उत्तराखण्ड आंदोलनकारी सुशीला भंडारी कहती हैं, 32 ग्रामसभाओं के ग्रामीणों ने हम लोगों के साथ मिलकर जब सिंगोली भटवाड़ी परियोजना का काम बंद करवाया तो मुझे 11 मुकदमे लगवाकर जेल में डाल दिया गया। मैं महीनों तक जेल में रही। उस दौरान मुझे खरीदने की कोशिश भी की गयी, जिसे मैंने ठुकरा दिया तो जान से मारने की कोशिश भी की गई...
जनज्वार। एक तरफ मातृ सदन के युवा संत आत्मबोधानंद 187 दिनों से गंगा की अविरलता के लिए अनशन पर हैं, दूसरी तरफ सरकार ने कई जल विद्युत परियोजनाओं जिनके चलते ग्रामीणों का जीवन तबाह हो रहा है, उनका निर्माण फिर से चालू करवा दिया है। इसके खिलाफ जनता अभी भी आंदोलनरत है, मगर सरकारों के कान में जूं नहीं रेंगती।
गंगा के नाम पर राजनीति करने वाले हमारे प्रधानमंत्री महोदय खुद को गंगा का पुत्र कहते हैं और कहते हैं गंगा मां ने बुलाया है, मगर गंगा को बचाने के लिए उसकी अविरलता, उससे गंदगी पाटने के लिए उनकी सरकार के पास कोई ऐसा एक्शन प्लान नहीं है, जिससे गंगा बचे। गंगा आज सिर्फ राजनीति करने के लिए है।
इसी तरह की एक परियोजना है उत्तराखंड के केदारघाटी में सिंगोली भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना, जिसका निर्माण फिर चालू हो गया है। यहां भी जल विद्युत परियोजना कर कारण उजड़ रही जनता लगातार संघर्षों में है। इस परियोजना को रोकने के लिए 65 दिनों तक जेल काट चुकी उत्तराखंड आंदोलनकारी सुशीला भंडारी अभी भी लगातार संघर्षरत हैं। वह कहती हैं 2007 में शुरू हुई यह परियोजना 2013 में आई, उत्तराखंड तबाही के बाद रुक गयी थी, लेकिन फिर शुरू हो गयी है।
सुशीला भंडारी और कुछ अन्य आंदोलनकारियों के नेतृत्व में केदारघाटी में संघर्ष कर रहे लोग सरकार से मांग कर रहे हैं कि उनकी 36 ग्रामसभाओं को न उजाड़ा जाए, उनकी खेती को खत्म न किया जाए। केदारनाथ आपदा के बाद इन योजनाओं पर काम बंद हो गया था, मगर फिर से इन्हें शुरू कर ग्रामीणों पर सरकार ने कहर बरपा कर दिया है।
सुशीला आगे कहती हैं, जैसे अंग्रेजों ने भारत में आकर फूट डालो और राज करो की नीति अपना हमें अपना गुलाम बनाया था, कुछ ऐसा ही पहाड़ को सुरंगों में कैद करने वाली कंपनियां कर रही हैं। इन्होंने भाई—भाई, पति—पत्नी को लड़ाया है। ग्रामीणों में आपस में फूट डलवा अपना काम किया। 32 ग्रामसभाओं के ग्रामीणों ने मिलकर जब सिंगोली भटवाड़ी परियोजना का काम बंद करवाया तो मुझे 11 मुकदमे लगवाकर जेल में डाल दिया गया। मैं महीनों तक जेल में रही। उस दौरान मुझे खरीदने की कोशिश भी की गयी, जिसे मैंने ठुकरा दिया तो जान से मारने की कोशिश भी की गई।
बकौल सुशीला भंडारी इन परियोजनाओं ने लोगों जल, जंगल, जमीन से वंचित कर दिया। दूसरा डीपीआर में जिन गांवों का नाम है वहां काम न कर ये लोग दूसरे गांवों में परियोजना का काम कर रहे हैं। यह सब धोखे से हो रहा है। अगर भविष्य में उन गांवों में कुछ अनहोनी होती है, तो उसकी जवाबदेही किसी की नहीं होगी।
आखिर हिमालय, गंगा, पहाड़ों के साथ क्यों इतनी छेड़छाड़ कर रही हैं ये सरकारें, क्यों तबाही को न्यौता दे रही हैं। गंगा की सफाई आज तक किसी ने नहीं की, मगर गंगा ने सबकी सफाई की। हालांकि गंगा की सफाई के नाम पर अब तक अरबों—खबरों रुपए ठिकाने लगा दिए गए हैं, मगर गंगा और ज्यादा गंदी हो गई है। गंगा सफाई का नाटक सरकारें छोड़ दें और उसे प्राकृतिक रूप से अविरलता से बहने दें, वह तभी साफ होगी।