बिलकुल सही समय पर बन रहे राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष

Update: 2017-10-27 19:55 GMT

तीन साल पहले, माहौल बहुत अलग सा था, और कांग्रेस अध्यक्ष पद में बदलाव मुझ जैसों को सही नहीं लग रहा था। अभी अभी हम एक चुनाव हारे थे, और मोदी और बीजेपी की तेज़ हवा थी...

संदीप दीक्षित, पूर्व सांसद व कांग्रेस नेता

ढाई तीन साल हो गए जब एक पत्रकार ने मुझसे पूछा था कि क्या राहुल गाँधी को कांग्रेस का मुखिया बन जाना चाहिए। मेरा जवाब था कि एक तो ये कुर्सी खाली नहीं है, क्योंकि सोनिया जी इस पर अभी हैं, दूसरा कि मेरे हिसाब से उन्हें अभी नहीं बनना चाहिए, बल्कि बनें, तो तीन एक साल बाद बनना चाहिए। उस समय हालात ऐसे नहीं थे कि राहुल गांधी मुखिया बनें। तब एकता और स्थिरता का सन्देश सोनिया जी बेहतर दे रही थीं, और विपक्ष को भी एक रखने में वो बेहतर भूमिका निभा रहीं थीं।

बस क्या था, सारे के सारे चमचे चालू हो गए। अभी नहीं को कभी नहीं बना दिया और मुझे राहुल गांधी विरोधी। खैर, पहली बार पता चला की मेरी भी कोई औकात है। चलिए उसे छोड़ते हैं।

आज जब यह काफी हद तक स्पष्ट है कि राहुल गाँधी अध्यक्ष बनने की कगार पर खड़े हैं (तीन साल बाद) तो इस मसले पर में एक आध बात कहना चाहूंगा, अपने दोस्तों के लोए, अपनों के लिए।

तीन साल पहले, माहौल बहुत अलग सा था, और कांग्रेस अध्यक्ष पद में बदलाव मुझ जैसों को सही नहीं लग रहा था। अभी अभी हम एक चुनाव हारे थे, और मोदी और बीजेपी की तेज़ हवा थी। कई तो ये तक कह रहे थे की मोदी आजीवन राज करेंगे। सारा सरकारी तंत्र, कॉरपोरेट, और मिडिल क्लास ऐसे मोदी के पीछे पड़ा था, की कोई हद ही नहीं थी।

मोदी भक्तों के भोंपू धमाधम बज रहे थे, और उनमे देश स्वर में स्वर मिला रहा था। एक पार्टी जो केवल हारी ही नहीं थी, बल्कि बुरी तरह हारी थी, जिसके नेतृत्व को लोग सवालों के कटघरे में खड़ा कर रहे थे, क्या उसके लिए वो सही समय था कि बदलाव करें और अपने भविष्य के नेतृत्व को उस आग में झोंक दें?

हर चीज़ का समय होता है, और राजनीति में तो समय ही कभी—कभी सबसे बलवान होता है। सब इस बात को समझ रहे थे, लेकिन चाटुकारों के एक फ़ौज कांग्रेस में तेज़ी से क्रियाशील थी और शायद बड़े नेताओं के सलाहकार भी इस ही फ़ौज से थे।

इन लोगों को बड़ी जल्दी थी कि इस आग में राहुल जी को झोंक दें? क्यों भई? इससे किसका भला होता? कांग्रेस का? राहुल गाँधी का? या इन चमचों का, जो कांग्रेस हथियाने के लिए के लिए बेताब थे? सबको साफ़ दिख रहा था कि राहुल जी का पउंचा पकड़ के ये लोग अपना उल्लू सीधा कर रहे थे।

संतोष इस बात से ज़रूर है कि शीर्ष नेतृत्व ने भी शायद कुछ ऐसा ही सोचा होगा, और इन मूर्ख दरबारियों की बात न मानी। आज जब कांग्रेस के चुनाव पूरे होने जा रहे हैं, पूरा देश मोदी की हवाबाज़ी से आजिज आ चुका है, देश के बिगड़ते सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक हालातों को बिका हुआ मीडिया भी छुपा नहीं पा रहा है, और कांग्रेस कार्यकर्ता में हौसला आया है, ये वो हालात और समय है, जो तीन साल पहले नहीं था।

आज राहुल गाँधी का अध्यक्ष बनना एक गतिशील कारवां का नेतृत्व करेगा, जो उस समय विपरीत हवाओं में फंस सकता था। उस समय अंधभक्ति में सराबोर था पूरा माहौल, आज वही माहौल रास्ता ढूंढ रहा है।

अगर कोई कांग्रेसी नेता ये लेख गलती से पढ़ ले, तो मैं तो एक बात ही कहूंगा। जो जो राहुल गांधी को तीन साल पहले चढ़ा रहे थे, उनसे बच के रहना। जो व्यक्ति अपने स्वार्थ में अपने नेता की नहीं सोचे, पार्टी की भी नहीं सोचे, वो चाटुकार तो अव्वल होगा, पर हितैषी नहीं हो सकता। ये समय है योद्धाओं को आगे रखने का, और योद्धाओं की सबसे बड़ी निशानी होती है स्वाभिमान और निडरता।

युद्ध में जीत हो जाये, तो दरबारी और जोकर तो अपनी जगह बना ही लेंगे।

(संदीप दीक्षित ने अपना यह पक्ष फेसबुक पेज पर शेयर किया है।)

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