू : जब कोई दिखावे के लिए रोता है, सच्चाई से कोई लेना देना नहीं रहता है व सिर्फ नौटंकी कर रहा होता है तो उसे कहते हैं, भैया घड़ियाली आंसू मत बहाओ। कहा जाता है कि यह कहावत 14 वीं शताब्दी से ही प्रचलित है। कहा जाता है कि एक जानवर था जो इंसानी शिकार को निगलते समय उसके आंखों से आंसू बहता है। तभी से घड़ियालों को इसका रूपक माना जाने लगा। इससे जुड़ा एक वैज्ञानिक तथ्य भी है कि वर्ष 2007 में यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के जुलोजिस्ट केंट वेलियेट ने भी सिद्ध किया था कि कुछ जानवर खाते समय सुबकते हैं। उन्होंने 7 में से 5 घड़ियालों को शिकार निगलने के बाद रोते हुए फिल्माया था। उनके अनुसार जब इन जानवरों जबड़े खाते हुए आपस में टकराते हैं तो उनकी आंखों से पानी निकलता है।

पिछले वर्ष 12 अगस्त को केंद्र के 8 मंत्रियों ने एक साथ मीडिया से मुखातिब होते कहा कि देश की जनता चाहती है कि उनसे जुड़े मुददों को संसद में उठाया जाए, जबकि विपक्ष अराजकता पर उतारू रहा। विपक्ष को इस समय घड़ियाली आंसू बहाने के बजाए देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। हालांकि अब यह शब्द असंसदीय घोषित हो जाने के बाद सदन में कोई माननीय सदस्य नहीं कहेंगे।

जयचंद : मध्ययुगीन पौराणिक ग्रंथ पृथ्वीराज रासो में जयचंद्र का एक काल्पनिक विवरण मिलता है। इसके अनुसार वह एक अन्य राजा पृथ्वीराज चौहान के प्रतिद्वंद्वी थे। उनकी बेटी संयुक्ता उनकी इच्छा के विरूद्ध पृथ्वीराज के साथ भाग गई और उन्होंने पृथ्वीराज के पतन को सुनिश्चित करने के लिए विदेशी घुरिदों के साथ गठबंधन किया। इस किंवदंती के कारण उत्तर भारत के लोककथाओं में जयचंद नाम गद्दार शब्द का पर्याय बन गया। इसी प्रचलित नाम का सदन में सदस्य अपने विरोधियों पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हुए करते रहे हैं। जिसके सदन में प्रयोग करने पर अब रोक लगा दिया गया है।

शकुनि : छल कपट के साथ अपने कार्यों के प्रतिक के रूप में शकुनी शब्द का प्रयोग किया जाता है। इतिहासकार बताते हैं कि शकुनि गंधार साम्राज्य का राजा था। यह स्थान अब अफगानिस्तान में है। वह हस्तिनापुर महाराज और कौरवों के पिता धृतराष्ट का साला था और कौरवों का मामा। दुर्योधन की कुटिल नीतियों के पीछे शकुनि का हाथ माना जाता है। वह कुरूक्षेत्र के युद्ध के लिए दोषियों में प्रमुख माना जाता है। उसने कई बार पाण्डवों के साथ छल किया और अपने भांजे दुर्योधन को पाण्डवों के प्रति कुटिल चाल चलने के लिए उकसाया। उसके इस चरित्र के चलते ही शकुनि के उद्बोधन के साथ सदन में भी एक दूसरे पर सदस्यों द्वारा हमला किए जाते रहा है। जिस पर अब रोक लग जाएगा।

लॉलीपॉप : भारतीय राजनीति का लॉलीपॉप बहुत ही लोकप्रिय शब्द है। ऐसे तो मूलरूप से यह शब्द आया है बच्चों के मनपसंद मीठे से, लॉलीपॉप बडे़ ही शौक से खाते हैं। यह अब बच्चों से लेकर कॉलेज के युवाओं तक की पसंद है। यह विभिन्न आकार व फ्लेवर में आने लगा है। ऐसे में बच्चों से लेकर इसे चाहने वाले को खुश करने का बेहतर समान है। अब इसका प्रयोग बोलचाल में गोलमोल जवाब देने के रूप में किया जा रहा है। ऐसा हमेशा सुना जाता है कि उसने इस काम के लिए फलां व्यक्ति को लॉलिपॉप थमा दिया। राजनीति में भी इसी अर्थ में यह शब्द खुब लोकप्रिय हुआ है। सरकार द्वारा सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए कभी कभी विकास योजनाओं के नाम पर लॉलिपॉप थमा दिया जाता है। ऐसे शब्दों का प्रयोग कर आए दिन विपक्ष सतापक्ष के खिलाफ हमला बोलते रहा है। अब इस शब्द को असंसदीय शब्दों की सूची में शामिल कर दिया गया है।

चांडाल चौकड़ी : चांडाल चौकड़ी शब्द का अर्थ दुष्ट लोगों का समूह तथा शरारत या उद्दंडता करनेवाले किसी दल या टोली को व्यंग्य में चांडाल चौकड़ी कहा जाता है। राजनीतिक मंचों पर भी आए दिन एक दूसरे पर प्रहार करने के लिए नेता चांडाल चौकड़ी शब्द का प्रयोग करते हैं। हालांकि बोलचाल में पहले से ही इसे सभ्य नहीं माना जाता रहा है। अब नई व्यवस्था के चलते संसद में इस शब्द के प्रयोग करने पर उसे असंसदीय करार दिया जाएगा।

इसके अलावा गद्दार, भ्रष्ट, शर्म, दुर्व्यवहार, विश्वासघात, ड्रामा, गुल खिलाए, पिट्ठू बाल बुद्धि सांसद जैसे शब्दों को लोकसभा सचिवालय द्वारा असंसदीय शब्द 2021 के नाम से एक सूची में शामिल की है। सूची में शामिल शब्दों को सभी सांसदों को भेजा गया है। इन शब्दों के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया गया है। अब लोकसभा और राज्यसभा में सदन की कार्यवाही के दौरान बहुत सारे शब्दों का इस्तेमाल करना गलत और असंसदीय माना जाएगा। विपक्षी सासंद इसकी आलोचना कर रहे हैं।

असंसदीय शब्दों को सदन की कार्रवाई से हटाने का प्रावधान

लोकसभा में कामकाज की प्रक्रिया एवं आचार के नियम 380 के मुताबिक, अगर अध्यक्ष को लगता है कि चर्चा के दौरान अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वे सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकते हैं। वहीं, नियम 381 के अनुसार, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे चिन्हित करने के बाद कार्यवाही में एक नोट इस तरह से डाला जाता है कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक इसे हटाया गया।

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