Bihar Government Schools : बिहार में सरकारी स्कूलों के बच्चे बैग में किताबों की जगह बोरियां लाते हैं, ताकि जमीन पर बिछाकर पढ़ सकें

Bihar Government Schools : सामाजिक संस्था सोशल ज्युरिस्ट की दो सदस्यीय टीम ने बिहार के स्कूलों की यात्रा के दौरान जो देखा वह आश्चर्य से परे था। बिहार में सुशासन बाबू के नाम से मशहूर ​नीतीश कुमार के बीते 17 वर्षों से मुख्यमंत्री रहने के बावजूद यहां सरकारी स्कूलों की​ स्थिति इतनी दयनीय होगी यह टीम ने कल्पना भी नहीं की थी।

Update: 2022-03-17 13:36 GMT
Agarwal during visit of Bihar Government Schools

Bihar Government Schools : देश की सामाजिक संस्था सोशल ज्युरिस्ट की दो लोगों की एक टीम ने बीते दो मार्च से छह मार्च तक बिहार के पूर्वी चंपारण के 17 सरकारी स्कूलों का दौरा किया। इस टीम में अधिवक्ता अशोक अग्रवाल और समाज सेवी मोहन पासवान शामिल थे। इन स्कूलों में एक वह बेसिक स्कूल भी था जिसकी शुरुआत चंपारण में किसानों के आंदोलन के दौरान खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी की थी।

बिहार के स्कूलों की इस यात्रा के दौरान इस टीम ने जो देखा वह आश्चर्य से परे था। बिहार में सुशासन बाबू के नाम से मशहूर ​नीतीश कुमार के बीते 17 वर्षों से मुख्यमंत्री रहने के बावजूद यहां सरकारी स्कूलों की​ स्थिति इतनी दयनीय होगी यह टीम ने कल्पना भी नहीं की थी।

जांच टीम ने पूर्वी चंपारण के स्कूलों के इस दौरे में यह पाया कि वहां के स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की भी कमी है। प्रदेश के ज्यादातार स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति 50 प्रतिशत से भी कम है। एक तो स्कूलों में शौचालय और यूरिनल हैं नहीं जहां हैं वे भी ब्लॉक हैं। ऐसे में वे किसी काम के नहीं है। ऐसे में बच्चों को यहां तक की बच्चियों को भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है या ऐसी स्थिति में उन्हें अपने घर लौट जाना पड़ता है।

जांच टीम ने स्कूलों के अपने दौरे में यह भी पाया कि कई स्कूलों के भवन जर्जर हो चुके हैं। उन्हीं जर्जर भवनों की छतों के नीचे बच्चों की क्लास लगायी जाती है। ऐसे में कभी कोई बड़ा हादसा हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। कई स्कूलों में भवन हैं तो बाउंड्री वॉल नहीं है। ऐसे में स्कूल बंद रहने के दौरान उनके भवन असामाजिक तत्वों का अड्डा भी बन जाते हैं।

जनज्वार से बातचीत में बिहार के स्कूलों का दौरा करने वाली टीम के सदस्य और अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने बताया कि बच्चों के अभिभावकों से बातचीत में टीम ने पाया कि वे बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं पर फिर भी स्कूलों में पढ़ाई लिखाई का माहौल नहीं होने कारण अधिकांश स्कूलों में उपस्थिति आधी से भी कम हैं। यहां एक बात गौर करने वाली है कि बिहार के सरकारी स्कूलों में हफ्ते के एक दिन जब अंडा परोसा जाता है तो बच्चों की उपस्थिति दोगुनी हो जाती है।

स्कूलों में अपने दौरे के दौरान टीम ने देखा कि बच्चों के लिए सरकारी की ओर से चलाया जा रहा मिड डे मिल बच्चों को मिट्टी पर ही बैठा कर जैसे-जैसे परोस दिया जाता है। ये एक तो बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है और दूसरी उससे भी गंभीर बात यह है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह सम्मानजनक नहीं है। देश के गरीब के बच्चों का साथ ऐसा कृत्य कम से कम सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्कूलों में तो नहीं ही होनी चाहिए।

एडवोकेट अग्रवाल ने कहा कि बिहार में स्कूलों की यात्रा के दौरान हमने पाया कि इन स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का कोई माहौल ही नहीं है। ना शिक्षक, ना प्रबंधन, ना अधिकारी और ना ही जनप्रतिनिधि किसी को बच्चों की पढ़ाई से कोई लेना-देना ही नहीं है। सभी बस स्कूल चलाने की कवायद कर अपनी ड्यूटी पूरी कर लेते हैं। इस इन सबके बीच सबसे ज्यादा नुकसान निम्न तबकों के बच्चों का होता है। देश के हर बच्चे के शिक्षा के अधिकार कानून के साथ ये एक तरह से खिलवाड़ ही है। एडवोकेट अग्रवाल के अनुसार ऐसे ही एक स्कूल की यात्रा के दौरान एक छात्रा ने मुझे एक पोस्टकार्ड थमाया जो प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संबोधित है। इसे पढ़कर किसी का भी कलेजा हाथ को आ जाए।


अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने बताया कि आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस बेसिक स्कूल की शुरुआत खुद महात्मा गांधी ने की थी उसकी भी हालत दयनीय है और सरकार या प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। श्री अग्रवाल ने बताया कि बच्चों को अपने बस्ते में किताब लेकर स्कूल आना चाहिए पर बिहार में बच्चे बस्ते में बोरी लेकर आते हैं ताकि वे जमीन पर बिछाकर बैठ सकें। क्योंकि अधिकतक स्कूलों में बैंच डेस्क हैं ही नहीं।

जांच टीम ने बिहार के पूर्वी चंपारण के 17 स्कूलों के निरीक्षण के दौरान पाया कि जो कुछ संसाधन हैं भी उनका भी तर्कसंगत तरीके से इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। कई स्कूलों में बड़े-बड़े कमरे खाली पड़े रहते हैं और बच्चों की क्लास पूरी करने की खानापूर्ति कॉरिडॉर में जमीन पर बैठा कर कर ली जाती है। स्कूलों का निरीक्षण करने वाली टीम का मानना है कि अगर हफ्ते में एक दिन मिडडे मील में अंडा परोसने से बच्चों की उपस्थिति बढ़ सकती है तो फिर महज एक अंडा हफ्ते में हर दिन क्यों नहीं परोसा जा सकता है। अपनी यात्रा के दौरान टीम ने बिहार में चल रहे आंगनबाड़ी केन्द्रों को भी दयनीय हालत में पाया है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत देश के गरीब बच्चों को बद से बदतर सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पढ़ना होगा और देश के आर्थिक रूप से समृद्ध बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ेंगे। क्या ये देश के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है। टीम ने बिहार के स्कूलों में निरीक्षण के बाद जो अनुभव किया उस संबंध में मामले में स्वत: संज्ञान लेने के लिए बिहार उच्च न्यायाय के मुख्य न्यायाधीश के पास जनहित याचिका का पत्र भेजा है।

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