Chaibasa News : आदिवासियों के पीने के पानी में मल-मूत्र छोड़ रहा SAIL प्रबंधन, ग्रामीणों की आजीविका पर भी संकट
Chaibasa News : घर चलाने के लिए इन आदिवासी गांवों के सभी परिवार नाले में दिनभर कच्चा सोना ढूंढने में लगे रहते हैं, पेट पालने के लिए इस काम में वो बच्चे भी जुटे हुए हैं जिनकी अभी स्कूल में पढ़ाई की उम्र है....
Chaibasa News : पश्चिम सिंहभूम (Jharkhand) के चाईबासा (Chaibasa) के चिड़िया खनन क्षेत्र के कई आदिवासी गांवों के लोग इन दिनों दूषित पानी का इस्तेमाल करने पर मजबूर हैं। गांव के लोगों का आरोप है कि सेल प्रबंधन (चिड़िया) के द्वारा पीने के पानी को दूषित किया जा रहा है और इस पानी में प्रबंधन द्वारा मल-मूत्र छोड़ दिया जाता है।
सेल प्रबंधन (SAIL Management) साल 1910 से यहां खदान का काम करता है लेकिन कंपनी में स्थानीय लोगों को रोजगार भी उपलब्ध नहीं है। गांव के सभी परिवारों के लोग इसी पानी में दिनभर कच्चा सोना ढूंढने का करते हैं जिससे उनका घर परिवार चल पाता है। इसी पानी को वह पीने, नहाने आदि के लिए इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अब यहां का पानी सेल प्रबंधन के चलते दूषित हो रहा है।
इसी नाले के पानी से लोग अपना जीवन यापन कर रहे हैं। यहां पर दिनभर परिवार मेहनत करके कच्चा सोना के टुकड़े ढूंढते रहते हैं। इसके लिए उन्हें बेहद मेहनत करनी पड़ती है। घर चलाने के लिए इन गांवों के सभी परिवार दिनभर कच्चा सोना ढूंढने में लगे रहते हैं। पेट पालने के लिए इस काम में वो बच्चे भी जुटे हुए हैं जिनकी अभी स्कूल में पढ़ाई की उम्र है।
एक महिला जो इस नाले के पानी में कच्चा सोना ढूंढने का काम करती हैं, वह कटोरे में कच्चे सोने के कुछ टुकड़े दिखाते हुए बताती हैं कि यह आज का है। दो लोग इनको ढूंढ पाए हैं। यह अभी अस्सी रुपये का कच्चा सोना निकला है। इसके अलावा हमारे पास कोई दूसरा काम नहीं करते हैं। यहां काम कर रहे लोगों ने बताया कि हम लोगों को सेल प्रबंधन चिड़िया में काम नहीं मिलता है। यहां पूरा गांव काम करता है।
नाले का पानी दूषित होने को लेकर अखिल भारतीय क्रांतिकारी आदिवासी महासभा की ओर से सेल प्रबंधन (चिड़िया) से पानी को दूषित न करने का आग्रह करते हुए एक पत्र लिखा गया है। पत्रि में उन्होंने लिखा है कि सेल प्रबंधन चिड़िया 1910 से खदान का कार्य कर रहा है लेकिन सीएसआर फंड से किसी प्रकार का विकास नहीं हुआ है। स्थानीय आदिवासी बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिला है। सरकारी योजनाओं इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन आदि का लाभ भी ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है।
लेकिन दुख की बात तब सबसे ज्यादा होती है कि जब सेल प्रबंधन अपने क्वार्टर के मल मूत्र को सीधे हांसा गाड़ा नाला में छोड़ देते हैं जिसमें 4-5 गावों के आदिवासी ग्रामीण पीने का पानी लेते हैं औऱ उसी नाले के पानी में नहाते भी हैं। इसके लिए पूर्व में भी संबंधित विभागों को ग्रामीणों का हस्ताक्षर युक्त आवेदन भी भेजा गया था। इसलिए निवेदन है कि एक जांच दल बनाकर चिड़िया गांव व अन्य गांवों को इस मल-मूत्र वाले पानी को प्रदूषण से मुक्त कराया जाए।