महिला दिवस विशेष : लैंगिक समानता की बात कागज़ों में ही लगती है अच्छी, वास्तविकता अभी दूर की कौड़ी

माहवारी के दिनों में महिलाओं पर कई तरह के सामाजिक प्रतिबंध भी लगाए जाते हैं, उनको मंदिर में आने की मनाही होती है, उनको खाना अलग बर्तनों में दिया जाता है, उनको छुआ नहीं जाता...

Update: 2022-03-08 13:43 GMT

लैंगिक समानता की बात कागज़ों में ही लगती है अच्छी, वास्तविकता अभी दूर की कौड़ी (file photo)

हिमांशु जोशी की टिप्पणी

8 मार्च 2022 को विश्व महिला दिवस मनाया जाएगा। इस बार यूएन की तरफ से 'बेहतर कल के लिए आज लैंगिक समानता जरूरी है' को विश्व महिला दिवस की थीम रखा गया है।

लैंगिक समानता की बात कागज़ों में करते तो अच्छी लगती है, पर वास्तव में यह अभी दूर की कौड़ी है। अपने उन दिनों में लगे प्रतिबन्धों की वजह से महिलाएं आज भी घुट कर जीने के लिए मज़बूर हैं। उन दिनों के बीच अच्छा माहौल पाने के लिए महिलाएं पूरे विश्वभर में आवाज़ उठाने लगी हैं।

भारत की बात करें तो ग्रामीण इलाकों में लड़कियों के सामने अपने पीरियड्स के दिनों बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है, उनके पास सेनेटरी पैड खरीदने के पैसे नही होते जिस वज़ह से वो सेनेटरी पैड की जगह कपड़ा इस्तेमाल करती हैं और उससे उन्हें कई तरह के इंफेक्शन होने का खतरा बना रहता है।

गांव तो गांव शहर की लड़कियां भी मेडिकल स्टोर से सेनेटरी पैड तब खरीदती हैं जब दुकान पर कोई नहीं होता है, इसका समाधान यह जरूर हो सकता है कि सरकारी अस्पतालों में सेनेटरी पैड को फ्री बांटा जाए, लेकिन समस्या यह है कि शायद उसके बाद भी महिलाएं सेनेटरी पैड लेने के लिए सामने आएं। इसका उदाहरण हम कंडोम को लेकर ले सकते हैं सरकारी अस्पतालों में कंडोम फ्री बांटे जाते हैं, लेकिन वहां भी इसे लेने में लोग सकुचाते हैं।

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च सेंटर के आंकड़ों के अनुसार भारत में 88 प्रतिशत महिलाएं अपने उन दिनों सैनेटरी पैड की जगह कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं। यही वज़ह है कि भारत में साल में 70,000 सर्वाइकल कैंसर के मामले सामने आते हैं जो विश्वभर में सबसे अधिक सर्वाइकल कैंसर के मामलों में से एक हैं।

माहवारी के दिनों में महिलाओं पर अन्य तरह के सामाजिक प्रतिबंध भी लगाए जाते हैं। उनको मंदिर में आने की मनाही होती है, उनको खाना अलग बर्तनों में दिया जाता है, उनको छुआ नहीं जाता।

कामकाजी महिलाएं अपने उन दिनों में भी काम पर जाने के लिए मजबूर होती हैं, लोकसभा में भी उन दिनों में अवकाश दिलाने के लिए 'The Menstruation Benefit Bill 2017' पेश हुआ था पर बात बनी नही।

पत्रकारिता के अध्यापन कार्य से लंबे समय से जुड़ी और पत्रकारिता में नेट क्वालीफाई श्वेता रानी भारद्वाज ने कामकाजी महिलाओं को उनके उन दिनों में अधिकार दिलाने के लिए अपने फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्ट साझा की है, जिसे कार्पोरेट जगत के दबाव तले दबे नीति निर्माताओं को जरूर पढ़ना चाहिए।

श्वेता लिखती हैं, '2018 में मैं एक रिसर्च एसोसिएट कम कंटेंट क्रिएटर के तौर पर हाइटेक सिटी, हैदराबाद में जॉब कर रही थी। एक दिन मैंने एक Urgent Leave application मेल लिखा। एचआर ने कहा कि मैं cc में बाकी बॉस को भी रख लूं। मैंने वैसा ही किया। फिर आधे घंटे के बाद एचआर का कॉल आ गया। उन्होंने कहा, "Rani, what kind of cause u have mentioned in your mail" don't you know to mention the medical cause in a proper way" मैंने कहा," sorry, I didn't get you! And I think, I haven't mentioned anything inappropriate in the mail. I only mentioned the right cause ma'am.

उन्होंने कहा, You shouldn't have written "Urgent Leave Due to Menstrual Period Cramps". Just write it "Female Problem" from next time. और इतना कहकर मोहतरमा फोन कट कर दी। और ऐसा ही ज्ञान मुझे मेरे Leave Application के प्रतिउत्तर में भी मिला। मैं भी प्रति उत्तर का उत्तर देना ही उचित समझी।

श्वेता ने लिखा, Hello Sir/Ma'am Happy Pongal! I apologise for the inconvenience you had after knowing the reason of my urgent leave. At first, the company asked me to mention the exact reason of my leave but it seems inappropriate for them to accept that I directly stated "MenstruaI Cramps" being the reason of my sickness. They sincerely suggested me to use "Female Problem" instead of what I mentioned.

Therefore, I request you to take a time to reflect on this situation where a word that disgusted you immensely, we deal with it every single month. Also, we always make sure that it never hinders with our work commitments.

At last, I am obliged to enlighten you that Menstruation is the elimination of the thickened lining of the uterus (endometrium) from the body through the vagina and not only a 'Female Problem'. I hope you will reflect on this and together we can help the society to end this taboo.

Thanks! Sincerely Sweta Rani उसी दिन कंपनी ने मेरा हिसाब किताब कर दिया। 

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