Professor Lalan Kumar : 24 लाख रुपया वापस करने वाले बिहार के प्रोफेसर लल्लन कुमार की क्या है सच्चाई? जानें पूरे मामले की आंतरिक कहानी
Professor Lalan Kumar : बिहार के उच्च शिक्षा के केंद्रों में भ्रष्टाचार की कहानी आम हो चली है। मगध विश्वविद्यालय से लेकर पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपतियों द्वारा कथित तौर पर किए गए भ्रष्टाचार के खेल को लेकर आए दिन नए मामले उजागर हो रहे हैं,इन सबके बीच बिहार विश्वविद्यालय से संबद्ध एक महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर ललन कुमार की चिठ्ठी से उठे सवाल के निहितार्थ तलाशे जाने लाजमी हैं।
Professor Lalan Kumar : बिहार के उच्च शिक्षा के केंद्रों में भ्रष्टाचार की कहानी आम हो चली है। मगध विश्वविद्यालय से लेकर पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपतियों द्वारा कथित तौर पर किए गए भ्रष्टाचार के खेल को लेकर आए दिन नए मामले उजागर हो रहे हैं,इन सबके बीच बिहार विश्वविद्यालय से संबद्ध एक महाविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर ललन कुमार की चिठ्ठी से उठे सवाल के निहितार्थ तलाशे जाने लाजमी हैं। पत्र इस बात को लेकर चर्चा में आया कि बिना पढ़ाए वेतन न लेने की दलिल देते हुए ललन कुमार ने तकरीबन 24 लाख रूपये का चेक कुलसचिव को भेज दिया। हालांकि नियमों का हवाला देते हुए कुलसचिव ने चेक वापस कर दिया। ऐसे में रकम तो नहीं वापस हुआ, पर पत्र के माध्यम से उठाए गए सवाल जरूर सुर्खियों में बना हुआ है। इन तमाम सवालों में एक है बिहार के उच्च शिक्षा केंद्रों में भ्रष्टाचार का।
वेतन वापसी के 'ईमानदारी' के पीछे की असली वजह भी प्रोफेसर साहब खुद ही बता रहे हैं। दरअसल, सोशल मीडिया पर प्रोफेसर साहब की ईमानदारी की कहानी वायरल हुई, लोग एक से बढ़कर एक प्रतिक्रिया देने लगे। किसी ने लिखा कि सैल्यूट करने को दिल करता है, तो किसी ने लिखा कि इसके पीछे का गुप्त एजेंडा कुछ और ही है।
मुजफ्फरपुर जिले के साहेबगंज स्थित सीएन काॅलेज के इतिहास विषय के प्रोफेसर राजू रंजन प्रसाद का कहना है, 'बिना किसी अपराध के किसी का वेतन नहीं लिया जा सकता है। इस तरह की वसूली का कोई प्रावधान नहीं है। इस नियम से डा. ललन कुमार भी स्वाभाविक रूप से परिचित होंगे।' फिर भी चेक से वेतन लौटाने के पीछे का आखिर असली सच क्या है? इस पर आगे राजू रंजन कहते हैं उनका मुख्य मकसद पीजी काॅलेज में स्थानांतरण का रहा है। इसको लेकर कई बार प्रयास किए, लेकिन हर बार निराशा हाथ लगी। ऐसे में माना जा रहा है कि उन्होंने वेतन लौटाने का एक प्रकरण सामने लाकर अपनी असली मंशा को पूरा करने के लिए अंतिम हथियार के रूप में इसका प्रयोग किया है। पीजी काॅलेज में पढ़ानेे की इच्छा के पीछे भी प्रो. राजू रंजन अपनी अलग ही राय रखते हैं। उनका कहना है कि शोध के छात्रों को पढ़ाने का अवसर मिलता है। इसमें कुछ अन्य जरूरतें भी पूरी हो जाती हैं।
वायरल कहानी के अनुसार, मुजफ्फरपुर के नीतीश्वर महाविद्यालय में सहायक के पद पर कार्यरत डॉ (प्रो.) ललन कुमार ने विद्यार्थियों की संख्या नगण्य होने पर 32 महीने का वेतन लौटा दिया। उन्होंने बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के कुलपति को पत्र के साथ वेतन का चेक भी भेजा। साथ ही उन्होंने एलएस, आरडीएस, एमडीडीएम और पीजी विभाग में स्थानांतरण की इच्छा भी जताई। ऐसे में कुछ लोग सवाल उठाते हुए कहते हैं कि प्रोफेसर साहब ने वेतन के लगभग 24 लाख रुपये क्यों वापस की और उनकी 'ईमानदारी' की असली वजह क्या है।
पत्र की चर्चा करते हुए कहा जाता है कि वे 25 सितंबर, 2019 से नीतीश्वर महाविद्यालय में कार्यरत हैं। पढ़ाने की इच्छा रखते हैं, लेकिन स्नातक हिंदी विभाग में 131 विद्यार्थी होने के बावजूद एक भी नहीं आते। कक्षा में विद्यार्थियों के नहीं होने से यहां काम करना मेरे लिए अपनी अकादमिक मृत्यु के समान है। मैं चाहकर भी अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर पा रहा। इन स्थितियों में वेतन की राशि स्वीकार करना मेरे लिए अनैतिक है। इसके पूर्व कई बार अंतर महाविद्यालय स्थानांतरण के लिए आवेदन दिया, लेकिन कुलपति ने गंभीरता से नहीं लिया। ऐसी परिस्थिति में अपने कार्य के प्रति न्याय नहीं कर पा रहा। अंतरात्मा की आवाज को मानते हुए अपनी नियुक्ति की तिथि (25 सितंबर, 2019) से ( मई 2022 ) की प्राप्त संपूर्ण वेतन की राशि 23 लाख 82 हजार 228 रुपये विश्वविद्यालय को समर्पित करना चाहता हूं।
इनके पत्र में उल्लीखीत संदर्भों की चर्चा करते हुए प्रो. राजू रंजन प्रसाद कहते हैं कि महाविद्यालय में शिक्षण कार्य न कर पाने को लेकर ललन कुमार को मलाल है, पर उनके तरफ से अन्य कोई शैक्षिक गतिविधियां भी तो नहीं दिखी। वे कहते हैं कि कोरोना काल में कई लोगों ने पुस्तकें लिखी, शोध पत्र का प्रकाशन किया जा सकता था, बाद के दिनों में किसी व्याख्यान में उनकी हिस्सेदारी भी हो सकती थी। ये सब सवाल वे प्रो. ललन कुमार के फेसबुक वाल पर ऐसे किसी गतिविधियों कें न नजर आने पर करते हैं। हालांकि किसी के सोशल मीडिया पर संबंधित पोस्ट न डालने पर ऐसा सवाल करना उचित नहीं हैै।
प्रो. ललन कुमार ने कुलपति के अलावा कुलाधिपति, मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री, वित्त विभाग, उच्च न्यायालय, पटना ( जनहित याचिका के रूप में ), अध्यक्ष विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली, शिक्षा मंत्री, भारत सरकार, प्रधानमंत्री कार्यालय ( पीएमओ ) और राष्ट्रपति आदि पत्र की कॉपी भेजी है।
उनके एकेडमिक रिकार्ड के आधार पर उनके प्रतिभा पर कोई सवाल नहीं खड़ा कर सकता। वैशाली जिले के शीतल भकुरहर गांव निवासी को बीपीएससी में 15वीं रैंक थी। दिल्ली विश्वविद्यालय के द हिंदू कॉलेज से 2011 में स्नातक प्रथम श्रेणी में पास की। उस समय एकेडमिक एक्सीलेंट अवार्ड से पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने पुरस्कृत किया था। जेएनयू से उन्होंने एमए किया। दिल्ली विश्वविद्यालय से एमफिल के बाद नेट जेआरएफ मिला।
भ्रष्टाचार के आरोप से घिरी बिहार की शिक्षा व्यवस्था
प्रो. ललन कुमार ने पत्र में कहा कि विश्वविद्यालय में मेरिट नहीं लेनदेन के आधार पर कॉलेज तय किया जाता है। बीपीएससी से आए कम रैंक वाले को पीजी विभाग दिया गया। उससे भी कम 34वीं रैंक वाले को पीजी विभाग में भेजा गया। ललन कुमार ने उस समय विश्वविद्यालय के वीसी रहे राजकुमार मंडिर पर आरोप लगाया कि उन्होंने पोस्टिंग के लिए जरुरी मानकों को ताक पर रखा और उन्हें ऐसे कॉलेज में भेजा जहां बच्चे ही पढ़ने नहीं आते हैं।
उन्होंने कहा कि अगर मुझे उच्च शैक्षणिक संस्थान नहीं दिया जाता है तो कार्य से मुक्त कर दिया जाए। उधर इस संबंध नीतीश्वर कॉलेज के प्राचार्य प्रो डॉ मनोज कुमार ने कहा कि डॉ ललन कुमार के आवेदन की जानकारी उन्हें भी खबरों के माध्यम से हुई है, हो सकता है उनका कोई व्यक्तिगत स्वार्थ हो इसलिए पीजी या एलएस कॉलेज में आने का प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है।
तीन साल में छह तबादला
डॉ. ललन कुमार ने कहा है कि पिछले तीन साल के दौरान उनका तबादला 6 कॉलेजों में किया गया लेकिन सारे कॉलेज वैसे ही मिले जहां बच्चे पढ़ने नहीं आते हैं। 3 साल बाद भी उन्होंने कभी किसी छात्र को पढ़ाया ही नहीं और जब पढ़ाया नहीं है तो पढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से मिलने वाली सैलरी को लेने का अधिकारी नहीं हूँ। मैंने अपनी अंतरात्मा की सुनते हुए मुझे मिली तीन साल की तनख्वाह को विश्विविद्यालय को लौटाने का फैसला लिया है। 25 सितंबर 2019 से मई 2022 तक मिली पूरी सैलरी यूनिवर्सिटी को वापस कर देना चाहता हूं। मेरे कॉलेज में छात्रों की तादाद जीरो है, इस वजह से मैं चाहकर भी अपने दायित्व को नहीं निभा पा रहा हूं। इसलिए बिना काम के सैलरी लेना मेरे नैतिकता के खिलाफ है।
प्रो. ललन कुमार के मुताबिक जब उन्होंने अपनी सैलरी वापस करने और इस्तीफे की पेशकश की तो पता चला ऐसा प्रावधान ही नहीं है। राम कृष्ण ठाकुर (यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार) ने बताया कि किसी भी प्रोफेसर से सैलरी वापस लेने का किसी तरह का कोई प्रावधान नहीं है। मामले को गंभीरता से लेते शिकायत की जांच कराई जाएगी। कॉलेज प्रिंसिपल को तलब कर पूरी जानकारी ली जाएगी। इसके साथ ही ललन कुमार जिस कॉलेज में तबादला चाहते हैं उन्हें तत्काल वहां डेप्युटेशन दे दिया जाएगा। अभी ललन कुमार का चेक और इस्तीफा कबूल नहीं किया गया है।