20 दिन पहले पिता बना था बिनय, लेकिन मां की नागरिकता नहीं साबित कर पाया तो कर ली आत्महत्या

Update: 2018-09-11 19:21 GMT

वह तनाव में था, क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं थे। हम दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग हैं। यहां तक कि परेशान होकर वह मुझे भी कई बार डांट देता था। कहता था कि बगैर पैसों के कोर्ट में मैं कैसे तुम्हारे लिए कानूनी लड़ाई लड़ूं....

सुशील मानव की रिपोर्ट

जनज्वार। आप कल्पना कीजिए उस 37 साल के आदमी के मानसिक हालत की, जिसकी बूढ़ी माँ की नागरिकता छीन ली गई हो और उसके पास अपनी माँ की नागरिकता का केस लड़ने के लिए पैसे न हों। आप कल्पना कीजिए उस सत्ता निर्मित तनाव की, जिसे बाप बनने की खुशी भी न तोड़ सकी। आप कल्पना कीजिए उस दिहाड़ीदार की लाचारगी की, जो पिता बनने के 20वें दिन ही फाँसी के फंदे से झूलकर आत्महत्या कर लेता है।

शायद इस भागमभाग भरे समय में आपके पास समय नहीं है किसी दिहाड़ीदार मजदूर के बारे में सोचने का। इस कोलाहल भरे समय में आपके पास समय नहीं है उस मां की सिस्कियां सुनने का, जो बुढ़ापे घुसपैठिया करार दे दी गई है दंगाइयों और तड़ीपारों के समय में, शासन में।

'वह तनाव में था, क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं थे। हम दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग हैं। यहां तक कि परेशान होकर वह मुझे भी कई बार डांट देता था। कहता था कि बगैर पैसों के कोर्ट में मैं कैसे तुम्हारे लिए कानूनी लड़ाई लड़ूं।' ये उसी बूढ़ी मां के शब्द हैं जिसकी सारी उम्मीदें जवान बेटे के फाँसी पर झूलने के साथ ही मर गई हैं।

एक बीस दिन का बच्चा बिना किसी कसूर के अपने पिता को खोकर जीवन भर की सजा पाने को अभिशप्त है। एक नवप्रसूता स्त्री जिसे कायदे से अभी कुछ दिन आराम करना चाहिए था पुरुष-साथी की आत्महत्या कर लेने के बाद परिवार की जिम्मेदारी उठाने को मजबूर है।

गौरतलब है कि 37 साल के बिनय चंद की माँ शांति देवी को असम की मतदाता सूची में संदिग्ध नागरिक के तौर पर शामिल किया गया था। बिनय चंद ने दिहाड़ी के जरिए और उधार-बाढ़ी माँगकर कुछ रकम जुटाई थी और फॉरेनर्स ट्रिबूयनल में न्याय के लिए दरवाजा खटखटाया था। पर फॉरनर ट्रिब्यूनल ने उनकी मां को संदिग्ध नागरिक यानि ‘डी वोटर’ की श्रेणी में रखा था, लिहाजा उनके पास हाईकोर्ट जाने के अलावा और कोई चारा नहीं है।

गरीब मजदूर के लिए हाईकोर्ट जाना माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई से कम तो हरगिज नहीं। महंगी कानूनी लड़ाई से मानसिक और आर्थिक रूप से टूट चुके बिनय चंद ने हार मानकर आत्महत्या का रास्ता चुनने इस कदर बाध्य हो गया।

वहीं आत्महत्या करनेवाले बिनयचंद के पड़ोसी रहे बाबुल डे का का स्पष्ट कहना है कि 'मृतक बिनय चंद के परिवार के पास 1960 के दौरान के जमीन के कागजात हैं। अभी तक ये लोग तब से हर चुनाव में वोट डालते आ रहे थे।'

ये सिर्फ एक बिनयचंद की कहानी नहीं है। ऐसे करीब सवा लाख लोगों को एनआरसी में संदिग्ध नागरिक या डी वोर्टस बताया गया है। जाहिर है ऐसा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर किया गया था। बिनय का परिवार भी इन्हीं लोगों में शामिल है। अभी जाने कितनी हत्याओं और आत्महत्याओं का असम से खबर बनकर आनी बाकी है। कुछ आएंगी, बहुत सी तो नहीं भी आएंगी।

सुप्रीम कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेते हुए बिनय चंद की आत्महत्या या कि हत्या की जाँच करवानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को बताना चाहिए कि बिनय चंद को महँगे न्यायतंत्र और सांप्रदायिक सत्ता द्वारा आत्महत्या करने को क्यों विवश कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट को उस बीस दिन के बच्चे को जवाब देना चाहिए कि क्यों वो पिता के द्वारा प्यार और परवरिश पाने से महरूम कर दिया गया? उसके पिता को किसने और क्यों मारा? शांति चंद अपने जवान बेटे को खोकर अब अपना बुढ़ापा लेकर कहाँ जाए? कौन कमाकर उसे खिलाए?

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