बिहारी दंगल गर्ल जो 12 बार रही स्टेट चैंपियन, आज बदहाली में गुजार रही दिन

अनु कहतीं हैं '14 बार नेशनल में पार्टिशिपेट किया, 12 बार स्टेट में गोल्ड जीता, दो बार बिहार टीम की कोच बनी, पिता टीबी के मरीज हैं इसलिए परिवार की जिम्मेदारी उन्हीं पर है, सरकार से गुहार है कि सपोर्ट करें नहीं तो मेरी प्रतिभा यहीं दम तोड़ देगी...

Update: 2020-08-18 05:20 GMT

जनज्वार ब्यूरो, पटना। 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस है, पर बिहार की चैंपियन दंगल गर्ल अनु गुप्ता जैसी प्रतिभाएं गरीबी के कारण विवश होकर थक-हार जातीं हैं, उनके लिए ऐसे दिवस के क्या मायने। गरीबी और सरकार से वाजिब सहयोग न मिल पाने के कारण  खेल प्रतिभाओं का क्या हस्र होता है, कैमूर जिले की दंगल गर्ल अनु गुप्ता इसका सटीक उदाहरण हैं।

अनु अपने कैरियर में अबतक 14 बार नेशनल स्तर पर पार्टिसिपेट कर चुकी हैं तो 12 बार स्टेट का गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। आज आर्थिक तंगी के कारण लाचार खेल और दंगल की बात भूलकर अपना और परिवार का पेट भरने के जद्दोजहद में लगी हैं। क्योंकि पिता टीबी के मरीज हैं, बहनें छोटी हैं और परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधे पर ही है।

अनु काफी अभाव का जीवन जी रहीं हैं। पिता किराने की एक छोटी सी दूकान चलाया करते थे, जिसे अब किसी तरह उनकी छोटी बहन चला रहीं हैं। उन्होंने परिवार का पेट भरने के लिए खुद सड़क किनारे फुटपाथ पर पेट्रोल बेचा, ब्यूटी पार्लर भी चलाई। ऐसी स्थिति, जिसमें खुद का और परिवार का पेट भरने के लिए रोज संघर्ष करना पड़ता हो, उसमें दंगल और कुश्ती की बात भला किसे सूझ सकती है।


अनु की बचपन से ही कुश्ती और दंगल में रुचि थी। इसमें उन्हें परिवार का भी साथ मिला। इलाके में लड़कियों के लिए कोई व्यामशाला नहीं रहने के कारण वे खेतों में मिट्टी पर ही लड़कों के साथ दंगल में दो-दो हाथ लगातीं थीं। अनु गुप्ता दो बार बिहार कुश्ती टीम का कोच भी रह चुकी हैं और प्रतियोगिताओं में राज्य टीम को कोचिंग दी है। 

एक साल पहले 25 अगस्त 2019 को उन्हें 'बिहार कुमारी' के खिताब से नवाजा गया था। वहीं, इस साल 29 फरवरी को 'कैमूर केसरी' के खिताब से भी नवाजी गईं हैं।


दंगलों में विपक्षी पहलवानों को धूल चटाने वाली अनु अपनी गरीबी और सरकारी मदद के अभाव से हार चुकीं हैं। अनु के पिता टीबी रोग से पीड़ित हैं। घर में बड़ा भाई है जो परिवार से मतलब नहीं रखता। छोटी बहन मां और पिता के साथ रहती है।

एक तरह से घर की सारी जिम्मेदारी अनु के कंधों पर है। घर में ही छोटी सी किराने की दूकान है, जिसे उनकी छोटी बहन चलाती है। वहीं अनु परिवार का खर्च चलाने के लिए अपने घर के सामने सड़क पर पेट्रोल बेचा करतीं थी। किसी प्रकार परिवार का भरण-पोषण कर रहीं अनु कुश्ती के लिए जरूरी डाइट का प्रबंध नहीं कर पातीं हैं।

अनु कहतीं हैं ' मुझे दंगल में रुचि थी। इसलिए मैंने दंगल को ही अपना करियर चुना। बहुत अच्छा कर भी रही थी। 14 बार नेशनल में पार्टिसिपेट किया, 12 बार स्टेट में गोल्ड मेडल जीती। दो बार बिहार से कोच बनकर गई, लेकिन मुझे कहीं से भी कुछ मदद नहीं मिली। लड़कियों के लिए व्यामशाला नहीं होने के बावजूद मैंने इतना कुछ किया, लेकिन अब सरकार से गुहार लगा रही हूं कि अगर सरकार मुझे सपोर्ट नहीं करेगी तो मेरी प्रतिभा यहीं पर दम तोड़ देगी।'


वह आगे कहतीं हैं 'पिता टीबी का पेशेंट होने के कारण ज्यादा कुछ नहीं कर पाते हैं। घर का खर्च चलाने के लिए मैंने पेट्रोल बेचना शुरू किया, उससे भी जब पैसे नहीं मिल पा रहे थे तो एक ब्यूटी पार्लर खोला, लेकिन ग्रामीण इलाका होने के कारण वो भी नही चल पा रहा है। अब सारी उम्मीदें सरकार पर टिकी है।'

अनु की मां ने कहा 'बेटी बहुत होनहार है। हम लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि हम लोग बेटी के लिए हर चीज की व्यवस्था करा दें। अगर सरकार कुछ मदद करे तो बिहार का नाम रोशन कर सकती है।' अनु के पिता कहते हैं 'मैं टीबी का पेशेंट हूं। घर के लिए चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, अब सरकार से ही सहारा की उम्मीद है।'

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