मोदी ने चुका दिया आरके राघवन का अहसान

Update: 2017-09-02 13:27 GMT

राघवन के साइप्रस में भारत के राजदूत के रूप में नियुक्ति स्वीकारने पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस ईमानदार और दक्ष अफसर के लिए सत्यनिष्ठ होना खास मायने नहीं रखता। दूसरे शब्दों में हम उन्हें ‘पवित्र पापी’ भी कह सकते हैं...

वीएन राय, पूर्व आइपीएस

पूर्व सीबीआई डायरेक्टर,पूर्व आईपीएस, 78 वर्षीय राघव कृष्णास्वामी राघवन का तीन साल का लम्बा इंतज़ार ख़त्म हुआ। मोदी सरकार ने उन्हें साइप्रस में भारत का राजदूत नियुक्त कर पुरस्कृत किया है।

गुजरात में 2002 के साम्प्रदायिक पोग्राम के दौर में हुए गुलबर्गा सोसायटी कत्लेआम की जांच के लिए, उच्चतम न्यायालय के आदेश पर बनी एसआईटी के मुखिया राघवन ने अपने निष्कर्ष में तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर मुक़दमा चलने के सबूत नहीं पाए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने अब उनका यह कर्ज उतार दिया है।

ईमानदार और दक्ष पेशेवर छवि के मालिक राघवन सत्यनिष्ठ सिद्ध नहीं हुए। 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को पिंजरे में कैद तोता कहा था और उसे आजाद कराने की निश्चयात्मक टिप्पणी की थी। तोता तो उसी तरह कैद है, हालाँकि यह टिप्पणी प्रायः दोहराई जाती रही है।

इस प्रसंग में, 19 मई 2013 के ‘द टेलीग्राफ’ में छपी राघवन की टिप्पणी में सीबीआई की स्वायत्तता के लिए दो व्यावहारिक उपाय बताये गए थे- डायरेक्टर सीबीआई को पांच वर्ष का कार्यकाल देना और सेवानिवृत्ति के बाद उसके कोई और पद स्वीकारने पर रोक लगाना। राघवन से बेहतर कौन जानता होगा कि किसी भी सरकार को स्वायत्त जांच एजेंसी नहीं चाहिए।

राघवन, वाजपेयी काल में जनवरी 1999 से अप्रैल 2001 तक सीबीआई के डायरेक्टर रहे थे और सेवानिवृत्ति के बाद टाटा और जिंदल जैसे उन पूंजीपतियों की सेवा में रहे जो सीबीआई के जांच के दायरे में कभी न कभी आये हैं। यही राघवन का कॉरपोरेट नाता उनकी मोदी जांच के नतीजों को प्रभावित करने वाला कहा जाता है।

लिहाजा, उनके साइप्रस में भारत के राजदूत के रूप में नियुक्ति स्वीकारने पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मैंने पहले ही कहा है कि इस ईमानदार और दक्ष अफसर के लिए सत्यनिष्ठ होना खास मायने नहीं रखता। दूसरे शब्दों में हम उन्हें ‘पवित्र पापी’ भी कह सकते हैं।

राघवन न पहले ‘पवित्र पापी’ हैं न अकेले! वे नौकरशाहों की एक लम्बी अटूट कड़ी का हिस्सा हैं। नेहरू के ज़माने में अच्छा काम करने या अन्यथा दोस्त-कृपापात्र होने पर ऐसे पुरस्कार मिल जाते थे। इंदिरा के समय तक इस श्रेणी में वे शामिल होने लगे जो किसी न किसी रूप में उनकी राजनीति में मददगार साबित हुए या इशारे पर घटिया काम करने लगे।

आपातकाल के बाद गृहमंत्री चरण सिंह के आदेश पर गिरफ्तार की गयी इंदिरा गांधी को तुरंत डिस्चार्ज करने वाले दिल्ली के ज्यूडिशियल अफसर को, सत्ता में वापस आने पर,श्रीमती गांधी ने सारे क्यू फलांग कर हाईकोर्ट का जज बनवा दिया था। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के मना करने पर इसके लिए सिफारिश करायी गयी उड़ीसा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंगनाथ मिश्र से। रंगनाथ मिश्र उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद से अवकाश के बाद कांग्रेस टिकट से राज्य सभा के सदस्य भी रहे।

सोनिया-मनमोहन राज में सीबीआई ने अपने इतिहास के दो भ्रष्टतम डायरेक्टर देखे- एपी सिंह और रंजीत सिन्हा। दोनों को कांग्रेस पार्टी के मैनेजरों के दल्ले मांस व्यापारी मोईन कुरैशी की पैरवी पर लगाया गया था।कुरैशी ने इन दोनों के लिए भी जम कर दलाली की। इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से दर्ज केस में कुरैशी हाल में गिरफ्तार हो चुका है।

स्वयं मोदी अपने पसंदीदा एनआईए चीफ शरद कुमार को दो सेवा विस्तार दे चुके हैं, क्योंकि वे हर हथकंडा लगा कर असीमानंद, प्रज्ञा, पुरोहित जैसे हिंदुत्व षड्यंत्रकारियों को तमाम आतंक मामलों में बरी कराने में लगे हैं। जल्द ही उन्हें तीसरे सेवा विस्तार से भी नवाजा जाएगा। खबर है कि कश्मीर की गवर्नरी भी मिल सकती है।

स्पष्ट ही, राघवन पर मोदी की मोहर ऐसी लग गयी है कि कोई नहीं मानेगा वे राजदूत देश हित में बनाए गए हैं। गुजरात में भी मोदी और अमित शाह की कार्य पद्धति ने उनके व्यक्तिगत वफादार पुलिस अफसरों की एक बड़ी जमात तैयार की थी जिनमें से, दुर्भाग्य से, कई जेल भी गए। वहीं कृपा पर खरे न उतरने वालों में संजीव भट्ट जैसे पुलिस अफसर हैं, जिन्हें कांग्रेस की मोदी विरोधी मुहिम का हिस्सा बताया जाता है।

इसी गुजरात में डॉक्टर श्री कुमार जैसे तटस्थ पुलिस अफसर भी रहे जो न केवल दक्ष और ईमानदार थे, बल्कि सत्यनिष्ठ भी। धर्म, संस्कृति और भारतीय पारम्परिक विवेक के गहरे जानकार भी। केशुभाई पटेल के जमाने से वे राज्य के इंटेलिजेंस विभाग से जुड़े रहे। उन्होंने भी राघवन की एसआईटी को अपनी पूरी रिपोर्ट सौंपी थी। हालाँकि, उनके अनुसार, राघवन ने इसे अपने निष्कर्षों में शामिल ही नहीं किया।

राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के डायरेक्टर होते हुए मैंने श्री राघवन और डॉक्टर श्री कुमार के सामने एक ही सेमिनार में गुजरात हिंसा पर बोलने का निवेदन किया था। आज मुझे बताने की जरूरत नहीं कि दोनों में पीछे कौन हटा!

(पूर्व आइपीएस वीएन राय सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं। इन्हीं के नेतृत्व में समझौता ब्लास्ट मामले की जांच शुरू हुई थी।)

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