आपको मीडिया में मची सनसनी के बाद यह तो पता चल गया कि फेसबुक और क्रैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियां या एप्प आपके डाटा का चोरी करते हैं। पर यह जानने से ज्यादा जरूरी अब ये है कि असल में आपके उस डाटा का इस्तेमाल कंपनियां कैसे करती हैं, क्या छेड़छाड़ होती है आपकी प्रोफाइल के साथ, या फिर कुछ और जो आप किसी पार्टी के भक्त व ब्रांड का दीवाना बनते चले जाते हैं, लेकिन आपको पता नहीं चलता।
डाटा के इस पूरे रहस्य को समझिए जनज्वार के डाटा विशेषज्ञ संतोष कुमार से
सबसे पहले क्या है कैंब्रिज एनालिटिका
कैंब्रिज एनालिटिका एक डाटा माइनिंग, एनालिसिस और कैंपेन मैनेजमेंट कंपनी है, जो फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया के डाटा का उपयोग कर इलैक्शन और राजनीतिक कैम्पेन मैनेजमेंट करती है। इसमें बड़ी बात यह है कि कैंब्रिज एनालिटिका खुद दावा करती है कि उसकी कंपनी ने ब्रेक्सिट और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुनाव में काम किया था। इस तथ्य को वह छुपाने की कोई कोशिश नहीं करती और इसे वह एक सक्सेस स्टोरी की तरह प्रचारित करती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान उसने वहां के करोड़ों नागरिकों की प्रोफाइल में घुसकर डाटा चोरी किया और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पक्ष में माहौल बनाया। अब कहा जा सकता है कि ट्रंप की जीत में इस कंपनी का ही सबसे बड़ा योगदान रहा होगा है, क्योंकि वहां का मीडिया और संभ्रांत समाज का बहुतायत ट्रंप के खिलाफ था।
कैंब्रिज एनालिटिका के काम करने का तरीका
कैंब्रिज एनालिटिका अमेरिकी चुनाव अभियान में लगभग दो साल पहले, रिपब्लिकन बेन कार्सन और ट्रेड क्रूज़ के परामर्शदाता के रूप में शामिल हो गए थे। क्रूज़ और बाद में ट्रम्प- मुख्य रूप से गुप्त अमेरिका सॉफ्टवेयर अरबपति रॉबर्ट मर्सर, जिनके अपनी बेटी रिबका के साथ, कैंब्रिज एनालिटिका में सबसे बड़ा निवेशक होने की खबर है।
कैंब्रिज एनालिटिका के कर्ता—धर्ता Nix स्पष्ट रूप से बताते हैं कि उनकी कंपनी यह कैसे करती है। सबसे पहले कैंब्रिज एनालिटिका विभिन्न स्रोतों से भूमिगत रजिस्ट्री, ऑटोमोटिव डेटा, शॉपिंग डेटा, बोनस कार्ड, क्लब सदस्यता, आप जो पत्रिका पढ़ते हैं, आप किस चर्च में जाते हैं जैसी तमाम जानकारियां इकट्टा करता है। इन जानकारियों को इकट्ठा करने के लिए निक्स वैश्विक स्तर पर सक्रिय डेटा दलालों से डाटा खरीद करता है। एक्सिओम और एक्स्पिरियन-यूएस डाटा दलालों के प्रमुख नाम हैं।
खुलासा : कुख्यात डाटा चोर कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका की सबसे पुरानी ग्राहक है भाजपा
उदाहरण के लिए, यदि आप जानना चाहते हैं कि यहूदी महिलाएं कहाँ रहती हैं तो आप बस इस जानकारी को खरीद सकते हैं, फोन नंबर शामिल कर सकते हैं। अब कैंब्रिज एनालिटिका इस डेटा को रिपब्लिकन पार्टी और ऑनलाइन डेटा के मतदाता सूची से जोड़ती है और एक बड़ी पांच व्यक्तित्व प्रोफाइल की गणना करता है।
फेसबुक के कौन हैं डाटा चोर
आप अक्सर फेसबुक पर ऐसे एप्प देखते होंगे जो आपकी प्रोफाइल पर बार—बार आते हैं या फिर आपके दोस्तों द्वारा आजमाया गया दिखाते हैं। याद कीजिए वह क्या होते हैं, जो आपको याद आ रहे हैं, वही डाटा चोर हैं। जैसे, आप 50 साल में कितने जवां दिखेंगे, आपको कौन सबसे ज्यादा चाहता है, कौन आपको मारना चाहता है, अगले जन्म में कौन होगा आपका असली दोस्त, कौन आपकी प्रोफाइल को चोरी से देखता है, आप दाढ़ी में कैसे दिखेंगे, आदि—आदि?
इसके अलावा पर्सनालिटी टेस्ट, क्विज या अंदरूनी व्यक्त्वि की जानकारी वाले दिलचस्प एप्प। इन चोरों की पूरी जानकारी फेसबुक को होती है, वही इन्हें एक्सेस का अधिकार देता है, इसलिए पूरे डाटा चोरी के वैश्विक धंधे में फेसबुक की संलिप्तता से कोई इनकार नहीं है। पर यहां हम डाटा चोरों के तरीकों को समझने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए बात इस पर।
अब डाटा चोर घुसता है आपकी फेसबुक प्रोफाइल में
जैसे ही आप ये क्विज खेलते हैं या एप्प का इस्तेमाल करते हैं तो वे आपकी फेसबुक प्रोफाइल से सारी वाइटल सूचनाएं इकठ्ठा करता है, जिसकी कई बार आप खुद सहमति देते है। लेकिन ये इतने छोटे और गूढ़ शब्दों में होता है कि आप इस पर ध्यान नहीं देते। दूसरा अगर कई लोगों का ध्यान जाता भी है तो एप्प की प्रकृत्ति इतनी दिलचस्प होती है कि इस्तेमाल करने वाला एक बार देख लेना चाहता है। यह एप्प मानव मनोविज्ञान, स्थानीय आबादी के समाजशास्त्र और लोक प्रवृत्तियों को भी ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं।
जानकारी इकट्ठा होने के बाद शुरू होता है असली काम
आपके द्वारा दिलचस्प और अजीबोगरीब एप्प के इस्तेमाल के बाद अब एप्प से जुड़े डाटा चोर के पास आपकी सारी जानकारी है। जब एक बार इस तरह के एप्प से लाखों यूजर की इनफार्मेशन इक्ट्ठा हो जाती है तो बिग डाटा तैयार होता है। इस बिग डाटा की आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के जरिए प्रोफाइलिंग की जाती है। प्रोफाइलिंग अलग—अलग तरीके से की जाती है। जैसे लिबरल, लेफ्ट, रेडिकल, रिलीजियस, कंजर्वेटिव या कोई और बेसिस पे आपको वर्गीकृत किया जाता है या किया जा सकता है। यह प्रोफाइलिंग या वर्गीकरण डाटा के इस्तेमाल की जरूरत के अनुसार होता है। जैसे अगर किसी पार्टी को जिताने के लिए प्रोफाइलिंग हो रही है तो वह राजनीति, धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर होगी, लेकिन अगर यह किसी कंपनी के लाभ के लिए हो रहा है तो उसका आधार मुख्य तौर पर आर्थिक स्तरों में बंटा होगा।
प्रोफाइलिंग के बाद शुरू होता है आॅडिएंस के बीच टार्गेट
जब ये डाटा चोर कंपनियां लाखों—करोड़ों लोगों का एक साथ प्रोफाइलिंग कर लेती हैं तो यहां गूगल एडवर्ड और फेसबुक ऐड के जरिए टार्गेटेड आॅडिएंस में ऐड या विज्ञापन बुस्ट किया जाता है। आप जिस विचारधारा, जाति, समुदाय, पार्टी समर्थक और समूह के होंगे आपके बीच वैसी पोस्ट बुस्ट की जाएगी, जिससे आप व्यापक जनमत तैयार करने में अनजाने ही भागीदार बने। इसीलिए आपने कई बार देखा होगा कि जो एड आपके किसी दूसरे मित्र को दिखा रहा है या पोस्ट दिखा रहा है वह आपको नहीं दिखा रहा, क्योंकि यह सबकुछ आपके मित्र के पुराने गूगल सर्च, फेसबुक लाइक्स, फेसबुक स्टेटस और हज़ारों तरह के सुचना के आधार पे (जिसे हम डिजिटल फुट प्रिंट भी कहते है) के आधार दिखता है और आपको टार्गेट किया जाता है।
महत्वपूर्ण जानकारी — डाटा चोरी एक सफल व्यावसायिक मॉडल
आपने हाल—फिलहाल में हर जगह कुछ खास शब्दों को सुना होगा, जिसमें बिग डाटा, अल्गोरिथम, आर्टिफीशि्यल इंटेलीजेंस और "Data is the new oil. यानि की डाटा नया संसाधन है जिसपे कब्ज़ा करने की होड़ मची है। सारी बड़ी कम्पनियां डाटा को ज्यादा से ज्यादा स्टोर करने की होड़ में लगी हैं।
डाटा निगरानी शक्ति, नियंत्रण और प्रभाव का एक विशिष्ट साधन है। आज यह एक सफल व्यवसाय मॉडल है। लाभ की खोज में आगे की निगरानी और डेटा संग्रह को आगे बढ़ा रही है। उनका उपयोग सिर्फ नियंत्रण को लागू करने के लिए नहीं बल्कि मानव व्यवहार के बारे में भविष्यवाणी करने और विशिष्ट रूप से हेरफेर करने के लिए किया जाता है।
वर्ष 2016 की शुरुआत में सबसे पहले बड़े डेटा विशेषज्ञों ने इन हर दिन के डेटा को एकत्र करने के लिए एक सार्वभौमिक बीमा कार्ड के कार्यान्वयन का प्रस्ताव दिया था। हमारे खरीदारी और फिटनेस-व्यवहार के आधार पर हमारे जीवन पर अधिक जानकारी, हमारी स्वास्थ्य जागरूकता या अधिक संभावना है कि स्व-अनुकूलन की इच्छा स्थायी रूप से मापा जायेगा।
भविष्य का खतरे का अंदाजा हमें जरूर होना चाहिए
बीबीसी में डाटा चोरी की खबरें आने के बाद पिछले कुछ दिनों से पूरी दुनिया में #Deletefacebook अभियान चल रहा है, जबकि हम भारतीय अभी डाटा चोरी के रहस्य को ही समझने की कोशिश में लगे हैं। पर हमें समय रहते इस खतरे को गंभीरता से समझ जाना चाहिए। किसी भी विचार या शासन के गुलाम बन जाने का यह सबसे आसान समय है, क्योंकि आज एक—एक आदमी को नहीं समझाना है, बल्कि लाखों लोगों के बीच एक साथ एक विचार, समझदारी, बात या योजना बूस्ट करनी है और लोग स्वत: अपनी इच्छा से उसके पक्षधर या गुलाम बनते जाएंगे। डाटा चोरी के जरिए कोई भी तानाशाह शासक, साम्राज्यवादी सोच वाला मुल्क और एकाधिकार की इच्छा रखने वाली कंपनी के लिए यह सबसे सुखद और आसान वक्त है।