UP News: यूपी के शिक्षा विभाग के दर्जनों क्लर्क 20-25 सालों से जमे हैं एक ही जगह पर, मायावती से लेकर योगी तक कोई नहीं करा पाया इनका ट्रांसफर
UP News: यूपी में हुकूमतें बदलती हैं, पर भ्रष्टाचार का खेल नहीं थमता। हम यहां बात कर रहे हैं उच्च शिक्षा से जुड़े कार्यालयों की। यहां तैनात बाबूओं की मनमानी के आगे सब कोई फेल है।
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
UP News: यूपी में हुकूमतें बदलती हैं, पर भ्रष्टाचार का खेल नहीं थमता। हम यहां बात कर रहे हैं उच्च शिक्षा से जुड़े कार्यालयों की। यहां तैनात बाबूओं की मनमानी के आगे सब कोई फेल है। इनकी जड़े इतनी मजबूत है कि उनके शिकायतों पर अधिकारियों के दिन लद जाते हैं, पर इनके सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इनकी मजबूत जड़ों का अनुमान आप ऐसे लगा सकते हैं कि इनमें से अधिकांश ने बीस वर्ष पहले जहां से नौकरी की शुरूआत की, वहीं से सेवानिवृत्त होने की भी तैयारी में हैं।
इस संदर्भ की चर्चा इसलिए जरूरी है कि आये दिन सरकारें शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने की बात करते रहती है। इसको लेकर उनके तरफ से कितनी ईमानदार कोशिश की गई यह तो सवालों के घेरे में है, पर यह सच्च है कि हर भर्तियों में अनियमितता को लेकर उंगलियां अवश्य उठती रही हैं। जिसकी पुष्टि साल्वर गैंग की गिरफतारी से लेकर परीक्षा से पूर्व प्रश्नपत्र के वायरल होने से हो रही है। मौजूदा सरकार में इस तरह के वाकये की संख्या भले ही बढ़ गई हो, पर सच्चाई है कि कमोबेश हर सरकारों में यही हाल रहा। पिछले दो दशक से अधिक समय से देखें तो सपा, बसपा व अब भाजपा सत्ता में है। बतौर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, मायावती, अखिलेश यादव व अब योगी आदित्यनाथ। शिक्षा में अराजकता को लेकर सबके बोल एक समान रहे। सबने शिक्षा में सुधार के बड़े बड़े दावे किए। फिर भी परेशानी बढ़ती गई। इन कर्मचारियों की मनमानी में कोई कमी नहीं हुई, जिसका खामियाजा योग्यताधारी व मेधावी अभ्यर्थी भुगतते रहे हैं।
सेवानिवृत्ति तक एक ही स्थान पर जमे रह जाते हैं कर्मी
हम यहां बात कर रहे हैं कि उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार के आलम का। इसके तह तक जाने पर यह बात सामने आती है कि इस विभाग में तैनात ऐसे बाबुओं की संख्या दर्जनों में है, जो एक ही जगह दो दशक से जमे हुए हैं। यह भी कह सकते हैं, कि नौकरी जहां से शुरू की वहीं से अब ये सेवानिवृत होने की तैयारी में हैं। पिछले 18 अगस्त को सहायक निदेशक उच्च शिक्षा डा. बीएल शर्मा के एक पत्र से इसकी पुष्टि हो जाती है। जिसमें उल्लेख है कि राजकीय महाविद्यालयों से लेकर क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी कार्यालयों में तैनात बहुतेरे बाबू क्लर्क एक ही स्थान पर लंबे समय से जमे हुए हैं। पत्र के मुताबिक क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी कार्यालय कानपुर में वर्ष 1997 में विमलेश मिश्र की नियुक्ति हुई। इसके बाद से ये वहीं पर बने हुए हैं।
यही हाल राजकीय पीजी महाविद्यालय हमीरपुर की प्रतिभा देवी, क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी गोरखपुर के संतोष कुमार सिंह, क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी बरेली के सूरज पाल सिंह, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस राजकीय महिला महाविद्यालय अलीगंज लखनउ के अमीत राजशील, क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी लखनउ के शैलेन्द्र कुमार सिंह, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चकिया चंदौली के सुरेन्द्र प्रसाद सिंह का भी है। 16 पन्ने के पत्र में 183 कर्मियों के नाम है। जिसमें से अधिकांश एक ही स्थान पर लंबे समय से जमे हुए हैं। यहां तक कहा जाता है कि इनके ट्रांसफर करने की कोशिश भी अधिकारी नहीं करते हैं। इसके पीछे शासन सत्ता में मजबूत पकड़ की बात कही जाती है। इनके एक जगह जमे रहने से अनियमितताओं को बढ़ावा मिलती है। जिसका रिजल्ट इस रूप में सामने आता है कि चयन सूची से असली अभ्यर्थी गायब हो जाता है व बाबूओं की मुठठी गर्म कर अन्य को कामयाबी मिल जाती है।
अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक महासंघ के पूर्व जोनल सेक्रेटरी डॉ.राजेश मिश्र कहते हैं कि एक ही स्थान पर जमे रहने से ये क्लर्क अब दबंग हो गए हैं। हाल यह है कि इन्हें छेड़ने वाले अफसरों की भी नींद हराम हो जाती है। आखिर मंत्री व राजनेताओं का संरक्षण जो प्राप्त है। ये संरक्षण देकर बाबूओं से मनमानी कराते हैं और बदले में उनकी मुठ्ठी भी गर्म करते हैं।
उधर देखें तो दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संबद्धता अनुभाग में एक कर्मचारी की तैनाती दस वर्ष से भी अधिक दिन तक रही। वर्तमान कुलपति प्रो. राजेश सिंह से बात बिगड़ी तो अब एक अन्य सजातीय की ही तैनाती कर दी गई है। जिनकी मर्जी के बिना अब कोई काम नहीं हो सकता है। यही हाल राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों के संबद्धता अनुभाग की है। यहां तैनात कर्मियों की मोटी कमाई होने के चलते इनका यहां से मोह कम नहीं होता है।
दिग्वीजय नाथ एलटी प्रशिक्षण महाविद्यालय गोरखपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर नारायण क्षितिजेश का कहना है कि ऐसे दबंग क्लर्को के चलते ही उच्चाधिकारियों से लेकर शासन तक की जानेवाली शिकायतों की फाइलें भी दब कर रह जाती हैं। हमने स्वयं कई शिकायतें राजभवन तक की। लेकिन शिकायतों की सुनवाई का नतीजा क्या रहा यह खबर तक नहीं लग पाती है।
मनमानी को उजागर कर रहे असिस्टेंट प्रोफेसर के परिणाम
सोशल मीडिया पर इधर कुछ दिनों से यूपीएचइएससी असिस्टेंट प्रोफेसर का परिणाम से संबंधित पोस्ट वायरल हो रहे हैं। दुर्गेश त्रिपाठी सुयश लिखते हैं कि यूपीएचइएससी असिस्टेंट प्रोफेसर के राजनीति विज्ञान के दस टाॅपर्स 95 प्रश्नों में 92 से 89 नंबर तक हासिल किए हैं। वरियता क्रम में पहले दो टाॅपर के 92 नंबर, टाॅप 10 के चार टाॅपरों के 91 नंबर, दो का 90 नंबर व अन्य दो का 89 नंबर है। दुर्गेश कहते हैं कि किसी भी एग्जाम में यह संभव नहीं है। अतः यह सिद्ध होता है कि इन्हें प्रश्नपत्र प्राप्त हुआ है और यदि ऐसा हुआ है तो मेहनत करने वालों के साथ अन्याय हुआ है। 95 में से 92 क्वेश्चन यानी टाॅपर्स के वही 3 आंसर गलत हुए हैं जो आयोग के द्वारा बाद में करेक्ट किए गए हैं, फाइनल एंसर की में।
यदि माननीय न्यायालय की शरण में जाकर टाॅपर्स की ओएमआर शीट प्रस्तुत कराई जाए जो इस आधार पर निश्चित तौर पर न्याय मिलेगा। ऐसे ही प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर रोज देखने को मिलती है। लेकिन मेन स्ट्रीम की मीडिया में यह गड़बड़झाला को स्थान न मिलने से अफसरों से लेकर नेताओं के उपर कोई दबाव नहीं बनता है। नतीजतन यह खेल लगातार जारी है।