अपने लिए नहीं तो अपने बच्चों के लिए पढ़िए चंद्रग्रहण का असली कारण, आखिर कितनी पीढ़ियों को अंधविश्वास में धकेलेंगे
न ही राहू-केतु का है कोई चक्कर, न किसी राशि-नक्षत्र वाले का होने वाला है कोई भला, ग्रह-नक्षत्रों की अविरल प्रक्रिया का है हिस्सा, अधिक और वैज्ञानिक जानकारी के लिए पढ़िए ये लेख
दिल्ली में नेहरू प्लैनोटोरियम में हुई है चंद्रग्रहण को देखने की भव्य तैयारी, पूरे रातभर चलेगा कार्यक्रम, नाटक से लेकर चंद्रग्रहण की भ्रांतियों को दूर करने पर होगा कार्यक्रम
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा चंद्रग्रहण एक खगोलीय घटना है। डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा प्रारंभ में यह माना जा रहा था कि चंद्रग्रहण राहू-केतू के चंद्रमा को निगलने से होता है, जिससे धीरे-धीरे विभिन्न अंधविश्वास व मान्यताएँ जुड़ती चली गईं, लेकिन बाद में विज्ञान ने यह सिद्ध किया कि चंद्रग्रहण पृथ्वी की छाया के कारण होता है।
जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है तब उसका एक किनारा जिस पर छाया पड़ने लगती है, काला होना शुरू हो जाता है जिसे स्पर्श कहते हैं। जब पूरा चंद्रमा छाया में आ जाता है तब पूर्णग्रहण हो जाता है। जब चंद्रमा का पहला किनारा दूसरी ओर छाया से बाहर निकलना शुरू होता है तो ग्रहण छूटना शुरू हो जाता है। जब पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया से बाहर आ जाता है तो ग्रहण समाप्त हो जाता है जिसे ग्रहण का मोक्ष कहते हैं।
चंद्रग्रहण का कहीं कोई दुष्प्रभाव नहीं है, इसे लेकर तरह-तरह के भ्रम व अंधविश्वास हैं, लेकिन लोगों को इन अंधविश्वासों में नहीं पड़ना चाहिए तथा ग्रहण को सुरक्षित ढंग से देखा जा सकता है तथा वैज्ञानिक इसका अध्ययन भी करते हैं।
भारत के महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने आज से करीब 1500 वर्ष पहले 499 ईस्वी में यह सिद्ध कर दिया था कि चन्द्रग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है जो कि चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पडऩे से होती है। उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभट्टीय के गोलाध्याय में इस बात का वर्णन किया है।
इसके बाद भी चंद्रग्रहण की प्रक्रिया को लेकर विभिन्न भ्रम एवं अंधविश्वास कायम है। डॉ. मिश्र ने कहा एक खगोलीय घटना है। सभी नागरिकों को इसे बिना किसी डर या संशय के देखना चाहिए। चंद्रग्रहण देखना पूर्णत: सुरक्षित है।
डॉ. मिश्र ने कहा जब चंद्रग्रहण होने वाला होता है तब विभिन्न भविष्यवाणियाँ सामने आने लगती हैं जिससे आम लोग संशय में पड़ जाते हैं जबकि चंद्रग्रहण में खाने-पीने, बाहर निकलने की बंदिशों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ग्रहण से खाद्य वस्तुएँ अशुद्ध नहीं होती तथा उनका सेवन करना उतना ही सुरक्षित है जितना किसी सामान्य दिन या रात में भोजन करना।
इस धारणा का भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए चंद्रग्रहण हानिकारक होता है तथा ग्रहण की वजह से स्नान करना कोई जरूरी नहीं है अर्थात् इस प्रकार की आवश्यकता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तथा ग्रहण का अलग-अलग व्यक्तियों पर भिन्न प्रभाव पडऩे की मान्यता भी काल्पनिक है। यह सब बातें केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी पुस्तिका में भी दर्शायी गयी है।
आगामी 27 जुलाई की आधी रात को लगने वाला पूर्ण चंद्रग्रहण 21वीं शताब्दी का सबसे लंबा चंद्रगहण होगा, जो लगभग 103 मिनट तक रहेगा। पिछली सदी में सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण वर्ष 2000 में 16 जुलाई को हुआ था, जो इस बार के पूर्ण चंद्रग्रहण से चार मिनट अधिक लंबा था।
एशिया और अफ्रीका के लोगों को इस बार पूर्ण चंद्रग्रहण का सबसे बेहतर नजारा देखने को मिलेगा। यूरोप, दक्षिण अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया में यह ग्रहण आंशिक रूप से देखा जा सकेगा। जबकि, उत्तरी अमेरिका और अंटार्कटिका में यह नहीं दिखाई पड़ेगा।
भारत में पूर्ण चंद्रग्रहण 27 जुलाई को रात 22:42:48 बजे शुरू होगा और 28 जुलाई की सुबह 05:00:05 बजे खत्म होगा।
इस बार दिल्ली में नेहरू प्लैनोटोरियम में चंद्रग्रहण को देखने की भव्य तैयारी हुई है। पूरी रातभर आज यह कार्यक्रम चलेगा। नाटक से लेकर चंद्रग्रहण की भ्रांतियों को दूर करने पर यह कार्यक्रम आधारित होगा।